Friday, January 15, 2021

विवाहित बेटी को भी अनुकंपा के आधार पर नौकरी में नियुक्ति - हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

बेटे और बेटी में फर्क की मानसिकता को हर स्तर पर रोकना जरूरी - एड किशन भावनानी


गोंदिया - भारत वर्ष में एक लंबे अरसे से सरकारी, निजी सामाजिक,और अनेक संस्थाओं द्वारा एक अभियान के तहत बेटे और बेटियों में फर्क करने की मानसिकता को त्यागने, सोच बदलने, में काफी हद तक सफलता पाई है और इतने वर्षों की मेहनत का नतीजा अब दिखने लगा है। और आज लगभग हर क्षेत्र में बेटीयां बेटों से दो कदम आगे है, परंतु फिर भी यह मानसिकता पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। चाहे वह निजी या सरकारी क्षेत्र हो, कहीं ना कहीं बेटे और बेटी में फर्क की बात आ ही जाती है, तो हम सब की यह जवाबदारी हो जाती है कि इस मानसिकता को पूरी तरह से रोकना होगा और इसमें प्रशासनिक, न्यायिक, और सामाजिक रूप से जनजागरण अभियान, कड़े कठोर निर्णय,अनुकूल आदेश, बहुत ही जरूरी है। ताकि इस मानसिकता को पूरी तरह से समाप्त कर एक नई सोच को स्थापित किया जा सके, ताकि भारत के विकास की गाड़ी के पहिए बहुत तेजी से के साथ प्रगति की ओर चलें और वैश्विक स्तर पर हम एक उदाहरण पेश कर सकें... इसी विषय से संबंधित एक मामला माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट में कोर्ट क्रमांक 66 में एक सदस्यीय बेंच, जिसमें माननीय न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की बेंच के सम्मुख रिट अपील क्रमांक 10928/2020,याचिकाकर्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य दो के रूप में दिनांक 15 दिसंबर 2020 को बेंच के सम्मुख आया,और माननीय बेंच ने अपने 9 पृष्ठों और 25 पॉइंटों के आदेश में कहा कि यदि एक शादीशुदा बेटा अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र है तो बेटी की उम्मीदवारी को उसके विवाहित होने के आधार पर खारिज करना भेदभावपूर्ण है, इसलिए, भले ही राज्य सरकार ने आज की तारीख तक इस नियम में संशोधन नहीं किया है, तो भी इस नियम को एक विवाहित बेटी के दावे पर निर्णय के लिए विद्यमान प्रावधान नहीं समझा जा सकता। बेंच ने दोहराया है कि अनुकंपा के आधार पर सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए एक बेटी को मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार का सदस्य माना जाएगा, भले ही उस बेटी की वैवाहिक स्थिति जो भी हो। बेंच ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया, याचिकाकर्ता ने प्रयागराज जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी के 25 जून, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अधिकारी ने प्रदेश सरकार के 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के उसके दावे को इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि उसका विवाह हो चुका है। विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्यऔर ओआरएस, रिट पिटिशन क्रमांक 60881/2015 ने पहले ही अभिनिर्धारित किया है कि विवाहित बेटियों को अभिव्यक्ति के दायरे से अपवर्जन, 'परिवार' को 1974 के नियम 2(सी) में असंवैधानिक है,उसने कथित नियमों के नियम 2(ग) (ग) (3) में 'अविवाहित' शब्द को भी कुचल दिया, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।अदालत ने कहा कि बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा दावे को खारिज करने का आदेश साफ तौर पर अवैध है। अदालत ने अधिकारी को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के याचिकाकर्ता के दावे पर कानून के मुताबिक और उसकी वैवाहिक स्थिति का संदर्भ लिए बगैर विचार करने और दो महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया।बेंच ने अभिनिर्धारित किया कि यह निर्णय आरईएमऔर नियम 2(c)(iii) में प्रचालन करता है, उन सभी उद्देश्यों के लिए जो पूर्ण रूप से निष्प्रभावी थेघोषणा संपूर्ण और अयोग्य होती है,और इसके बाद नियमों के नियम 2(ग) (ग) (ग) में उत्पन्न 'अविवाहित' शब्द का औपचारिक आदेश दिया जाता है।सिद्धांत सुनिश्चित है कि एक बार, विशेष रूप से, सविंधान के अनुच्छेद 13 के खंड (2) द्वारा शासित एक संविधान क़ानून, एक मौलिक अधिकार के उल्लंघन के लिए असंवैधानिक घोषित किया गया है, यह शून्य बना दिया गया है.यह सभी प्रयोजनों के लिए है, जो पूरी तरह से निष्प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है,भले ही वह संविधान पुस्तक पर एक मृत पत्र के रूप में लिखित हो,आरम्भ में, न्यायालय ने प्रत्यर्थी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उच्च न्यायालय के आदेश को प्रभावी होने से पहले नियमों में समुचित संशोधन करने की आवश्यकता है।सघिर अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य राज्यों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का जिक्र करते हुए,एआईआर 1954 एससी 728 और अन्य बहुत से अन्य उदाहरणों में, एकल बेंच ने कहा,जिस हिस्से पर आक्रमणकारी हुआ है, उसके विभाजन से धारा 2(ग) (iii) के भीतर की वाइरस शेष है, और यह केवल लिंग के आधार पर भेदभाव की बुराई को शुद्ध करता है,जो कुछ बचा है वह एक व्यवहार्य प्रावधान है और इसे इस तरीके से समझा जाना चाहिए कि लड़की को, उसकी वैवाहिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मृत सरकारी कर्मचारी के परिवार के सदस्य के रूप में,विवाहित या अविवाहित की तरह माना जाना चाहिए,यह न्यायालय, इसलिए, कहता है कि मृतक के परिवार की परिभाषा में बेटी शब्द को बेटी के वैवाहिक दर्जा के आधार पर पढ़े जाने की आवश्यकता नहीं है और इसके लिए सरकार द्वारा नियमों में और संशोधन की आवश्यकता नहीं है। ताकि वह मृतक सरकारी कर्मचारी की बेटी के अधिकार को नियमों के तहत प्रभावी बना सके।
*संकलनकर्ता कर विषेशज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*

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