Wednesday, March 15, 2023

नाभी

 नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है !!

एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर रात को नजर न के बराबर होने लगी। जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख नहीं पायेंगे।.... मित्रो यह सम्भव नहीं है..
हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।
गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।
नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है
नाभी में गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।
1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...
सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।
2. घुटने के दर्द में उपाय
सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।
3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-
नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।
नाभी में तेल डालने का कारण
हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।
जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।बस यही काम है तेल का।

Sunday, March 5, 2023

शबरी माँ

"ओहो,ये जूस इतनी देर से रखा है! कहीं खराब ना हो गया हो।" पति के लिए जूस बनाया और

 जूस पीने से पहले ही पति की आंख लग गई थी। 

नींद टूटी,तब तक एक घंटा हो चुका था। 
पत्नी को लगा कि इतनी देर से रखा जूस कहीं खराब ना हो गया हो।
उसने पहले जरा सा जूस चखा और जब लगा कि स्वाद बिगड़ा नहीं है, तो पति दे दिया पीने को।

सवेरे जब बेटी के लिए टिफिन बनाया तो सब्जी चख कर देखी।
नमक, मसाला ठीक लगा तब खाना पैक कर दिया।
स्कूल से वापस आने पर बेटी को संतरा छील कर दिया। 
एक -एक परत खोल कर चैक करने के बाद कि कहीं कीड़े तो नहीं हैं!
सब देखभाल कर जब संतुष्टि हुई तो बेटी को एक एक करके संतरे की फान्के खाने के लिए दे दीं।

दही का रायता बनाते वक्त लगा कि कहीं दही खट्टा तो नहीं हुआ और चम्मच से मामूली दही ले कर चख लिया। 
"हां ,ठीक है ", जब यह तसल्ली हुई तब ही दही का रायता बनाया।

सासु माँ ने सुबह खीर खूब मन भर खाई और रात को फिर खाने मांगी तो झट से बहु ने सूंघी और चख ली कि 
कहीँ गर्मी में दिन भर की
 बनी खीर खट्टी ना हो गयी हो।
बेटे ने सेंडविच की फरमाईश की तो ककड़ी छील एक टुकड़ा खा कर देखा कि कहीं कड़वी तो नहीं है। ब्रेड को सूंघा और चखा 
की पुरानी तो नहीं दे दी दुकान वाले ने। संतुष्ट होने के बाद बेटे को गर्मागर्म सेंडविच बनाकर खिलाया। 
दूध, दही, सब्जी,फल आदि ऐसी कितनी ही चीजें होती हैं जो हम सभी को परोसने से पहले मामूली-सी चख लेते हैं। 
कभी कभी तो लगता है कि हर मां, हर बीवी, हरेक स्त्री अपने घर वालों के लिए शबरी की तरह ही तो है।
 जो जब तक खुद संतुष्ट नहीं हो जाती, किसी को खाने को नही देती। और यही कारण तो है कि हमारे घर वाले बेफिक्र होकर इस 
शबरी के चखे हुए खाने को खाकर स्वस्थ और सुरक्षित महसूस करते हैं। हमारे भारतीय परिवारों की हर स्त्री शबरी की तरह अपने 
परिवार का ख्याल रखती है और घर के लोग भी शबरी के इन झूठे बेरों को खा 
कर ही सुखी, सुरक्षित,स्वस्थ और संतुष्ट  रहते हैं। *हर उस महिला को समर्पित जो अपने परिवार के लिये "शबरी माँ" है


Saturday, March 4, 2023

चिट्ठियाँ

जिनमे लिखने के सलीके छुपे होते थे

कुशलता की कामना से शुरू होते थे
बड़ों के चरणस्पर्श पर ख़त्म होते थे!
और बीच में लिखी होती थी जिंदगी...
नन्हें के आने की खबर
मां की तबियत का दर्दं
और पैसे भेजने का अनुनय
फसलों के अच्छा या खराब होने की वजह!
कितना कुछ सिमट जाता था
एक नीले से कागज में....
जिसे नवयौवना भाग कर सीने से लगाती
और अकेले में आंखों से आंसू बहाती!
मां की आस थी
पिता का संबल थी
बच्चों का भविष्य थी
और गांव का गौरव थी ये चिट्ठियाँ!
डाकिया चिट्ठी लाएगा
कोई बांच कर सुनाएगा
देख देख चिट्ठी को
कई कई बार छू कर चिट्टी को
अनपढ़ भी
एहसासों को पढ़ लेते थे!


अब तो स्क्रीन पर अंगूठा दौड़ता है
और अक्सर ही दिल तोड़ता हैं
मोबाइल का स्पेस भर जाए तो
सब कुछ दो मिनिट में डिलीट होता है!
सब कुछ सिमट गया छै इंच में
जैसे मकान सिमट गए फ्लैटों में
जज्बात सिमट गए मैसेजों में
चूल्हे सिमट गए गैसों में,
और इंसान सिमट गए पैसों में .....

दालान

 "80, 90 की मीठी यादें (बचपन Again)"

"दालान"
हम सबके घर में बाहर की तरफ एक बड़ा सा बारामदा या दालान हुआ करती थी। बचपन में देखा होगा कि हर घर की यह दालान गुलजार रहती थी और यहाँ पर बड़ी चहल-पहल रहती थी।
इस तरह की दालान में रात में सोने के लिए कई सारी चारपाई लगी रहती थी और छोटे-मोटे कार्यक्रम में 100-50 लोगों के बैठने खाने की व्यवस्था भी इसी में कर दी जाती थी। बस जाजिम या टाट बिछाया और पंगत लगना शुरू।
लेकिन धीरे-धीरे लोग गाँव से शिक्षा, नौकरी और व्यवसाय के लिए बाहर निकलते गये और अब लगभग अब हर घर की दालान सूनी पड़ी रहती है।