Thursday, December 8, 2022

अंग्रेज़ों ने 52 क्रांतिकारियों को लटका दिया था इमली के पेड़ पर

 #भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब , अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है।


यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।
10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।
जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।
आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।
28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी । अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे । अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया । बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है।
साभार बृजेश कुमार वर्मा 
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Tuesday, December 6, 2022

SLUG दिल्ली में आपकी सरकार भाजपा सैकड़ा भी पार नहीं करेगी //आप पार्टी तीसरी बड़ी राजनीतिक पार्टी देश की बनेगी

 दिल्ली में नगर निगम चुनाव की 250 सीटों में जो मतदान हुआ है थोड़ी देर बाद मतदान पूर्णतया संपन्न हो जाएगा यहां की जो स्थितियां हैं वह बहुत साफ है की भाजपा का सैकड़ा भी इस बार नहीं हो पाएग। इसके पहले भाजपा को 181 सीटें आपको 48 और कांग्रेस को 30 सीटें मिली थी। इस बार भाजपा को 50 सीट के आसपास मिलने की संभावना है ।आप निश्चित तौर पर बहुमत में होगी और दो तिहाई पूर्ण बहुमत में हो सकती है।  दिल्ली में160 सीटों से उपर आप को मिलने की संभावना है। इससे अधिक पहले हालांकि 270 में 181 भाजपा को मिली थी अब वह तीनों नगर निगम के एकीकरण के बाद 250 हो गए एक करोड़ 45लाख  के लगभग मतदान की संभावना है , लगभग 50प्रतिशत कुल वोटिंग का अनुमान लगाया जा रहा है ।अभी तक 45 परसेंटेज वोटिंग हो चुकी है ५%और पड़ने की संभावना है। बहुत साफ है की भाजपा का  लगभग 7 परसेंटेज कार्यकर्ता उपेक्षा की वजह से वोट डालने ही नहीं गया ।लोकल नेतृत्व उसके पास नहीं है पंजाबियां का तथा उनके बड़े-बड़े लीडर पहले भाजपा का  नेतृत्व  करते थे ।अब कोई नहीं है। इसका भी असर पड़ा है मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस तरह से मुस्लिम ईसाई सिख बहुतायत में बाल्मीकि व दलित वोट आप को गया है ।उससे साफ लग रहा है कि आप का सिक्का चला गया है मुस्लिम वोट आप को किया है  लगभग 45%बहुत जबरदस्त टोटल वोट आप को गया है । वहीं कांग्रेश, सपा ,बसपा जनता दल, ममता बनर्जी की लॉबी का वोट आप और तमाम भाजपा विरोधियों का भी एकमुश्त वोट थोक में आपको चला गया है ।जिससे भाजपा की हार सुनिश्चित है ।

  




अजय पत्रकार की खास रिपोर्ट

Saturday, December 3, 2022

नग्नता आधुनिकता की नहीं असभ्यता और दरिद्रता की निशानी

 14 वी व 15वीं शताब्दी तक यूरोप के अधिकांश लोग जंगल में रहते थे कपड़े बनाना जानते नहीं थे ।

कपड़ों के स्थान पर जानवरों की खाल का लबादा लपेटते थे ,
या जानवरों की खाल से मोटे बने हुए जो जूट की बोरी से भी ज्यादा खराब क्वालिटी के कपड़े जिसको कहा नही जा सकता वह ओढते थे ।



नग्नता,असभ्यता की अशिक्षा की अवैज्ञानिकता की निशानी है
भारत में केवल रुई के नही बल्कि सोने चांदी के तारों से कपड़े बनाना जानता था
और नग्नता भारत की कभी भी निशानी नहीं रही ।

भारत ऐसा देश है जिसने ऐड़ी से लेकर चोटी तक उंगली के नाखून से लेकर बाजू तक लगभग हजारों प्रकार के आभूषण ,हजारों प्रकार के कपड़ों के डिजाइन और उसमें भी हजारों प्रकार के अलग-अलग जेवर में
कपड़ों के डिजाइन भारत ने बनाए हैं।

इस भारत में यदि कोई नग्नता को आधुनिकता मानता है
तो वह निरा महामूर्ख है,

नग्नता आधुनिकता की नहीं है असभ्यता और दरिद्रता की निशानी है।
सभ्य बनो सभ्यता को पहचाने

सोने के लिए चारपाई (खाट)

 चारपाई....

सोने के लिए चारपाई (खाट) हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे ? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट सायंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। चारपाई भी भले कोई सायंस नहीं है। लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है। उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
जब हम सोते हैं , तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है ; क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय चारपाई की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।
दुनिया में जितनी भी आरामकुर्सियां देख लें , सभी में चारपाई की तरह जोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपडे की जोली का था , लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। चारपाई पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर चारपाई पर सोने की सलाह दी जाती है।
डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है , उसमें रोग के कीटाणु पनपते हैं , वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक है। खटिये को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं। अगर किसी को डॉक्टर Bed Rest लिख देता है तो दो तीन दिन में उसको English Bed पर लेटने से Bed -Soar शुरू हो जाता है । भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है । चारपाई पर Bed Soar नहीं होता क्योकि इसमें से हवा आर पार होती रहती है ।
गर्मियों में इंग्लिश Bed गर्म हो जाता है इसलिए AC की अधिक जरुरत पड़ती है जबकि सनातन चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है। बान की चारपाई पर सोने से सारी रात Automatically सारे शारीर का Acupressure होता रहता है ।


गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनद ही और है। ताज़ी हवा , बदलता मोसम , तारों की छाव ,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है । हर घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई (प्लास्टिक की नहीं ) चारपाई होनी चाहिए ।सस्ते प्लास्टिक की रस्सी और पट्टी आ गयी है , लेकिन वह सही नही है। स्वदेशी चारपाई के बदले हजारों रुपये की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है, अगर दाब या कांस की बुनी हुए तो सर्वोत्तम होती है।

Tuesday, November 29, 2022

क्या श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी होगा प्रभावी ?

                                   क्या श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी होगा प्रभावी ?

डॉ. अजय कुमार मिश्रा

श्री अखिलेश मिश्रा

 

उत्तर प्रदेश की कई बड़ी समस्यायों में से एक बड़ी समस्या बिजली की रही है | योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने पहले कार्यकाल में इस विषय पर सकारात्मक कार्य किया परन्तु खामियां भी विद्यमान रही | योगी सरकार के पुनः सत्ता में आने के पश्चात् बिजली विभाग की जिम्मेदारी तत्कालीन आई.ए.एस. और वर्तमान राजनैतिक नेता श्री ए. क. शर्मा को प्रदान की गयी है | इसके अतिरिक्त उन्हें नगर विकास की जिम्मेदारी भी प्रदान की गयी है | यदि दोनों विभागों की कार्य और आवश्यकता को देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति और घर से इसका सीधा सम्बन्ध है, जहाँ हर कोई स्वतंत्र है कार्यो की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए | आम जनता का मूल्यांकन सिर्फ बातों से ही नहीं बल्कि ईवीएम का बटन दबा करके भी दर्शाया जाता है | आधुनिकीकरण, तकनीकी का उपयोग और वैश्वीकरण ने परम्परागत तकनीकी को समाप्त करके मशीनरी और कंप्यूटरीकृत प्रणालियों का न केवल प्रचार प्रसार किया है बल्कि इनकी पहुँच घर-घर कर दिया है | आज प्रदेश के कोनें कोनें में इनका उपयोग किया जा रहा है | इन सभी के सफल उपयोग के लिए उर्जा अब आवश्यकता ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन अनिवार्यता भी बन गया है | उदहारण के तौर पर मोबाइल के जरिये आज पलक झपकते ही लोग ऐसी जानकारियां प्राप्त कर लेते है जिसे आज के कई दशक पहले जानना लगभग असंभव था | ऐसे में उर्जा विभाग की गहरी भूमिका न केवल बड़े स्तर पर बल्कि तकनीकी के नवीनतम उपयोग की प्रतिबद्धता को भी अनिवार्य बना रहा है |

 यदि हम दूसरे पहलूँ की बात करें तो आज जिस आसानी से बिजली का कनेक्शन लोगों को मिल पा रहा है, या शिकायतों का त्वरित निवारण हो पा रहा है उसका सीधा श्रेय विभाग के मुखिया श्री ए.के. शर्मा को ही जाता है | जनता के बीच नियमित क्षेत्र में रहकर न केवल संवाद कर उनकी समस्या का समाधान करते है बल्कि स्वयं विभाग की शिकायत निवारण प्रणाली के अतिरिक्त सीधे प्लेटफार्म आम जन के लिए दे रखा है जहाँ आप किसी भी तरह की शिकायत को उन तक पहुंचा सकतें है | ये बातें यह भी दर्शाती है की गुजरात मॉडल में इनके द्वारा अदा की गयी भूमिका कोई तुक्का नहीं थी | हाल ही में चलायें गए एक मुश्त ब्याज माफ़ी योजना की स्वीकार्यता बड़े पैमाने पर प्रदेश के सभी कोने में रही और रिकॉर्ड लोगों ने इसका लाभ लेकर अपने बकाये बिजली के बिल का न केवल भुगतान किया बल्कि कनेक्शन को भी नियमित कराया है | बिजली के लिए गर्मियों में आम जन के बीच बढ़ी मांग की पूर्ति न होने पर गावों के अतिरिक्त शहरों में भी हाहाकार मचता दिखाई पड़ने पर स्वयं श्री ए.के. शर्मा ने मोर्चा सम्भाल करके स्थिति में बड़ा बदलाव करके निर्धारित मानकों से अधिक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित किया है | आज निर्बाध रूप से बिजली सभी को प्राप्त हो रही है साथ है बड़ी बात यह भी है की बिजली की दरों में बढोत्तरी के बजाय इनके नेतृत्व में कमी की गयी है जिससे जनता में खुशियाँ विद्यमान है |

 किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए सबसे जरुरी होती है आपकी योग्यता, अनुभव और समझ जिसके आधार पर आम लोगों के जीवन में प्रकाश लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखातें है | पूर्व आई.ए.एस. होने और जनता की मूल समस्यायों को गहराई से समझने, आम लोगों से जुड़े रहने और समस्याओं को निस्तारित करने की मजबूत इच्छा शक्ति के साथ हमेशा जनता के बीच पाए जाने वाले नेता के रूप में उत्तर प्रदेश में श्री ए.के. शर्मा एक अमिट छाप छोड़ रहें है | दो दशक से अधिक समय तक गुजरात में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करके उपलब्धि से सभी को न केवल चौकाया बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में लगातार कार्य करके जनता का दिल भी जीता है | इन्ही उपलब्धियों की वजह से आज उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहें है | यदि आपको बिजली विभाग में जमीनी बदलाव देखना हो तो आप वर्तमान में प्राप्त और पहले प्राप्त सेवाओं का स्वयं मूल्यांकन कर सकतें है | इन परिवर्तनों में गुजरात मॉडल की झलक आपको देखने को जरुर मिलेगी |

 लखनऊ समेत जब पुरे प्रदेश में डेंगू का प्रकोप बढ़ा और हर तरफ परेशानियाँ उत्पन्न हो गयी तब स्वयं मोर्चा सम्भालातें हुए मैदान में उतर कर दिन और रात लगातार व्यवस्थाओं में बड़ा सुधार करके जनता की जमीनी आवश्यकता की न केवल पूर्ति की बल्कि साफ-सफाई पहले से कही अधिक बेहतर सुनिश्चित किया है | आज हर गली मोहल्ले में न केवल स्वच्छता दिख रही है बल्कि आम आदमी का जीवन बेहतर हो रहा है | प्रधानमंत्री जी के विज़न की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध और दो महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी लेकर श्री ए.के. शर्मा चल रहें है | विगत अपने 8 माह के कार्यकाल में उन्होंने हर क्षेत्र में जाकर अधूरी योजना परियोजना का न केवल जानकारी प्राप्त की बल्कि उनमे से कई पर कार्य करके परिणाम भी दिया है और अन्य पर लगातार कार्य चल रहा है | जिन बातों के लिए बिजली विभाग बदनाम था आज उन बातों से लगभग मुक्त हो चुका है ईमानदारी पूर्वक कार्य सभी पदों पर देखने को मिल रहा है तथा नियंत्रण के साथ-साथ सफल उत्पादकता भी अब प्रदर्शित हो रही है | श्री ए.के. शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश की इन दो विभागों पर किये जा रहें कार्यो से आप अवश्य ही रूबरू विभिन्न माध्यमों से होतें रहें है | फिर चाहें न्यूज़ पेपर, टीवी चैनल, वेब न्यूज़ या सोशल मीडिया या फिर आम जन का स्वयं का संवाद ही क्यों न हो | प्रदेश के कोने-कोने से इनके कार्यो की सराहना देखने और सुननें को मिल रही है |     

 पर जैसा की एक आम अवधारणा है अधिकांश आम जन के द्वारा पूर्ण हुए कार्यों की अपेक्षा अधुरें कार्यों की पूर्ति की चर्चा ज्यादा की जाती है ऐसे में श्री ए.के. शर्मा को और अधिक सतर्कता के साथ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की उनके साथ-साथ विभाग के लोग आम जन के लिए ईमानदारी से कार्य कर रहें है और जन समस्यायों का निस्तारण उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है | उर्जा विभाग और नगर विकास विभाग दोनों एक महत्वपूर्ण कड़ी है सरकार की ईमानदारी और कार्यो को व्यापक पैमाने पर प्रदर्शित करने के लिए क्योंकि दिन प्रतिदिन इन विभागों के कार्यो से लोगों का दो चार होना पड़ता है | वर्तमान समय में श्री ए.के. शर्मा की दिख रही गुजरात मॉडल की कार्य प्रणाली और प्रतिबद्धता के आधार पर यह कहा जा सकता है की इन दोनों विभाग के द्वारा आगामी समय में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त होगी क्योंकि 8 माह के कार्यकाल में आम जन की संतुष्टि दिखाई पड़ रही है | यह भी शाश्वत सत्य है की बड़े बदलाव और उपलब्धि प्राप्त करने में समय लगता है और दोनों विभागों के माध्यम से उपलब्धि प्राप्त करने का समय अभी 4 वर्ष से अधिक का है और यह तब और पुख्ता हो जाता है जब प्रदेश में शासन करने वाला शासक सब पर निगाह जमाये हुए हो और हर हाल में आम जनता की सहूलियत चाहता हो | यानि की वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह कहा जा सकता है की श्री ए.के. शर्मा का गुजरात मॉडल उत्तर प्रदेश में भी प्रभावी होगा |

चौतीस पुरातन प्रतिमाएँ मिली तपोभूम उज्जैन में


-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन (मध्यप्रदेश) में व उसके आस पास के स्थानों से 34 पुरातन जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं हैं। इनमें अधिकतर प्रतिमाएँ खण्डित हैं। कुछ के केवल परिकरों के अंश ही हैं किन्तु ये बहुत महत्वपूर्ण प्रहितमाएँ हैं। अधिकतर प्रतिमाएँ तीर्थंकर और तीर्थंकरों से संबद्ध शासन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
दिनांक 26 नवम्बर 2022 तपोभूमि प्रणेता जैन आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने इन प्रतिमओं के सर्वेक्षण व पहचान व समय ज्ञात करने हेतु पुरातत्त्वविदों को आमंत्रित किया था। जिनमें डॉ. नरेश पाठक-पूर्व पुरातत्त्व सर्वेक्षक मध्य प्रदेश, डॉ. रमेश यादव- पुरातत्त्व सर्वेक्षण अधिकारी- भोपाल, डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, जैन संस्कृति शोध संस्थान- इन्दौर, डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह जोधा-शोधाधिकारी, वाकणकर पुरातत्त्व शोध संस्थान- भोपाल और डॉ. नवीन जी- पुरातत्त्व विभाग, भोपाल प्रमुख हैं।





यहां प्राप्त प्रतिमाओं में दो मूर्तियों के पादपीठ पर प्राचीन देवनागरी लिपि में प्रशस्ति है। एक में संवत् है 12... सौ स्पष्ट है। दूसरी प्रतिमा की प्रशस्ति के साथ शंख लांछन भी स्पष्ट है।
आचार्य पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्य प्रज्ञासागर ने डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि इन प्रतिमाओं का पुरातत्त्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण और पंजीयन का कार्य प्रारंभ हो गया है। सर्वेक्षण के उपरान्त इन्हें भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन के संग्रहालय की आर्ट गैलरी में स्थाई रूप से प्रदर्शित किया जायगा। आचार्यश्री ने बताया कि भगवान महावीर का प्रभाव क्षेत्र होने से यहाँ निकटवर्ती क्षेत्रों में और भी पुरातन जैन प्रतिमाओं व उनके अवशेष प्राप्त होने की संभावना है। यहां शीघ्र ही एक शोध केन्द्र की स्थापना हो रही है, जिसके लिए विशाल पुस्तकालय स्थापित कर लिया गया है।

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ

एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं, बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए।

महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा, वह निराश हो गये। और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।
इस प्रकार दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं।
रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई। वे ध्यान से सुनने लगे। अरे बाबा! तुलसीदास कौन है?
एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। तुलसीदास उठते हुए बोले, 'हाँ भाई! मैं ही हूँ तुलसीदास।'
बालक ने कहा, 'अरे! आप यहाँ हैं। मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ।'
बालक ने कहा, 'लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'भैया कृपा करके इसे वापस ले जायँ।'
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं, कारण?


तुलसीदास बोले, 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का?'
बालक ने मुस्कराते हुए कहा 'अरे, बाबा! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता।'
बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है...
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि 'मैं ही तुम्हारा राम हूँ। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।'
तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी, नेत्रों से अस्त्र अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं। उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया।
प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।
जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान 'तुलसी चौरा' नाम से विख्यात हुआ। वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ 'बड़छतामठ' के रूप में प्रतिष्ठित है।
जय जगन्नाथ जी

विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था बनाने वाले भी भारतीय ही थे

 विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था.

…और इसे बनाने वाले भी भारतीय ही थे.
आज से करीब 2 हजार वर्ष पूर्व भारत में कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है.
भारत के इस गौरवशाली इतिहास को पहले अंग्रेज और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर लोगों से इस तथ्य को छुपाया.
दक्षिण भारत में कावेरी नदी पर बना यह कल्लनई बांध वर्तमान में तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में है. इसका निमार्ण चोल राजवंश के शासन काल में हुआ था.राज्य में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए कावेरी नदी को डायवर्ट कर बनाया गया यह बांध प्राचीन भारतीयों की इंजीनियरिंग का उत्तम उदाहरण है.
कल्लनई बांध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था.यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बांध में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है वह वर्तमान विश्व की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसकी भारतीयों को आज से करीब 2 हजार वर्ष पहले ही जानकारी थी.
कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है, जिससे बरसात के मौसम में यह डेल्टाई क्षेत्र में भयंकर बाढ़ से तबाही मचाती है.


पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था. उस समय के भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है.
इस बांध को आप कभी देखेंगे तो पाएंगे यह जिग जैग आकार का है. यह जिग जैग आकार का इस लिए बनाया गया था ताकि पानी के तेज बहाव से बांध की दीवारों पर पड़ने वाली फोर्स को डायवर्ट कर उस पर दवाब को कम कर सके. देश ही नहीं दुनिया में बनने वाले सभी आधुनिक बांधों के लिए यह बांध आज प्रेरणा का स्रोत है.
यह कल्लनई बांध तमिलनाडू में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्रोत है.
आज भी इससे करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है.
यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा. मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है !

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