युग रा आदि जिन केवली हुया तीर्थंकर जगभाया, दियो जीणे रौ सुज्ञान अरु विज्ञान नाभि अंगज री जयकार ।छोड़ घरबार चाल्यां साधना स्युं करने जीवन रो कल्याण, हाल्या चरणां पाछे अगणित राजकुमार जुड़ग्यो प्रभु स्यु अंतर तार| भगवान ऋषभ प्रभु जब कर्मक्षेत्र से घर्मक्षेत्र में आये, अशन ( भिक्षा खाने की मिलने की) की आशा में जगह- जगह घूम रहे थे पर कौन उन्हें खाने का आहर बहराये । भगवान को कोई कहता है कि सोना ले लो , चांदी ले लो , कन्या साथ मे झेलों आदि - आदि आपके कष्ट अपार थे। वो बोल रहे थे कि करल्यों भावना भगतां री थे स्वीकार पर कोई भी सही से रोटी री मनुहार व्रत निपजाने की भगवान ऋषभ प्रभु से नहीं कर रहा था । भगवान ऋषभ प्रभु बिना आहार के इस तरह घूम रहे थे तभी कुछ समय बाद उनके पोत्र राजा श्रेयांस को एक सपना आया कि अमृत से मेरु सिंचन होगा । वह उन्होंने अपने सपने के लिए चिन्तन किया कि प्रभुवर यह मेरा स्वप्न कैसे साकार होगा । वह इस तरह चिन्तन करते- करते राजा श्रेयांस गहराई में गये तब उनको जाति स्मृति ज्ञान हो गया । वह उनका मन भावों में तरुणाई ले , प्रभु भक्ति से भावित हो गया और उन्होंने अपने हाथों से गन्ने का रस भगवान ऋषभ प्रभु को अर्पित किया । वह उनको पारणा करवाया उस समय के लिए यह कहा जाता है कि अक्षय तृतीया शुभ आई तप की लेकर तरुणाई प्रभु ऋषभ देव की गुंजी घर - घर जय शहनाई तभी से यह अक्षय तृतीया पर्व की शुरुआत हुई | वह यह पर्व निरंतर चल रहा है । अक्षय तृतीया पर्व हमको भावित करता है । हम आज के दिन अपने आपको अक्षय के समान पावित कर अपने जीवन को उज्जवल बनाये यही हमारे लिए काम्य है ।
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