Wednesday, December 20, 2023

पत्तल

आइए, पत्तलों की परंपरा फिर से पुनर्जीवित करते हैं, be organic....
खुशी इस बात की है कि हम सभी अपनी संस्कृति को सहेजने को आतुर हैं व अपनी परंपराओं का आज भी सम्मान करते हैं। हमारे पत्तल, डोने बनाने वाले भाई व उनके परिवार आप सबका स्नेह पाकर बहुत खुश हैं और अपने इस रोजगार के लिए उन्हें रोशनी की न ई किरण दिखी है। मुझे उम्मीद है हम उन्हें नाउम्मीद नहीं होने देंगे। जो भरोसा आप सबने उन्हें दिलाया है वो कायम रहेगा ..


अकसर हम ब्रेंडिड चीजें बिना मोल भाव के लेते हैं। कभी बिना मोलभाव अपनी परंपरा को भी देना चाहिए। हमें भूलना नहीं चाहिए परंपरा, पर्यावरण, पेशा, परिवार, पशुधन का संरक्षण हमारा ही दायित्व है

Monday, December 18, 2023

ड्योढी पर पड़े पायदान पर, अपना अहं झाड़ आना

 आ गए तुम?

द्वार खुला है, अंदर आओ..!
पर तनिक ठहरो..
ड्योढी पर पड़े पायदान पर,
अपना अहं झाड़ आना..!
मधुमालती लिपटी है मुंडेर से,
अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना..!
तुलसी की क्यारी में,
मन की चटकन चढ़ा आना..!
अपनी व्यस्ततायें,*बाहर खूंटी पर ही *टांग आना..!
जूतों संग, हर नकारात्मकता उतार आना..!
बाहर किलोलते बच्चों से,
थोड़ी शरारत माँग लाना..!
वो गुलाब के गमले में,
मुस्कान लगी है..
*तोड़ कर पहन आना..!*
लाओ, अपनी उलझनें मुझे थमा दो..
तुम्हारी थकान पर, *मनुहारों का पँखा झुला दूँ..!
देखो, शाम बिछाई है मैंने,
सूरज क्षितिज पर बाँधा है,
लाली छिड़की है नभ पर..!
प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर,* चाय चढ़ाई है,
घूँट घूँट पीना..!
सुनो, इतना मुश्किल भी नहीं हैं जीना..!!

Saturday, December 16, 2023

गुड़

 गुड़ बनेगा!

बैल से चलने वाला कोल्हू भले नही है लेकिन इस तरह का कोल्हू अब भी मेरे घर पर है।
दूसरे गांव से एक परिवार गन्ना लेकर घर आया है गुड़ बनाने उनकी तैयारी देखी तो एक तस्वीर ले ली सोचा आप सब लोग से साझा करें।।


जब घर पर कोल्हू रहता है तो जब मन करे ताजा ताजा गन्ने का रस पियो।
सर्दियों में घर के छोटे आलुओं के दो टुकड़े करके, हरी धनिया, लहसुन पत्ती, हरी मिर्च से बने हरे मसाले के साथ बनी मटर की घुघनी और ताजा गन्ने का रस अहा!
किसी भी स्ट्रीट फूड नाश्ते को मात देता है।
कोल्हू से गन्ने के रस को निकालकर इस बड़े कड़ाह में पकाकर गुड़ बनता है जब गुड़ पकता है तो बहुत दूर तक मीठी मीठी खुश्बू फैल जाती है। दूसरे गांव तक के लोगो को पता चल जाता है कि आज कोई गुड़ बना रहा है।
जब गुड़ लगभग पक कर तैयार होने वाला होता है तब एक धागे में आलू, सेम और जो भी आपका दिल करे गूथ कर लड़ी बनाकर कड़ाह में लटका देते हैं। पक जाने पर थोड़े से गुड़ की चाशनी के साथ निकालकर फिर खावो अहा!
गुड़ की चाशनी को कड़ाह से एक लकड़ी के चाक(तश्तरी नुमा बर्तन) में निकाल लेते हैं और कड़ाह में ठंडा पानी डाल देते हैं कड़ाह में जो चाशनी लगी होती है फिर उसे इक्ट्ठा करके निकाला जाता है ये सब बच्चों का फेवरेट होता है इसे हमारे यहाँ चिमचा कहते हैं इस चिमचे के आगे हर तरह की चॉकलेट, च्युंगम फेल हैं।
जब कड़ाह उतर जाता है तब उसकी आग(जिस पर कड़ाह रखा जाता है उसे गुलवर कहते हैं) में तार में गूथ कर आलू डाल दिया जाता है और आग में पकने के बाद बढ़िया तीखे चटपटे नमक के साथ खाइए या भरता बनाकर खाये।
हमारे यहाँ तीन तरह के गुड़ बनते हैं एक सामान्य गुड़ होता है जिसके एक गुड़ का वजन लगभग एक पाव होता है मेरी नानी एक किलो गुड़ के लिए चार गुड़ देती थी।
दूसरा चाशनी कड़ी होने से पहले निकालकर रख लेते हैं इसे राब या ककई कहते हैं। इसका संरक्षण बहुत ध्यान से करना पड़ता वरना तरल होने की वजह से जल्दी खराब हो जाती है।
इसे मिट्टी के बड़े बड़े मटके या मिट्टी की छोटी टँकी( धुनकी ) में रखकर अच्छी तरह बन्द कर दिया जाता है। खाने के लिए किसी बर्तन में निकालकर फिर अच्छी तरह से बन्द कर देते हैं हवा या पानी के सम्पर्क में आने से ये खराब होती है। जब गन्ना खत्म हो जाता है तब इसी राब से शर्बत बनता है व सब मीठे पकवान इसी को घोलकर बनते हैं।
तीसरा है सूखे मेवे और सोंठ डालकर बनाई गई चौकोर आकर में काटी गई गुड़ की पट्टी जिसे"पितुड़ा" कहते हैं ये मेहमानों को पानी के साथ दिया जाता है।
पहले के समय में लोग बिस्किट इत्यादि नही देते थे मेहमानों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की जाती थी।।
कभी गर्म गुड़ खाये हो ? नॉर्मल गुड़ से सौ गुना ज्यादा स्वादिष्ट होता है।।
अब भी समय है सफेद जहर चीनी का प्रयोग बन्द करो गुड़ का प्रयोग करो अनेकों बीमारी से बचे रहोगे।।

पुराने दिनों की याद ताजा करता है ये मिर्जापुर का रेस्टोरेंट

ये प्रांगण कोई हवेली नही है
ये उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मिर्जापुर में बना रेस्टुरेंट हैं
इस रेस्टुरेंट में कुछ ऐसी बातें है जो इसे भारत के सभी रेस्टुरेंट से अलग बनाती है


पहली बात ये की इस रेस्टुरेंट में आप को शुद्ध वातावरण मिलता है क्यों के सिटी के बाहर है
उसके बाद इसके अंदर का वातावरण बिलकुल देहाती है और सात्विक है गोबर से लीपे फर्श हैं कुवें से निकलता हुआ पानी भी
आप चाहें तो आप को बिसलेरी की बोतल को जगह कुवेँ का पानी दिया जाएगा
इसके बाद सबसे जरूरी चीज वो ये है की ये रेस्टोरेंट बेटियों को समर्पित है खाना बनाने वाले से लेके खाना परोसने तक हर काम महिलाएं करती है
सबसे खास बात जो इसे बाकी रेस्टोरेंट से अलग बनाती है वो ये है की आप को इस रेस्टोरेंट में कभी एंट्री नही मिलेगी
अगर आप इसमें खाना चाहते हैं तो आप के साथ में कम से कम एक महिला जरूर होनी चाहिए
बिना महिला के इस रेस्टुरेंट के द्वार से ही आप को विदा कर दिया जाएगा

क्यों की ये एक बेटियों को समर्पित रेस्टुरेंट हैं, इनके इस प्रयास से इसमें काम करने वाले महिलाएं सम्मानित और सुरक्षित महसूस करती हैं