Friday, May 29, 2020

"स्वामीजी की शालीनता"

करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (आधुनिक नाम कोलकाता) में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ था। दरअसल, यह वो समय था, जब यूरोपीय देशों में भारतीयों व हिन्दू धर्म के लोगों को हीनभावना से देखा जा रहा था व समस्त समाज उस समय दिशाहीन हो चुका था। भारतीयों पर अंग्रेजीयत हावी हो रही थी तभी स्वामी विवेकानंद ने जन्म लेकर न केवल हिन्दू धर्म को अपना गौरव लौटाया अपितु विश्व फलक पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता का परचम भी लहराया।

                           बात सन् 1893 की है,जब स्वामीजी अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने गए थे।वहां पहुचने पर लोग इन्हें देखकर इनका उपहास करने लगे और कुछ अंग्रेजों ने इन्हें पागल तक कहकर संबोधित किया।और सम्मेलन वाले दिन कुछ अंग्रेजों ने स्वामीजी का  अनादर करने के लिए एक चाल चली,और उन्होंने आयोजन स्थल पर मंच के ठीक सामने स्थित दो वृक्ष पर एक बड़ा सा बैनर लगा दिया जिस पर बड़े अक्षरों में शून्य लिखा हुआ था,उस बैनर के माध्यम से वे स्वामीजी को इशारों-इशारों में कहना चाहते थे कि आप शून्य हैं।परन्तु स्वामीजी ने अपना हौसला बनाये रखा।स्वामीजी को उद्बोदन के लिए मात्र 2 मिनट का समय दिया गया,और मंच पर आते ही जैसे ही उन्होंने सम्बोधन के शुरू के कुछ शब्द-"मेरे प्यारे अमेरिकी भाइयों और बहनों" कहा पूरा सभागार कई मिनटों तक तालियों से गूंज उठा।और अपने उस उद्बोदन के कारण स्वामीजी आज लगभग 127 साल बाद भी स्वामीजी सभी युवाओं के प्रेणापुंज बने हुए हैं और बने रहेंगे।युवा वर्ग को स्वामीजी से अवश्य प्रेरणा लेकर नित नए विचारों के साथ कुछ अच्छा करने के लिए तत्पर होना चाहिए।मेरे प्रेणापुंज स्वामीजी को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।उनका एक सुविचार सर्वदा प्रेरित करता रहता है-"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।"

 

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