Sunday, November 29, 2020

हिन्दू युवा वाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष ने किया यज्ञशाला का लोकार्पण




सुनील कुमार गुप्ता

 

कैसरगंज। बहराइच जनपद के कैसरगंज तहसील के अन्तर्गत फखरपुर में हिन्दु युवा वाहिनी के कार्यकर्ता के द्वारा फखरपुर वि0ख0 में स्थित चौधरी सियाराम इंटर कॉलेज के बगल में पुराने शिव मंदिर का  जीर्णोद्धार कराया गया है। तथा एक विश्रामालय एवं यज्ञशाला का भी निर्माण कराया गया है। जिसके लोकार्पण के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रुप में राजदेव सिंह प्रदेश उपाध्यक्ष हिंदू युवा वाहिनी के होगें तथा विशिष्ट अतिथि क्षेत्राधिकारी कैसरगंज एवं थाना अध्यक्ष फखरपुर विद्युत अभियंता विजय तिवारी तथा जिला महामंत्री इंद्र बहादुर सिंह उपस्थित रहे इस अवसर पर जिला उपाध्यक्ष अभय राज सिंह जिला मंत्री रणधीर सिंह ब्लॉक प्रभारी सुभाष दीक्षित सहित फखरपुर की पूरी टीम उपस्थित रही।


 

 




  देश का प्रधानमंत्री अन्नदाता ही होना चाहिए 

महात्मा गांधी ने हम किसानों को भारत की आत्मा कहे थे, लेकिन आज हम देख रहे हैं कि अन्नदाताओ की समस्याओं पर केवल और केवल राजनीति करने वाले अधिकतर लोग हैं ,और हमारे समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले बहुत ही कम लोग  है। साथियों  स्वतंत्र भारत के पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात आज एक लंबा समय बीतने के बाद भी हम भारतीय किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ है, यह बात आज किसी से छुपी हुई नहीं है ।जिन अच्छे किसानों की बात कही जा रही है, उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है, बढ़ती आबादी ,औद्योगिकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान हमारे राष्ट्र में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति ढुलमुल रवैया ही रहा है, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत का आत्मा कहे थे, इसके बावजूद भी केवल किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति होती रही है, उनकी मुख्य समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं गया है। आज हम सभी देख रहे हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में जब हमारे अन्नदाता अपने अधिकारों के लिए गांधीवादी तरीके से शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए अपने मांगों को रखने का प्रयास कर रहे हैं ,तो उन्हीं के बेटों यानी सेना के द्वारा उन पर पानी की बौछार और लाठियां बरसाई जा रही है। ध्यान से देखिए हमारे भारत में किसानों की हालात दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है, जिसके कारण ही आए दिन हमारे अन्नदाता आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो रहे हैं, हमारे यहां आज भी 60 से 70 प्रतिशत लोग कृषि पर ही निर्भर है । हमारे किसानों के हालात खराब होने का कारण भी राजनेता, समाज और हर  वह व्यक्ति  जो किसानों के रोटी को तो खाता है लेकिन वह सोचता है कि यह तो हम पैसे देकर खरीदे हैं, तो ठीक है आज से आप हम किसानों के अनाज को आप बायकॉट कर दीजिए, और आप अपना पैसा और कंकड़ खाइए !किसानों में आक्रोश को लेकर गांधी ने जो चेतावनी दी थी क्या आज हम उसी का सामना कर रहे हैं?आजाद भारत की सत्ता में किसानों की भागीदारी की वकालत करने वाले महात्मा गांधी ने अपनी मौत से एक दिन पहले तक कहे थे कि भारत का प्रधानमंत्री एक किसान होना चाहिए। आप देख लो साथियों किसी भी देश, समाज, जाति का सबसे उच्चतम और सम्मानीय वर्ग अगर कोई इस धरती पर है तो वह है हमारे किसान, यानी अन्नदाता ही इस धरती पर हम मनुष्यों के भगवान हैं । ऊंचे से ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी आज उन्नति और प्रगति की ऊंचाइयां छू रहे हैं ,तो यह तभी संभव है, जब देश के हम सभी लोग तन और मन से पुष्ट है, और यह तभी संभव हुआ है जब हमें पौष्टिक भोजन मिल रहा है। इसीलिए यहां हम कह रहे हैं कि देश का किसान सबसे उच्चतम पद पर होना चाहिए। विडंबना ही है साथियों की  कृषक यानी कि हमारा अन्नदाता वर्ग को समाज में सबसे ज्यादा समृद्ध होना चाहिए वही वर्ग यानी हम किसान ही सबसे ज्यादा अभावों में जीवन जीते हैं, जो सभी का पेट भरता है ,अक्सर वही और उसके बच्चे भूखे सोते हैं, सोच कर देखो इससे ज्यादा विडंबना क्या हो सकती है देश के लिए, किसी भी मनुष्य को  इस धरती पर जीवन जीने के लिए सबसे पहली और आखिरी आवश्यकता अनाज की ही होती है। अनाज के खातिर ही मनुष्य की सबसे पहली दौड़ शुरू होती है,कोई भी मनुष्य दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत करना शुरू करता है, लेकिन कुछ लोग इतनी गहराई से नहीं सोचते कि वह अनाज जो वह खाते हैं कहां से और कैसे आता है। हम सभी आज देख रहे हैं कि अन्नदाता जब सड़कों पर आज संघर्ष कर रहे है, तो इसमें भी लोग गंदी राजनीति कर रही हैं, रोटी खा खा कर किसानों को गालियां दे रहे हैं। आखिर इतना नमक हरामी  कैसे कर लेते हो बेशर्म साहब जी लोग, यह सच है कि किसानों के नाम पर कुछ राजनीतिक पार्टियों और राजनेता केवल राजनीति करते हैं उनको किसानों के दर्द से कोई मतलब नहीं है, लेकिन किसानों का हालात क्या है यह आज किसी से छिपा नहीं है।

सोच कर देखो एक किसान तपती दोपहरी में खेतों में काम करता है खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कठोर परिश्रम दिन रात करता है, एक कृषक का जीवन मेहनत और लगन की अद्भुत मिसाल होती है, एक किसान का जीवन और वस्त्र अपने खेतों की मिट्टी का हमेशा परिचय देती रहती हैं। वहीं दूसरी तरफ बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत वातानुकूलित कक्षों में बैठे पदाधिकारी इन्हीं किसानों को और उनके मिट्टी से सने वस्तुओं को देख इनसे दूरी बनाते हैं, सोचने वाला विषय है दोस्तों,इसी मिट्टी से सने हाथों और मिट्टी में उपजे अनाज से ही हम सब की पेट की भूख मिटती है और हम तृप्त होते हैं । साथियों जिस प्रकार से घर में गृहिणी अगर प्रसन्न और स्वस्थ रहती है ,तो घर स्वर्ग बन जाता है, उसी तरह अगर देश के किसानों को सम्मान मिलेगा तो किसान स्वस्थ और संपन्न रहेंगे तो देश भी उन्नति करेगा ,जिससे देश खुशहाल और समृद्ध होगा। 

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी ( विक्रम चौरसिया - चिंतक /पत्रकार/ आईएएस मेंटर/ दिल्ली विश्वविद्यालय 9069821319

भारतीय संस्कृति : आधुनिकता एवं प्राचीनता दोनों संग लेकर चलें






सत्य, शिव और सुंदर के विवेचन कठिन हैं तो भी इन्हीं तीनों की त्रयी विवेचन का मूल आधार बनती है। आधुनिकता का आग्रह स्वाभाविक है। लेकिन स्वाभाविक आधुनिकता भी प्राचीनता के गर्भ से ही आती है। हमें जीवन मूल्यों का आयात नहीं करना चाहिए। यों आधुनिकता कोई जीवनमूल्य नहीं है और प्राचीनता भी नहीं। दोनो समय और परिस्थिति का ही बोध कराते हैं। ]

 

गतिशील समाज वर्तमान से संतुष्ट नहीं रहते, और अतीत से विचलित रहते हैं। सभी संस्कृतियों में प्राचीन के साथ संवाद की परंपरा है। सारा पुराना कालवाह्य कूड़ा करकट नहीं होता। वह पूरा का पूरा बदली परिस्थितियों में उपयोगी भी नहीं होता। पुराने के गर्भ से ही नया निकलता है। वास्तविक आधुनिकता विचारणीय है। यहां प्रश्न उठता है कि आधुनिकता के पहले वास्तविक विशेषण की आवश्यकता क्यों है? इसका सीधा उत्तर है कि आधुनिकता स्व्यं में कोई निरपेक्ष आदर्श या व्यवहार नहीं है। इसका सीधा अर्थ ही प्राचीनता का अनुवर्ती है। आधुनिकता प्राचीनता के बाद ही आती है। हरेक आधुनिकता की एक सुनिश्चित प्राचीनता होती है। इसी तरह प्राचीनता की भी और प्राचीनता होती है।

 

आधुनिकता को और आधुनिक कहने के लिए उत्तर आधुनिकता शब्द का चलन बढ़ा है। सच बात तो यही है कि प्राचीनता और आधुनिकता के विभाजन ही कृत्रिम हैं। काल अखण्ड सत्ता है। काल में न कुछ प्राचीन है और न ही आधुनिक। हम मनुष्य ही काल संगति में प्राचीनता या नवीनता के विवेचन करते हैं। प्राचीनता ही अपने अद्यतन विस्तार में नवीनता और आधुनिकता है। हम आधुनिक मनुष्य अपने पूर्वजों का ही विस्तार हैं। वे भी अपनी विषम परिस्थितियों में अपने पूर्वजों से प्राप्त जीवन मूल्यों को झाड़ पोछकर अपने समय की आधुनिकता गढ़ रहे थे। ऐसा कार्य सतत् प्रवाही रहता है।

 

विज्ञान और दर्शन के विकास ने देखने और सोचने की नई दृष्टि दी है। इससे प्राचीनता को नूतन परिधान मिले हैं। ऋग्वेद प्राचीनतम ज्ञान कोष है। हम ऋग्वेद के समाज को प्राचीन कहते हैं। ऐसा उचित भी है लेकिन ऋग्वेद में उसके भी पहले के समाज का वर्णन है। ऋग्वेद जैसा मनोरम दर्शन और काव्य अचानक नहीं उगा। निश्चित ही उसके पहले भी दर्शन और विज्ञान के तमाम सूत्र थे। वैदिक पूर्वजों ने अपने पूर्वजों से प्राप्त परंपरा का विकास किया। ऋग्वेद की कविता वैदिक काल की आधुनिकता का दर्शन-दिग्दर्शन है। यही बात उपनिषद् और महाकाव्य काल पर भी लागू होती है। सांस्कृतिक निरंतरता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।

 

वैदिक काल की निरंतरता का ही विकास हड़प्पा सभ्यता है। इसे स्वतंत्र सभ्यता बताने वाले गल्ती पर हैं। कोई भी सभ्यता या संस्कृति शून्य से नहीं उगती। हड़प्पा की सभ्यता नगरीय सभ्यता है। नगरीय जीवन खाद्यान्न सहित तमाम मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर होते हैं। आधुनिक भारत का समाज प्राचीन भारत के पूर्वजों के सचेत या अचेत परिश्रम का परिणाम है। आधुनिकता में प्राचीनता की चेतना होनी चाहिए लेकिन अंग्रेजी राज के दीर्घकाल में प्राचीनता को अंधविश्वास और पिछड़ापन बताया गया। 

 

भारतीय प्राचीनता और परंपरा से ही आधुनिकता का विस्तार होता तो हम अपने जीवन मूल्यों और संस्कृति के प्रति आग्रही भाव में आधुनिक होते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमारी आधुनिकता ‘वास्तविक’ नहीं है। यह उधार की है। विदेशी है। यह विदेशी सत्ता के प्रभाव में विकसित हुई है। भारत की स्वाभाविक आधुनिकता के विकास के लिए विवेकानंद, दयानंद, गांधी, डॉ0 हेडगेवार और डॉ0 अम्बेडकर, पं0 दीनदयाल उपाध्याय आदि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तमाम प्रयास किए। लोकमत का परिष्कार और संस्कार भी हुआ। इसके तमाम सकारात्मक लाभ भी हुए। विश्व सम्पर्क से भारत की समझ भी बढ़ी।

 

भारतीय सम्पर्क से विश्व का भी ज्ञानवर्द्धन भी हुआ लेकिन भारत में लोकमत के संस्कार का काम संतोषजनक नहीं है। हम भारत के लोग बहुधा दुनिया के अन्य देशों की जीवनशैली की प्रशंसा करते हैं। यहां विदेशी सभ्यता को अपनी सभ्यता से श्रेष्ठ बताने वाले भी हैं। संप्रति भारतीय आधुनिकता भारतीय नहीं जान पड़ती। यह प्राचीनता का स्वाभाविक विस्तार नहीं है। इस आधुनिकता में विदेशी जीवनमूल्यों का घटिया प्रवाह है। यह भारत के स्वयं को आत्महीन बना रही है। इसलिए मूल परंपरा से संवाद जरूरी है। उसके पक्ष में लोकमत बनाना और भी जरूरी है।

 

आधुनिकता भारतीय प्राचीनता की ही पुत्री है। प्राचीनता मां है और आधुनिकता पुत्री। माता पूज्य है और पुत्री आदरणीय। दोनो स्वतंत्र सत्ता नहीं हैं। आधुनिकता को यथासंभव मां के सद्गुणों का अवलम्बन करना चाहिए और देश काल परिस्थिति के अनुसार स्वयं का पुनर्सृजन व विकास भी करना चाहिए। प्राचीनता पिछड़ापन नहीं है। प्राचीनता का विवेचन जरूरी है। प्राचीनता की गतिशीलता में ही हम आधुनिक होते हैं। गति के साथ अनुकूलन करना और अनुकूलन व अनुसरण में ही प्रगतिशील होते जाना काल का आह्वान है।

 

वर्तमान समाज व्यवस्था व जीवन शैली संतोषजनक नहीं है। इसका मुख्य कारण प्राचीनता से अलगाव है। आयातित आधुनिकता ने हमारी स्वाभाविक संस्थाएं भी तोड़ी हैं। परिवार, प्रीति और आत्मीयता के बंधन टूट रहे हैं। असंतोष विषाद बन रहा है और विषाद अवसाद। इसलिए लोकमत निर्माण में लगे सभी विद्वानों, पत्रकारों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ता और मूल्यनिष्ठ राजनेताओं को ध्येयनिष्ठ, स्वाभाविक आधुनिकता के सृजन में जुटना चाहिए।

 

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प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




Saturday, November 28, 2020

गरीबी कभी भी शिक्षा में बाधक नहीं 

 गरीबी में जीवन जीने वाले व्यक्तियों को ना तो अच्छी शिक्षा की प्राप्ति होती है ना ही उन्हें अच्छी सेहत मिलती है. भारत में गरीबी देखना बहुत आम सा हो गया है क्योंकि ज्यादातर लोग अपने जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर सकते हैं। ]

गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा है और अशिक्षा से अज्ञानता पनपती है. गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा तो छोडिये सामान्य शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाते हैं. शिक्षा का अधिकार सभी लोगों को है लेकिन गरीबी के कारण ऐसा नहीं हो पाता है. हमारी भारत सरकार गरीब लोगों के लिए कई सारे अभीयान चलाती है लेकिन अशिक्षित होने के कारण गरीबों तक उस अभियान की जानकारी नहीं पहुँच पाती है। 

 

हम जिस युग में जी रहे हैं उसमे आधुनिक तकनीकी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है जिसे सिखने या इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा की अहमियत होती है. शिक्षा हम सभी के उज्जवल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है. हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं. ये तो हम हमेसा से सुनते आये हैं की शिक्षा पर दुनिया के हर एक बच्चे का अधिकार है. देश के विकास के लिए प्रत्येक बच्चे का शिक्षित होना बेहद जरुरी है।

 

हमारे देश की हालत को सुधारने का एक मात्र रास्ता है शिक्षा. गरीबी एक ऐसी समस्या है जो हमारे पुरे जीवन को प्रभावित करने का कार्य करती है. गरीबी एक सामाजिक समस्या है जो इंसान को हर तरीके से परेशान करती है. इसके कारण एक व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर आदि जैसी सारी चीजें ख़राब हो जाती है. आज के समय में गरीबी को दुनिया के सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना जाता है।

 

गरीब लोगों में जागरूकता और जानकारी का अभाव तथा उनका गैर प्रगतिशील नज़रिया एक ऐसा मुलभुत कारण है जिसे गरीबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जानकारी तथा जागरूकता की कमी के कारण गरीब लोग सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं. इसलिए प्राथमिक शिक्षा भी गरीबों के लिए बहुत ही जरुरी होता है।

 

बेहतर शिक्षा सभी के लिए जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है. यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है. आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व क्या है ये गरीब परिवार और पिछड़ी जाती के लोगों को बताना अति आवश्यक है तभी वो अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

 

शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चलायी जा रही है ताकि सभी की शिक्षा तक पहुँच संभव हो. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के महत्व और लाभों को दिखाने के लिए टीवी और अखबारों में बहुत से विज्ञापनों को दिखाया जाता है क्योंकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी और शिक्षा की ओर अधूरी जानकारी के कारण पढाई करना नहीं चाहते हैं।

 

सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य सभी को शिक्षित करके उन्हें अपने पैर पर खड़ा करना है जिससे समाज का कल्याण हो सके. इसके अलावा बालक बालिका का अंतर समाप्त करना, देश के हर गांव शहर में प्राथमिक स्कूल खोलना और मुफ्त शिक्षा प्रदान करना, निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, स्कूल ड्रेस देना, शिक्षकों का चयन करना, उन्हें लगातार प्रशिक्षण देते रहना, स्कूलों में अतिरिक्त कक्षा का निर्माण करना आदि सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य में शामिल हैं। बालिका छात्रों तथा कमजोरवर्गों के बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है. डिजिटल दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।

 

स्कूली शिक्षा बिना अमीरी गरीबी का भेदभाव किये सभी बच्चों को मिलनी चाहिए क्योंको ये सभी के जीवन में एक महान भूमिका निभाती है. शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जैसे तिन प्रभागों में विभाजित किया गया है. शिक्षा के सभी भागों का अपना महत्व और लाभ है. प्राथमिक शिक्षा आधार तैयार करती है जो जीवन भर मदद करती है।

 

माध्यमिक शिक्षा आगे के अध्ययन के लिए रास्ता तैयार करती है और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा भविष्य और पुरे जीवन का अंतिम रास्ता तैयार करती है. उचित शिक्षा भविष्य में आगे बढ़ने के बहुत सारे रास्ते बनाती है. यह हमारे ज्ञान स्तर, तकनिकी कौशल और नौकरी में अच्छी स्थिति को बढाकर हमें मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से मजबूत बनाता है। पहले भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत सख्त थी और सभी वर्गों के लोग अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे. ज्यादा पैसे लगने की वजह से विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना बहुत कठिन था. लेकिन अब शिक्षा प्रणाली में बदलाव किये गए हैं जिससे शिक्षा में आगे बढ़ना सरल और आसान हो गया है।

 

शिक्षा के कारण ही कई तरह के आविष्कार हुए हैं. इन अविष्कारों से मनुष्य का जीवन और भी आसान हो गया है. अच्छी शिक्षा की वजह से अच्छे अच्छे इंजीनियर, डाॅक्टर, वैज्ञानिक एवं व्यवसायी आदि बनते हैं, जो समाज को काफी कुछ देते हैं जिनसे अनगिनत लोगों को कई फायदे मिलते हैं। शिक्षा के वजह से ही व्यापार का विकास होता है और देश की आय में बढ़ोतरी होती है. अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना जैसे कई सारे मुद्दों के बारे में सोचने समझने की काबिलियत प्रदान करता है।

 

समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा तथा भेदभाव जैसे ऐसी समस्याएं हैं जो आज के समय में विश्व भर को प्रभावित कर रही है. इसे देखते हुए हमें इन कारणों की पहचान करनी होगी और इनसे निपटने की रणनीति बनाते हुए समाज के विकास को सुनिश्चित करना होगा क्योंकि गरीबी का सफाया समग्र विकास के द्वारा ही संभव है।

 

दिल की आवाज सुनो राही

दिल की आवाज  सुनो  राही

बंद   न   करना   आवाजाही

 

आपस  में  गर टकराए कभी

बिन झगड़ा क्षमा करना तभी

 

झगड़ा कर कौन खुश हुआ है

जीत  में  गम  दबाए  हुआ  है

 

रात  बिलखती  ही  रहती  है

दिन   सहमा  हुआ  रहता  है

 

अफसोस  रहता  है  उम्र  भर

दिल ने कहा था झगड़ा न कर

 

बात मान लिया  होता  अगर

तो  ऐसे  ना  रहता  उम्र  भर

 

अब  जीना  दुश्वार  लगता है

मरने  से  भी   जी  डरता  है

 

उधेड़बुन   में   है    ये    राही

दिल की आवाज  सुनो  राही ।

                 ✍️ ज्ञानंद चौबे

                  केतात , पलामू

                       झारखंड

भारतीय संविधान की गौरव गाथा 

 डॉ. भीम राव आंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता माना जाता है. निःसंदेह उन्होंने समानुभूति के साथ संविधान को रूप, आकार, स्वरूप, चरित्र प्रदान किया. लेकिन वास्तविकता यह है कि संविधान के निर्माण में केवल डॉ. भीम राव आंबेडकर की ही भूमिका नहीं थी. भारत का संविधान एक साझा पहल का नतीजा है। ]


भरतीय परिप्रेक्ष्य से अक्सर हमारे सामने यह तथ्य आता है कि भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर हैं, लेकिन यह एक अधूरा तथ्य है. डॉ. आंबेडकर ने भारत के संविधान में न्याय, बंधुत्व और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र के भाव को स्थापित करने में केन्द्रीय भूमिका जरूर निभाई थी, किन्तु वे संविधान के अकेले निर्माता या लेखक नहीं थे।


जहां तक संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया का सवाल है, इसमें व्यापक रूप से संविधान सभा के कई सदस्यों ने ऐसी भूमिका निभाई थी, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. मसलन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मूलभूत अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए बनाई गई समिति का समन्वय किया था. आदिवासी समाज के हकों पर जयपाल सिंह ने बहुत अहम भूमिका निभाई, तो वहीं इसे भारतीय दर्शन से जोड़ने में डॉ. एस. राधाकृष्णन की भूमिका बहुत अहम रही।


29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने मसौदा (प्रारूप) समिति के गठन का निर्णय लिया. इस समिति की भूमिका के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि "परिषद् (संविधान सभा) में किए गए निर्णयों को प्रभाव देने के लिए वैधानिक परामर्शदाता (बी एन राव) द्वारा तैयार किए गए भारत के विधान (संविधान) के मूल विषय की जांच करना, उन सभी विषयों के जो उसके लिए सहायक हैं या जिनकी ऐसे विधान में व्यवस्था करनी है और कमेटी द्वारा पुनरावलोकन किए हुए विधान के मसौदे के मूल रूप को परिषद् के समक्ष विचारार्थ उपस्थित करना।


यह भी एक सच है कि डॉ. आंबेडकर ने 25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में संविधान का अंतिम मसौदा प्रस्तुत करते हुए जो कहा, उसे भारत ने भुला दिया है. उन्होंने कहा था कि “जो श्रेय मुझे दिया जाता है, उसका वास्तव में मैं अधिकारी नहीं हूं. उसके अधिकारी बी एन राव हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता है. और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का एक मोटे रूप में मसौदा बनाया. कुछ श्रेय मसौदा समिति के सदस्यों को भी मिलना चाहिए, जिन्होंने 141 दिन तक बैठकें कीं और उनके नए सूत्र खोजने के कौशल के बिना तथा विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहनशील तथा विचारपूर्ण सामर्थ्य के बिना इस संविधान को बनाने का कार्य इतनी सफलता के साथ समाप्त न हो पाता।


सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक एस.एन. मुखर्जी को है, बहुत ही जटिल प्रस्थापनाओं को सरल से सरल तथा स्पष्ट से स्पष्ट वैध भाषा में रखने की उनकी योग्यता की बराबरी कठिनाई से की जा सकती है. इस सभा के लिए वे एक देन स्वरूप थे. उनकी सहायता न मिलती तो इस संविधान को अंतिम स्वरूप देने में इस सभा को कई और वर्ष लगते।


यदि यह संविधान सभा विभिन्न विचार वाले व्यक्तियों का एक समुदाय मात्र होती, एक उखड़े हुए फर्श के समान होती, जिसमें हर व्यक्ति या हर समुदाय अपने को विधिवेत्ता समझता तो मसौदा समिति का कार्य बहुत कठिन हो जाता. तब यहां सिवाए उपद्रव के कुछ नहीं होता. सभा में कांग्रेस पक्ष की उपस्थिति ने इस उपद्रव की संभावना को पूरी तरह से मिटा दिया. इसके कारण कार्यवाहियों में व्यवस्था और अनुशासन दोनों बने रहे. कांग्रेस पक्ष के अनुशासन के कारण ही मसौदा समिति यह निश्चित रूप में जानकर कि प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन का क्या भाग्य होगा, इस संविधान का संचालन कर सकी. अतः इस सभा में संविधान के मसौदे के शांत संचालन के लिए कांग्रेस पक्ष ही श्रेय की अधिकारी है।


यदि इस पक्ष के अनुशासन को सब लोग मान लेते तो संविधान सभा की कार्यवाही बड़ी नीरस हो जाती. यदि पक्ष के अनुशासन का कठोरता से पालन किया जाता तो यह सभा "जी हुज़ूरों" की सभा बन जाती. सौभाग्यवश कुछ द्रोही थे. श्री कामत, डॉ. पी.एस. देशमुख, श्री सिधावा, प्रो. सक्सेना और पंडित ठाकुर दास भार्गव थे. इनके साथ-साथ मुझे प्रो. के.टी. शाह और पंडित हृदयनाथ कुंजरू का भी उल्लेख करना चाहिए. जो प्रश्न उन्होंने उठाए, वे बड़े सिद्धान्तपूर्ण थे. मैं उनका कृतज्ञ हूं. यदि वे न होते तो मुझे वह अवसर नहीं मिलता, जो मुझे इस संविधान में निहित सिद्धांतों की व्याख्या करने के लिए मिला और जो इस संविधान के पारित करने के यंत्रवत कार्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था।


चूंकि भारतीय संविधान के बारे में यह कहा जाता है कि यह ब्रिटिश उपनिवेशवादी व्यवस्था के तहत बनाए गए भारत शासन अधिनियम (1935) की प्रतिलिपि है. इसके लिए डॉ. भीम राव आंबेडकर की सभा में खूब आलोचना भी हुई. इस विषय में पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने कहा कि इस विषय पर जो कुछ मैं कह सकता हूं, वह यह कि मसौदा समिति, डॉ. आंबेडकर और उन सबके लिए जिन्होंने डॉ. आंबेडकर का साथ दिया, यह गौरव की बात है कि वे संकीर्णता की किसी भी भावना से प्रेरित नहीं हुए. आखिर हम एक संविधान बना रहे हैं. हमारे सामने आधुनिक प्रवृत्तियां, आधुनिक कठिनाइयां और आधुनिक समस्याएं हैं. अपने संविधान में हमें इन सबके लिए उपबंध करना हैं और इस कार्य के लिए यदि हमने भारत शासन अधिनियम का सहारा लिया, तो हमने कोई पाप नहीं किया है।


संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 26 नवम्बर 1949 को, यानी उस दिन, जब संविधान आत्मार्पित किया गया, सभा की कार्यवाही का समापन करते हुए कहा कि "संविधान के संबंध में जिस रीति को अपनाया, वह यह थी कि सबसे पहले "विचारणीय बातें" निर्धारित की, जो लक्ष्य मूलक संकल्प के रूप में थी, जिसके ओजस्वी भाषण द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया था और जो अब हमारे संविधान की प्रस्तावना है. इसके बाद संविधानिक समस्याओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए कई समितियां नियुक्त की गईं।


भारत का संविधान एक साझा, प्रतिबद्ध और मूल्य आधारित प्रक्रिया से निर्मित विधान है. इसमें विचारों, समुदायों और संस्कृतियों के साथ-साथ विविध राजनीतिक धाराओं की सक्रिय भागीदारी रही है. यह संविधान केवल राज्य व्यवस्था के नियम ही निर्धारित नहीं करता है, बल्कि व्यक्तियों की सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक आज़ादी की व्याख्या भी करता है. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि यह एक सहभागी और सहिष्णु प्रक्रिया के साथ बनाया गया संविधान था।


Wednesday, November 18, 2020

भारतीय संस्कृति में पर्व एवं त्योहार एकता के प्रतीक हैं 

जीवन को हंसी खुशी व रिश्तों को मजबूत बनाने में त्योहारों का अहम् योगदान है। भारत त्योहारों का देश है। साल के हर दिन कोई न कोई त्योहार यहां मनाया जाता है। त्योहार खुशियां बांटने और पूरे समाज को जोड़ने का काम करते हैं। ईद , तीज ,गणेश चतुर्थी ,कृष्ण जन्माष्टमी ,दशहरा ,होली, दीवाली ,क्रिसमस ,छठपूजा ,ओणम ,महाशिवरात्रि, नवरात्री ,मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, कुम्भ मेला आदि।


अनगिनत त्योहर और मेले हमें एकता और भाईचारे का सन्देश देते है। त्योहारों पर लगने वाले मेले कौमी एकता और सांप्रदायिक सोहाद्र के अनूठे उदहारण है। इन पर्वों और मेलों में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हो कर दुनियां को भारत की बहुरंगी संस्कृति झलक दिखाते है।
मेले एवं त्योहार हमारी समृद्ध संस्कृति, परम्परा एवं रीति-रिवाजों के परिचायक हैं। विविधता में एकता के प्रतीक मेले और उत्सवों के आयोजन से हमारी संस्कृति को संजोने और सहेजने को बल मिलता है, साथ ही साथ नई पीढ़ी को हमारी स्मृद्ध संस्कृति एवं परम्पराओं का भी ज्ञान होता है। मेलों के आयोजन से भाईचारा, सद्भाव कायम रहता है। मेले ग्रामीण समाज को जीवंत बनाते है । मेलों के माध्यम से अनेक प्रकार की वस्तुये एक स्थान पर बिकने आती हैं और साथ ही दर्शकों मनोरंजन होता है।


जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। मेले और त्योहार भारत का एक बड़ा आकर्षण है। यह इस देश की जीवंत संस्कृति को तो दिखाते ही हैं साथ ही यह भारत के पर्यटन उद्योग में भी बहुत खास जगह रखते हैं। भारत की समृद्ध संस्कृति के असली रंग दिखाने के अलावा ये मेले और त्योहार देश में सैलानियों के आने के लिए आकर्षण पैदा करने में बहुत महत्व रखते हैं। ये त्योहार देश के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। वास्तव में एक दूसरे के निकट आने और आपसी सहयोग और सौहार्द की भावना ने मेलों को जन्म दिया जिसकी झलक वर्तमान भारत में भी देखी जा सकती है।


भारत मेलो और तीज त्योहारों का देश है। यहाँ दुनियाँ के सबसे ज्यादा त्योहार मनाये जाते है। यही पर दुनियाँ में सबसे ज्यादा मेलो का आयोजन होता है । इनमे से कुछ मेले तो दुनिया के सबसे बड़े व विशाल मेलो में शुमार है जिन्हें देखने पूरी दुनिया से हर साल लाखों लोग भारत आते है । भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक न जाने कितने प्रकार के मेले भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना अपना महत्व है। मेलों को संस्कृति और रंगीन जीवन शैली का पैनोरमा कहा जा सकता है। इन मेलों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का अद्वितीय और दुर्लभ सामजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता। मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं।


मेला स्थानीय लोक संस्कृति, परंपरा और लोक संस्कारों के विविध रूपों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। भारत में मेले, लोकसंस्कृति और परंपरा के माध्यम से आस्था, उमंग और उत्सव की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मेलों का आयोजन प्राय किसी पर्व या त्योहार के अवसर पर किया जाता है। मेला हमारे समाज को जोड़ने तथा हमारी संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित रखने में अहम् भूमिका निभाता है। यह उत्पादकों और खरीददारों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराता है। खाने-पीने से लेकर मौज-मस्ती की सभी चीजें मेले को आकर्षक बनाती हैं। मेलों में कहीं लोकगीतों की लहरियां हमारे दिल के तार को झंकृत करती हैं तो कहीं लोकनृत्य के माध्यम से हमारे तन-बदन में थिरकन पैदा होने लगती है।


Monday, November 16, 2020

भाई दूज मनाने की रोचक कथा

रक्षाबंधन पर्व के समान भाई दूज पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है|  इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है| भाई दूज का पर्व भाई बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व है, भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला एक ऐसा उत्सव है, जो भाई के प्रति बहन के अगाध प्रेम और स्नेह को अभिव्यक्त करता है| इस दिन बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए कामना करती हैं|

 

इस बार भाई दूज का त्योहार 16 नवंबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार भाई बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाई का तिलक करके उनकी लंबी उम्र और उन्नति की प्रार्थना करती हैं। भाई भी अपनी बहन के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेते हैं। इस त्योहार की पौराणिक कथा सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमुना से जुड़ी हुई है।

 

शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव और पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं - एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थी जिसके कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण किया और अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव नहीं था, परंतु यम और यमुना दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था।

 

यमदेव अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन काम की अधिकता के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए उनसे  मिलने उनके घर चले गए। जब यमुना ने अपने भाई को देखा तो खुशी से प्रफुल्लित हो उठीं। भाव विभोर होकर यमुना ने अपने भाई के लिए व्यंजन बनाए औऱ उनका आदर सत्कार किया। अपने प्रति बहन का प्रेम देखकर यमराज को अत्यंत प्रसन्नता हुई। उन्होंने यमुना को खूब सारी भेंटें दीं।

 

जब चलने का समय हुआ तो बहन से विदा लेते समय यमराज ने बहन यमुना से कहा कि अपनी इच्छा का कोई वरदान मांग लो। तब यमुना ने अपने भाई के इस आग्रह को सुनकर कहा कि,अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। कहते हैं कि इसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष भाईदूज का त्यौहार मनाया जाता है।

 

गाय माता के पूजा का पर्व गोवर्धन पूजा

गोवर्धनका अर्थ है गौ संवर्धन। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। जो यह संदेश देता है कि हमारा सम्पूर्ण जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है। इसलिए हमें प्रकृति का धन्यवाद देना चाहिए। इस दिन विशेष रुप से गाय माता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन कोई दुखी है तो साल भर दुखी रहेगा। मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को मनाना चाहिए। इस दिन स्नान से पूर्व तेला लगाना चाहिये। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दारिद्र का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह सालभर सुखी और समृद्ध रहता है।

               दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा का विशेष महत्व है। आज गोवर्धन पूजा का पावन पर्व है, मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। आज गोवर्धन पूजा के साथ भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाएगी। शिल्पकार और श्रमिक वर्ग गोवर्धन पूजा के दिन दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज अपने घर- व्यवसाय के विकास व वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं।

            दीपावली के उत्सव के चौथे दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था। अन्नकूट पूजा को अत्यधिक कृतज्ञता, जुनून और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है।

 


भाई- बहन के प्यार व स्नेह का प्रतीक : भैया दूज

भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्योहार पूरे भारत ने बड़े उत्साह व उल्लास से मनाया जाता है। रक्षाबंधन की तरह भैया दूज का त्यौहार भाई बहन के अनन्य प्रेम और स्नेह का प्रतीक है ।  

  दीपावली के पांच दिवसीय त्योहार के अंतिम पांचवे  दिन भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है ।इसको यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विवाहिता बहन अपने भाई को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती है और भाई को तिलक कर,मुंह मीठा कराकर कलाई के कलावा बांधती है।और भाई की दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है। एवं भाई भी अपनी बहन को उसके मान सम्मान की रक्षा करने व उसका साथ देने का वादा करता है ।और बहन को उपहार देता है। इससे भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह में प्रगाढ़ता आती है।   

     प्राचीन काल से भाई-बहन के परस्पर प्यार व स्नेह का पर्व भाई दूज का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है । रक्षाबंधन के बाद बहन भाई दूज की बेसब्री से इंतजार करती है,और विश्वास होता है उसका भाई कहीं भी,कितनी दूर क्यों ना हो,भाई दूज पर जरूर उसके घर आएंगे।आधुनिकता के दौर में भी आज भी भाई -बहन के अनन्य प्यार,स्नेह और  विश्वास का प्रतीक यह त्यौहार मनाया जा रहा है।

*पौराणिक मान्यताएं*

   पौराणिक कथाओं के अनुसार

सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को बड़े प्यार और स्नेह से अपने घर भोजन करने के लिए कई बार आग्रह किया। लेकिन यमराज हर बार बहन की बात को टालते रहे।आखिर कार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंच गए, बहन यमुना अपने भाई यमराज को अचानक अपने घर आया देखकर बहुत खुश हो जाती है ।यमुना अपने भाई का बड़े प्यार-स्नेह से आदर सत्कार करती है ।यमराज अपनी बहन यमुना का अपने प्रति स्नेह और आदर सत्कार देखकर भाव विभोर हो जाते हैं। यमराज बहन के प्यार व स्नेह से बहुत खुश होते हैं औरअपनी बहन यमुना से वर मांगने के लिए कहते हैं।

 यमुना भाई यमराज से वर मांगती है की है कि आप हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेरे घर आकर भोजन करें और जो भी बहन प्यार और जो भी बहन स्नेह से अपने भाई को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित कर, भाई को तिलक करके भोजन कराती है।उसको आपका भय ना हो।यमराज बहन को तथास्तु कहकर यम लोक चले जाते है।उस दिन से यह प्राचीन परंपरा भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह और स्नेह से मनाया जाता है।

अपने ढँग से जीने दो


माना हम छोटे बच्चे हैं,

अपनी भी इक्षाएं हैं।

अपने भी तो कुछ सपने हैं,

अपनी भी आशाएं हैं।

 

खेल खिलौने अजब अनूठे,

अपनी भी कुछ बातें हैं।

उजले-उजले दिन हैं अपने,

सपनों बाली रातें हैं।

 

मन पतंग की तरह हमेशा,

उच्च उड़ाने भरता है।

अपने ढँग का काम अनोखा,

करने को मन करता है।

 

इंद्रधनुष सा रंग-रँगीला,

अपना तो संसार है।

जिसमें राज कुँवर के जैसा,

अपना तो किरदार है।

 

लेकिन कोई नहीं समझता,

अपनी सोच थोपते हैं।

उनके जैसा बनूँ, करूँ मैं,

हमसे यही बोलते हैं ।

 

कैसे उनको समझाऊँ मैं,

अमृत रस को पीने दो।

बचपन की मस्ती के ये दिन,

अपने ढँग से जीने दो।

 


दीपोत्सव, गोवर्धन  का पर्व बड़े   हर्षोउल्लास से मनाया

नई दिल्ली 16 नवम्बर(डॉ शम्भू पंवार) भारतीय संस्कृति में हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्यौहार दीपावली बड़े उत्साह ओर हर्षोल्लास से मनाया गया इस बार दीवाली पूजन का समय गोधूलि वेला से प्रारम्भ होने से सांय होते ही व्यवसायी अपने अपने प्रतिष्ठानों में ओर आमजन अपने अपने घरों में साफ-सफाई कर के

युवतियां,बच्चे बड़े उत्साह से सुंदर सुंदर रंगोली बनाने में लग गई तथा सांय होते ही विधि विधान से विघ्नहर्ता गणेश लक्ष्मी,कुबेर जी की पूजा अर्चना की।

 आज मार्किट में सुबह से लोगो की काफी गहमागहमी रही।कोरोना काल से त्रस्त लोग काफी समय बाद खुल कर बाजारों में खरीददारी को आये।फिर भी मास्क लगाना नही भूले।पूरी सतर्कता अपनाए हुवे थे। 

    यधपि कोरोना काल मे हुई आर्थिक मार का असर मार्किट में खरीदारी पर देखने को मिला।इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, व  नए वाहन के प्रतिष्ठानों की सेल पहले की अपेक्षा बहुत कम रही। जबकि मार्केट में मिष्ठान,रेडिमेड, पूजा सामग्री, सजावटी सामान की दुकानों पर भीड़ देखने को मिली। दीपावली पर व्यवसायियों ने अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को रंगीन इलेक्ट्रिक लाइट, बन्दरवार से काफी आकर्षक ढंग  से सजाया। 

लोकल फ़ॉर वोकल:-

भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव को लेकर आमजन ने इस बार चाइनीज समान इलेक्ट्रिक लाइट,बन्दरवार,दीपक आदि समान का बहिष्कार किया। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फ़ॉर वोकल के आह्वान पर लोकल बन्दरवार,लाइट व मिट्टी के दीयो से दीवाली का त्यौहार मनाया। इस बार दीवाली कुंभकारों के लिए खुशियां की सौगात लेकर आई है। कुम्भकारों ने भी समय के साथ आधुनिकता की हवा और जनमानस की भावनाओं को समझा। और मिट्टी के दीपको पर अपनी कला को आधुनिक  डिजाइनिंग और रंग बिरंगे रंगों में कलात्मक रूप देकर नए जोश और उत्साह से मार्केट में लेकर आए ।मिट्टी के बने इन रंग बिरंगे कलात्मक दीपकों ने आमजन को काफी आकर्षित किया। दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन  पूजा भी बड़े उत्साह से की।लोगो ने अपने घर के आगे गोबर से  गिरिराज जी का चित्र बना कर पूजा की।मंदिरों में अन्नकूट का प्रसाद बनाया गया।

Thursday, November 12, 2020

मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में हुआ जमकर मुकाबला

रैंप पर मॉडल अपने अलग अलग अंदाज में नजर आये


टलेंगे राउंड में सपना चैधरी के गानों पर प्रतिभागियों ने दी प्रस्तुतियां


आगरा । आरोही इवेंट्स के मिस्टर एन्ड मिस आगरा , सीजन-9, 2020 का सेमीफाइनल होटल मार्क रॉयल के प्रांगड़ में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगल सिंह धाकड़ एवं ग्लैमर लाइव फिल्म के निर्देशक सूरज तिवारी ने किया।आज के कार्यक्रम वशिष्ठ अतिथि के रूप में अनमोल जो कक फेम है आंटी जी जिसको सबाना आजमी के निर्देशन में थी।


निदेशक अमित तिवारी ने बताया कि आज मिस्टर एन्ड मिस आगरा के सेमीफाइनल में मिस आगरा व मिस्टर आगरा के शीर्षक के लिए 20ध्20 प्रतिभागियों ने इंट्रोडक्शन व सवाल जवाब के साथ अपने टैलेंट राउंड से हुनर दिखाया। फाइनल में 7ध्7 प्रतिभागियों के चयन किया गया है, सेमीफाइनल में निर्णायक की भूमिका में  सारा मून (मिस यु.पी 2009),पी.एस गीत( मिस इंडिया क्वीन ऑफ ब्रिलिएन्सी इंटरनेशनल), मोनिका यादव(मिस नार्थ इंडिया फोटोजनिक) रही।  सारा मून ने बताया कि सेमीफाइनल में चुने गए प्रतिभागियों को 5 दिन की ग्रूमिंग दी जाएगी व इस बार की शो की थीम बहुत ही आकर्षित होगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित  मंगल सिंह धाकड़ ,डॉ राशिद चैधरी, अरविंद राणा , ऐ. पी साउंड से आंनद आदि उपस्थित रहे।
विशेषरू मिस्टर एन्ड मिस आगरा के विजयी प्रतिभागियों को ताज पहनाने आएंगी सपना चैधरी।