Tuesday, October 29, 2019

होली की उपादेयता

श्री मनीष शर्मा
 विश्व मंे भारत उपमहाद्वीप ही ऐसा है जहाँ छः ऋतुओं का काल चक्र पूरा होता है। ऋतुराज वसंत के अगमन से प्रकृति में नवचेतना की बहार छा जाती है। रंग-बिरंग फूलों की चादर वाड़ियों में लहरा उठती है तो ऊसर भूमि में भी अंकुर फूट पड़ते हैं। नई उमंग उल्लास से मादकता नस नस में थिरकने लग जाती है। प्रत्येक प्राणीवान की। फूलों की सुगन्ध से गमकी शीतल मन्द समीर स्फुरित करती हुयी बहती है। खरीफ की फसल से प्राप्त भरपूर अन्न एवं रवी की पूर्ण रूपेण भरी फसल चनों के भाड़ गेहूँ जौ की इठलाती बालियों को भून कर खाने, होरी के सुखद कल्पना, नववर्ष सानन्द समृद्धिदायक होने की कामनाओं मंे उल्लासित मानव मन मादक वातवारण में झूम उठता है। कंठ स्वरों से स्वतः ही कीर्तिगान फूट पड़ता है। अपने प्रिय के प्रति अपने हाथ अधम्य शुभचिंतकों के प्रति।
 आदि से मानव को सर्वप्रथम जिस तत्व का ज्ञान हुआ वह तत्व है अग्नि वेदों में सर्व प्रथम ऋग्वेद का प्रथम यंत्र अग्रि का प्रतीक है। अग्रि के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। अग्नि देवता ही सर्वाधर हैं। निरूक्त में सविता को ही अग्नि कहा गया है। इस सृष्टि की उत्पत्ति भी अग्नि से ही निरूपित हुयी है। मानव ने रसना का स्वाद भी इसी से पाया तो भोजन को शरीर में 'जठारग्नि' के कारण पहचानने का आभास भी। रक्त जमा देने वाले भयंकर शीत के त्राण प्राप्त किया अलाव जला कर। मानव गहरे अन्धकार से घबड़ा कर उस महा शक्ति से प्रार्थना कर उठा 'तमसो मा ज्योतिर्गमय'
 ऐसे आत्म आनन्द दायक पर्व पर कोई स्वजन प्रियजन वंचित न रह जाये, अपने से दूर न चला जाय-इसके लिए मानव ने होली के आठ रोज पहले सभी सुभयात्रायें एवं शुभकार्य वर्जित कर दिये जाते हैं। कालान्तर में असुर राज हिरण्यकशिपु ने अपने ईश्वर भक्त पुत्र प्रहलाद के प्राण हरण हेतु अपनी राक्षसी बहिन होलिका के साथ अग्नि पीरक्षा का षडयंत्र रच कर आठ रोज पूर्व ही इस सामूहिक अग्नि पूजन अलाव को असुर राज के निर्णय से क्षुब्ध होकर सत्तप्त जनों ने इन आठ रोज के सभी शुभ कार्यों का परित्याग कर दिया। ईश्वर भक्त प्रहलाद अग्नि परीक्षा में खरा उतरा।
 मानव समुदाय ने जब यह दृश्य देखा तो आनन्द से झूम उठा मस्त हो गया। तथा उस प्रकृति की अद्भुत देन रंग विरंगे फूलों के रंगों से अपने प्रिय स्वजनों बन्धु बांधकों को रंगना शुरू कर दिया। कुमकुम केषर गुलाब मिश्रित सुगन्धित पावन जल से सरोवर कर दिया धरती के कण को। तभी से प्रारम्भ हुयी रंग लगाने की प्रथा का सुखद स्वरूप।
समानी वः आकृतिः समानाहृदयनि वः
समान यस्तु वो मनो यथा वः सुस सहासति
 आप सब के संकल्प अध्यवसाय एक प्रकार के ही आप सब के हृदय मंे एक रंग स्तर मन सत्य की कामना हो। आप सब के अन्तः करण में जो सत्य है शिव है-सुन्दर है जो समाज रूप से शुभकारी है-उसी की पूर्ण कृपा समान रूप से आप सब पर हो।
सबके लिए एक, एक के लिए सब समर्पित हो।


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