संकल्प शक्ति का स्वच्छंद प्रयोग अपने आप में साध्य होता है। मनुष्य अकेले या मिलजुल कर प्राकृतिक बाधाओं पर विजय प्राप्त करता है और आत्म साक्षात्कार आत्माभिव्यक्ति के घ्येय की पूर्ति करता है। भौतिक मूल्यों का विरोध करता है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सजग रहता है। प्रत्येक चिरस्थाई संकल्प शक्ति के लिए अपने आत्मा के भीतर संरचनात्मक सृजन करता है। संकल्प शक्ति पर विजय प्राप्त करने के लिए निर्धारित मानदंडों के अनुसार वह आचरण करता है ताकि संकल्प शक्ति पर मनुष्य विजय प्राप्त कर सके। कुछ मनुष्य स्वभाव से सुख की तलाश करते हैं कुछ मनुष्य दुःख पूर्वक रहते हुए अपने संकल्प शक्ति पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं इन्हीं दोनों की इच्छाओं के मध्य अंतर्द्वंद होता है। इसी अंतर्द्वंद पर जो मनुष्य विजय प्राप्त कर लेता है वह अपने संकल्प शक्ति पर विजय प्राप्त करता है। मनुष्य का जीवन निसंदेह मानव प्रेम परोपकार और जन सेवा की भावनाओं से ओतप्रोत होता है परंतु मनुष्य अपने संकल्प शक्ति के यथार्थ दर्शन को समझ नहीं पाता है वह मन के अंदर उथल-पुथल होने वाले क्रांतिकारी विचारों के प्रति संवेदनहीन होता है। वह भौतिक स्वतंत्रता की चाह रखता है अपने मन पर एकाधिकार कायम नहीं रख पाता है। आध्यात्मिक एकाधिकार मनुष्य की संकल्प शक्ति की अंतिम परिणीति है। युग की निरक्षरता की विचारधारा में डूबा हुआ मनुष्य अपने संकल्प शक्ति को भौतिकवाद की भव्यता में पीछे छोड़ देता है।
Comments
Post a Comment