Friday, May 22, 2020

महामारी के नाम वैश्विक संदेश

यार बताओ तो सही,
जो खो गया वो मिल जाएगा क्या?
आंसू, करूणा, पीड़ाओं का धारित
यह घट फिर संभल जाएगा क्या?

अकेले सन्नाटे में घुटकर जो रो रहा दिनकर
नव युग के इस तीखे ज्ञान का देख विध्वंस
भावना, संवेदना और संस्कार की अंतरिम अंजलि
पर, नव आधारशिला गढ़ता जो खो रहा बुनकर
वैक्सीनेशन की इस झीनी ओट में
माँ के दिलों पर उभरती हुई सारी चोट में
आधुनिकीकरण की जद में लिपटकर
पापों का प्रायश्चित भी , मर जाएगा क्या?

यार बताओ तो सही,
आंसू, करूणा, पीड़ाओं का धारित
यह घट फिर संभल जाएगा क्या?

हजारों की संख्या में यह कब्रों की पिटारी
अंतिम यात्रा में जो अपनों को भी न पाई
पावन, मनभावन और कृतज्ञ रहा जो जीवन भर
प्रतिक्षण आलोकित रहे अकम्पित पथ आभारी
मनुष्य प्रदत्त पूंजियों की निष्ठुरता में
नवयुगीन पल्लवित कोपलों की क्रूरता में
राष्ट्रवादिता और सामाजिकता की हद में
समूचा वैश्विक दृष्टिकोण बदल जाएगा क्या?


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