Monday, October 21, 2019

जागो! देशवासियों जागो तुम्हें जगाने आया हूँ

आँसू बेच के हम खरीद, लाये नकली मुस्कानों को।
बिना जड़ों के फूलों से, सज्जित कर लिया मकानों को।।
चैपालें वीरान हुई, मन की पीड़ा का जिक्र नहीं।
कौन कहाँ जीता-मरता है, इसकी कोई फिक्र नहीं।।
जीव रहित पृथ्वी को, करने की कर ली है तैयारी।
और मंगल पर जीवन, खोजती दृष्टि आज हमारी।।
चर्खा तोड़ दिया बापू का, झूठे खद्दर वालांे ने।
सौदा कर डाला, धरती के रखवालों नें।।
गौ माता बन गई फूड, और गंगा रह गई पानी है।
भारत माँ को डायन कहती, मजहब की शैतानी है।।
पशुओं को काट-काट कर, मांस निर्यात किया जाता है।
बदले मंे उसके गोबर का, आयात किया जाता है।।
सन्डे-मन्डे खाओ अन्डे, सरकारें खुद कहती हैं।
दूध हुआ गायब, नदियाँ लहू और सुरा है।।
मर्यादा छूट पहुँच रही, कसकर पश्चिम की बाहों में।
तुलसी कुंभन वाले लड़ते, भाषा के चैराहों में।।
माईकल जैक्सन तोड़ रहे है, कजरी मटकी नाचों को।
स्टारों ने तोड़ दिया, संस्कृति के ही ढांचों को।।
थर्माकोल के गिलासों नें, माटी के कुल्हड़ फोड़ दिए।
अनजाने ही पश्चिम से, मन के नाते जोड़ दिए।।
मैं भारत से ऐसी गंदी, रीति मिटाने आया हूँ।
सदाचार की गंगा का, अवतरण कराने आया हूँ।।
जागो! देशवासियों जागो! तुम्हें जगाने आया हूँ।


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