Wednesday, April 30, 2025

क्षमा

एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये।

आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी।

संतश्री ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।'

साधक ने कहाः "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !"

संतश्री ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।"

साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?"

"बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।"

साधक की आँखें खुल गयीं। संतश्री को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगाः "मम्मी ! पापा !! देखो कौन आये ! नानाजी आये हैं, नानाजी आये हैं....।"

माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिताजी घर पर आये हैं ।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः- "बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।"

"क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा । दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे। पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप !सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुरजी के सामने रख दिये। ससुरजी कहने लगेः "बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ ।

मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है ।"

दामाद ने कहाः- "पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।

साधक ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये । सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो।

सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।

हमें भी अपने दिल में क्षमा रखनी चाहिए अपने सामने छोटा हो या बडा अपनी गलती हो या ना हो क्षमा मांग लेने से सब झगडे समाप्त हो जाते है।

अक्षय तृतीया

युग रा आदि जिन केवली हुया तीर्थंकर जगभाया, दियो जीणे रौ सुज्ञान अरु विज्ञान नाभि अंगज री जयकार ।छोड़ घरबार चाल्यां साधना स्युं करने जीवन रो कल्याण, हाल्या चरणां पाछे अगणित राजकुमार जुड़ग्यो प्रभु स्यु अंतर तार| भगवान ऋषभ प्रभु जब कर्मक्षेत्र से घर्मक्षेत्र में आये, अशन ( भिक्षा खाने की मिलने की) की आशा में जगह- जगह घूम रहे थे पर कौन उन्हें खाने का आहर बहराये । भगवान को कोई कहता है कि सोना ले लो  , चांदी ले लो , कन्या साथ मे झेलों आदि - आदि आपके कष्ट अपार थे। वो बोल रहे थे कि करल्यों भावना भगतां री थे स्वीकार पर कोई भी सही से रोटी री मनुहार व्रत निपजाने की भगवान ऋषभ प्रभु से नहीं कर रहा था । भगवान ऋषभ प्रभु बिना आहार के इस तरह घूम रहे थे तभी कुछ समय बाद उनके पोत्र राजा श्रेयांस को एक सपना आया कि अमृत से मेरु सिंचन होगा । वह उन्होंने अपने सपने के लिए चिन्तन किया कि प्रभुवर यह मेरा स्वप्न कैसे साकार होगा । वह इस तरह चिन्तन करते- करते राजा श्रेयांस गहराई में गये तब उनको जाति स्मृति ज्ञान हो गया । वह उनका मन भावों में तरुणाई ले , प्रभु भक्ति से भावित हो गया और उन्होंने अपने हाथों से गन्ने का रस भगवान ऋषभ प्रभु को अर्पित किया । वह उनको पारणा करवाया उस समय के लिए यह कहा जाता है कि अक्षय तृतीया शुभ आई तप की लेकर तरुणाई प्रभु ऋषभ देव की गुंजी घर - घर जय शहनाई तभी से यह अक्षय तृतीया पर्व की शुरुआत हुई | वह यह पर्व निरंतर चल रहा है । अक्षय तृतीया पर्व हमको भावित करता है । हम आज के दिन अपने आपको अक्षय के समान पावित कर अपने जीवन को उज्जवल बनाये यही हमारे लिए काम्य है ।


Tuesday, April 29, 2025

विरुद्ध पदार्थ

किसके साथ क्या खाने से रोग हो सकते हैं…….

 चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी

चाहिए।

दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या

किसी चर्म रोग को जन्म दे सकता है या

बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना।

- दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही

,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल

,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।

 दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं

खानी चाहिए।

 घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी,

खीरा, जामुन ,मूंगफली के साथ ठण्डा जल कभी नहीं।

 शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल

कभी नहीं।

 खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल

कभी नहीं।

घी के साथ बराबर मात्र में शहद तुरंत विषैला प्रभाव करेगा।

 तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।

 चावल के साथ सिरका कभी नहीं।

 चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी न खाएं।

 खरबूजे के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।

संयोगज पदार्थ

कुछ चीजों को एक साथ खाना हितकर होता है।

जैसे……….

- खरबूजे के साथ बूरा, खाण्ड, शक्कर।

- इमली के साथ गुड ।

- गाजर और मेथी का साग।

- बथुआ और दही का रायता

- मकई के साथ मट्ठा ,

- अमरुद के साथ सौंफ ,

- तरबूज के साथ गुड ,

- मूली और मूली के पत्ते ,

- अनाज या दाल के साथ दूध या दही ,

- आम के साथ गाय का दूध,

- चावल के साथ दही,

- खजूर के साथ दूध ,

- चावल के साथ नारियल की गिरी ,

- केले के साथ इलायची।

अधिक खाना हितकर नहीं होता। पर भूल या स्वाद के कारण कभी -कभी कुछ चीजें अधिक खाई जाएं तो 

- केले की अधिकता में दो छोटी इलायची ।

- आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और

गुड ।

- जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक ।

- सेब ज्यादा हो जाएं तो दालचीनी का चूर्ण एक

ग्राम ।

- खरबूज के लिए मिश्री / चीनी का शर्बत ।

- तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग ।

- अमरूद के लिए सौंफ ।

- नींबू के लिए नमक।

- बेर के लिए सिरका।

- गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा

लीजिये।

- चावल ज्यादा खा लिये हैं तो आधा चम्म्च

अजवाइन पानी से निगल लीजिये ।

- बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च ।

- मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला

तिल चबा लीजिये या मूली के पत्ते खाएं।

- बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं ।

- खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये।

- मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं ।

- इमली, उड़द की दाल,  मूंगफली,  शकरकंद,

जिमीकंद अधिक खाया गया हो तो गुड खाईये ।

- मूँग या चने की दाल ज्यादा खाई हों तो एक चम्म्च

सिरका पी लीजिये ।

- मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये ।

- घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च

चबाएं ।

- खुरमानी ज्यादा हो जाए तो ठंडा पानी पीयें ।

- पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी

पीजिये ।

नींबू का प्रयोग करने से अनेकों रोगों से बचाव होता है। पानी में मिला कर पीयें या भोजन में लें। अनुकूल न हो तो न लें। अचार बनाकर लेना भी अच्छा हैः पर बर्तन या जार काँच का हो। निम्बू बीज वाला देसी ही लें।। 

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है


प्रायश्चित

 वह बारह-तेरह वर्ष का बालक ही तो था। कच्ची बुद्धि थी और साथ अच्छा न था ।उसके एक संबंधी सिगरेट पीते थे । उसे भी शौक लगा ।सिगरेट से फायदा तो क्या धुआँ उड़ाना उसे अच्छा लगता था। समस्या आई की सिगरेट खरीदने के लिए पैसे कहां से आवें? बड़ों के सामने ना पी सकता था ना ही पैसे मांग सकता था। तब, क्या हो? नौकरों की जेबें टटोली जाने लगी और पैसा धेला जो भी पल्ले पड़ता उसे उड़ा लिया जाता। बड़े सिगरेट पी कर फेंक देते तो वे टुकड़े इकट्ठे कर लिए जाते। मजा तो सिगरेट पीने में नहीं आता था पर उससे क्या! यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला, अचानक एक दिन विचार उठा कि ऐसा काम क्यों करना, जो बड़ों से छिपाना पड़े और जिसके लिए चोरी करनी पड़े? बात उठी ।उठी कि वहीं -की- वहीं दब गई।

फिर उठी और पराधीनता दिन पर दिन खलने लगी। यह भी क्या कि बड़ों की आज्ञा बिना कुछ न कर सकें? ऐसे जीने से लाभ क्या? इससे तो जीवन का अंत कर देना ही अच्छा !

पर मरें कैसे ?किसी ने कहा था कि धतूरे के बीज खा लेने से मृत्यु हो जाती है ।बीज इकट्ठे किए गए, पर खाने की हिम्मत न हुई ।प्राण न निकले तो ?फिर भी साहस करके दो-चार बीज खा ही डाले। परंतु उनसे क्या होता था? मौत से वह डर गया और उसने मरने का विचार छोड़ दिया ।

जान बची ,साथ ही एक लाभ यह हुआ कि सिगरेट जूठन पीने और नौकरों के पैसे चुराने की आदत छूट गई।

उसने आगे कभी चोरी न करने का निश्चय किया ।साथ ही यह भी कि अपनी चोरी को अपने पिता के सामने स्वीकार कर लेगा। यह डर तो ना था कि पिताजी उसे पीटेंगे, परंतु इतना तो था कि वे सुनकर बहुत दुखी होंगे। पिता के आगे मुंह तो खुल नहीं सकता था। सब बालक ने चिट्ठी लिखकर अपना दोष स्वीकार कर लिया। चिट्ठी अपने हाथों ही पिता को दी। उसमें सारा दोष कबूल किया गया था ,साथ ही उसके लिए दंड मांगा गया था ।आगे चोरी न करने का निश्चय भी था।

  पिताजी बीमार थे ।वे बिस्तर पर लेटे थे। चिट्ठी पढ़ने के लिए उठ बैठे। चिट्ठी पढ़ी, आंखों से मोती की बूंदें टपकने लगीं। थोड़ी देर के लिए उन्होंने आंखें बंद कर लीं। चिट्ठी के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और बिस्तर पर पुनः लेट गए। मुंह से उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। बालक अवाक् रह गया। पिता की वेदना को उसने अनुभव किया और उनकी पीड़ा तथा शांतिमय क्षमा से वह रो पड़ा।

    बड़े होने पर उसने लिखा--'जो मनुष्य अधिकारी व्यक्ति के सामने स्वेच्छा पूर्वक अपने दोष शुद्ध हृदय से कह देता है और फिर कभी न करने की प्रतिज्ञा करता है, वह मानो शुद्धतम प्रायश्चित करता है।'

कृपया चिंतन करें व अपने जीवन में उतारे तथा बच्चों को भी ऐसी शिक्षा दें।