Tuesday, October 29, 2019

युवा पीढ़ी और नैतिकता 

 यदि हम वर्तमान भारतीय समाज पर दृष्टि डालें तो हम देखते हैं कि हमारे चारों ओर भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार, लूटपाट का नग्न नृत्य हो रहा है। हमारी चिरसंचित संस्कृति और सभ्यता पर तुषारापात होने के लक्षण स्पष्ट प्रतीत हो रहे हैं। आज हमारे देश ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में चाहे जितनी सफलता अर्जित कर ली हो परन्तु फिर भी आज हमारा देश दिन-प्रतिदिन अवनति के पथ पर बढ़ता जा रहा है। नैतिकता का हृास दिन-प्रतिदिन तीव्र गति से हो रहा है जो इस राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा। देश में फैली इस अशान्ति का कारण युवा वर्ग कमें व्याप्त असन्तोष, अनंुशासनहीनता, अनैतिकता और असंयम है।
 आज का युवा वर्ग अनुशासन और नैतिकता को भूलता जा रहा है तथा अपने बड़े बुजुर्गो, माताओं एवं बहनों को अपशब्द एवं अश्लील शब्द कहकर अपने को गर्वित महसूस करते हैं।
 स्वामी विवेकानंद, संत ज्ञानेश्वर, रामानुज, सुभाष चन्द्र बोस जैसे महापुरूषों की इस पावन भूमि पर जहाँ के युवा सद्गुणों एवं नैतिकता से भरपूर संयमी, चरित्रवान, कत्र्तव्यनिष्ठ होने चाहिए थे वहाँ पर नकारा, अनुशासनहीन, सवार्थी ऐसे का पुरूष युवाओं की फौज तैयार हो रही है जो अपने बड़े-बुजुर्गों एवं गुरूओं का अपमान करके इस दिव्य भारतभूमि को कलंकित कर रहे हैं।
 आज युवा कालेजों से बहुत काबिल परन्तु पढ़े-लिखे जाहिल, गँवार बनकर निकल रहे है। क्योंकि युवाओं के पास नैतिकता ही नहीं है जिसकी उन्हें ज्यादा आवश्यकता है।
 वर्तमान का युवा वर्ग माँ-बहनों के विषय में अश्लील टिप्पणी करके, दुर्बलों को सताकर पशुता का परिचय देकर अपने को वीर समझता है परन्तु महापुरूषों की दृष्टि में वीर तो वो हैं जो दुर्बलों का बल बनें, माताओं-बहनों की मर्यादा का ख्याल रखें बुजुर्गों का सम्मान करें। अरे! संसार में वीरता तो तब है जब युवा त्याग और सेवा को अपने जीवन में ग्रहण करके मनुष्यता का परिचय दे, कीट पतंगों की तरह लड़ना मनुष्यता नहीं है।
हमारे देश को अनुशासी, विनम्र, मर्यादित एवं साहसी युवकों की आवश्यकता है जिसके लिए हमें स्वामी विवेकानन्द की बातों का ध्यान करना चाहिए।
 स्वामी विवेकानन्द ने युवाशक्ति को ललकारते हुए कहा-''इस देश को केवल अनुशासी, दृढ़विश्वासी, निष्कपट, श्रद्धासम्पन्न एवं संयमी युवकों की आवश्यकता है। ऐसे वीर युवकों से इस देश को बदला जा सकता है। याद रखो तुम्हारे आदर्श सर्वत्यागी 'उमानाथ भगवान शंकर जी एवं श्री रामचन्द्र जी हैं। तुम उनसे प्रार्थना करो कि वे तुम्हारी का पुरूषता, दुर्बलता, अनुशासनहीनता, अविवेक को समाप्त करके तुम्हें मनुष्यता प्रदान करें।''
 हमारे देश के कर्णधार युवाओं याद रखो। हमें ईश्वर और अपने महापुरूषों पर दृढ़विश्वास करके अपने मन और इन्द्रियों पर संयम करना पड़ेगा। हमें सहयोग एवं सेवा की भावना सीखनी पड़ेगी। जिससे आगे आने वाली पीढ़ी हमें सम्मानित दृष्टि से देखे। याद रखो हमारा और आपका युवा होना तभी सार्थक है यदि हम अनुशासन, नैतिकता, सदाचार, संयम एवं मनुष्यता का परिचय देंगे।
 युवाओं! प्रतिज्ञा करो कि छोटों के साथ नरमी से, बड़ों के साथ करूणा से, संघर्ष करने वालों के साथ हमदर्दी और कमजोर व गलती करने वालों के साथ सहनशीलता से पेश आने की क्योंकि हम अपने जीवन में कभी न कभी इनमें से किसी न किसी स्थिति से गुजरते हैं।


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