तुम गए तो आंखों में शोर था,
जैसे बारिश में छुपा कोई निचला ज़ोर था,
मिट्टी की ख़ुशबू से भीगी पिच पर,
तुम्हारे क़दमों का अभी तक कोई असर था।
तुम्हारी हर इनिंग एक कहानी थी,
पसीने से भीगी वो सफ़ेद जर्सी बेमिसाल निशानी थी,
भीड़ की धड़कन, टीम की जान,
तुम्हारे बिना ये मैदान कुछ वीरान था।
तुम गए तो तालियों की बारिश थी,
पर अंदर कहीं चुप्पी की गहराई थी,
आख़िरी छक्का, आख़िरी चौका,
और फिर वो सिर झुकाकर जाने की तन्हाई थी।
पर मत सोचो कि आख़िरी पर्दा गिरा,
हर महान कहानी का अगला हिस्सा भी लिखा,
नए सूरज की किरनें फिर से पुकारेंगी,
क्योंकि तुम हो, खेल अभी बाक़ी है, यारा!
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