#बर्तन तो लोहे के ही बेहतर है
खाने के बर्तन कैसे होने चाहिए यह सवाल लगातार पूछा गया है .एक पत्र भी मिला .खाने के बर्तन के बारे में मेरा मानना है कि
परम्परागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले बेहतर थे .मिर्जापुरी ' भरत ' पीतल के मुकाबले थोड़ी सफ़ेद धातु है .इसके बर्तन काफी
वजनदार होते हैं .एक बार गर्म हो जाने के बाद दाल सब्जी आसानी से पकती है .भार की वजह से नीचे लगने का भी डर कम होता
है .भरत की पतीली कुछ ज्यादा ही भारी होती है .इसमें रखा भोजन न पितलाता है न ही कसियाता है .यह धातु पीतल स्टेनलेस
स्टील के मुकाबले महंगी तो जरुर है लेकिन एलोपैथिक डाक्टरों को चुकाए जाने वाले हर्जाने में इतनी बचत कर देते हैं कि ये महंगे
बर्तन सस्ते ही साबित होते हैं .खटाई युक्त भोजन कच्चे पक्के लोहे की कड़ाही में ही पकाया जा सकता है लेकिन पकते ही उसे
मिटटी ,पत्थर या चीनी मिटटी के बर्तन में निकाल लेना चाहिए .इस तरह के भोजन को बार बार गर्म नहीं करना चाहिए .जिन्हें सिर्फ
गर्म खाना ही रुचता हो उन्हें पुराने दिनों की तरह रसोई में आसन पर बैठकर आंच से उतरता भोजन करना चाहिए .
रसोई में खड़ा चूल्हा अगर अनिवार्य हो गया हो तो वहीँ एक मेज लगा ले .मौसम ठीक हो तो मिर्जापुरी भरत में रखा भोजन चार छह
घंटे बिलकुल ठीक रहता है .तीस चालीस साल पहले बर्तन की आम दूकानों पर भरत की पतीली ,कड़ाही सहज उपलब्ध हुआ
करती थी .अब तो जगाधरीतक में भरत की ढलाई आखिरी सांस गिन रही है .फिर भी बनारस और कोलकता के बर्तन बाजार में
ढूढने पर ये मिल जाते हैं .अमदावाद शहर में जैन संत श्रीमंत हितरुचि विजय महाराज की चार पांच उत्साही युवाओं ने शुद्ध और
अहिंसात्मक अन्न वस्त्र भांडों का व्यापर शुरू किया है .
बर्तन के मामले में यह जान लें कि कुम्हार के आंवें में पके मिटटी के बर्तन तो उपयुक्त हैं ही साथ ही बिहार ,बंगाल ,दक्षिण में ढले
लोहे के बर्तन भी उपयुक्त हैं .मिर्जापुर में पीतल कसकूट आदि मिलकर ढाले गए भरत के बर्तन सभी तरह का भोजन बनाने के लिए
उपयुक्त हैं .एल्यूमीनियम के बर्तन ठीक नहीं होते .स्टील में भी अगर अच्छी गुणवत्ता का स्टील न हुआ तो उसमे बना भोजन ठीक
नहीं होता .आजकल जो कूकर चल रहे हैं उनसे हो सके तो बचना चाहिए या फिर स्टील के कूकर का इस्तेमाल करना चाहिए .
लोहे की कड़ाही में दमपुख्त
यह मूल नुस्खा तो अवध के ग्रामीण अंचल से आया था .भीगे चनो में पालक ,परवल ,लौकी ,आलू और टमाटर का सालन .आज की
खिचड़ी तो अपने आप में संपूर्ण भोजन है .पहला नुस्खा -गेंहू ,मूंग मोठ चना भीगोकर साठ से बहत्तर घंटे तक अंकुरित हो जाने दें
.इस दौरान चारो अन्न बारी बारी से धोते रहिए .स्टार्च बचेगा ही नहीं .हीं चारो अन्न पूरी तरह अंकुरित होने पर सिर्फ प्रोटीन ,रफेज और
उर्जा रूप रह जाएंगे .स्टार्च की जरूरत हो तो इसे पकाते समय इसमें मक्के का दलिया मिला सकते हैं .
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