Sunday, November 17, 2019

कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक अपराध

  ''जन्म दिया समाज को जिसने, 
   कोई सम्मान नहीं इस तल पे।
बन गई वह भी अछूती,
   पैदा हुई जो लड़की बनके।।''
यह बहुधा कहा गया है कि जीवन के युद्ध में जिसको कि मनुष्य परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ता है, नारी की भूमिका द्वितीय पंक्ति की रहती है, यह बात निश्चित ही महत्वपूर्ण है किन्तु आज हम पुरुष और नारी में कोई भेद नहीं करते हैं। जहां तक दोनों की क्षमता का प्रश्न है, यह सिद्ध हो चुका है कि नारी की क्षमताओं का कुल योग पुरुष की क्षमताओं के कुल योग से कम नहीं, किन्तु हम देखते हैं कि हमारे समाज में नारी की स्थिति वह नहीं है जो होनी चाहिए। 
वही महज पुत्र की चाहत में कन्या भू्रणों की गर्भ में हत्या होने लगी है। परिवार में बच्ची का जन्म एक निराशा का अवसर होता है जबकि लड़के का जन्म आनंद और उत्सव मनाने का 1 सामाजिक जीवन का रथ एक पहिए से नहीं चल सकता, किन्तु फिर भी न जाने क्यों दूसरे पहिए के महत्व की पहचान कम है।
सामाजिक प्रभाव -
कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसी समस्या बन चुकी है जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। कन्या भ्रूण हत्या पर प्रशासन अंकुश लगाने में नाकाम है। स्त्री - पुरुष का आनुपातिक संतुलन बिगड़ रहा है। आंकड़ो पर यदि निगाह डाली जाए तो एक हजार पुरुष में 898 महिलाएँ हैं। कन्या भ्रूण हत्या में अनपढ़ - गंवार नहीं बल्कि उच्च शिक्षित अभिजात्य वर्ग के लोग अधिक शामिल हैं। अब पढ़े - लिखे सम्पन्न परिवारों में भी बालिका अवांछित मानी जाती है। आखिर कब थमेगी कन्या भ्रूण हत्या? कैसे बदलेगा सामाजिक चिंतन?
प्रस्तुत समस्या का कारण-
यदि हम कारण की तरफ मुख करेंगे तो इसका मुख्य कारण अपनी संस्कृति में ही पाऐंगे। दहेज देने की प्रथा। माता-पिता जन्म से ही कन्या को एक ऋण की तरह देखते हैं इसलिए उसकी असमय मृत्यु में ही वह अपनी भलाई समझते हैं।
''स्वप्न सजाए थे कैसे माँ ने,
चूर हो गये एहसास उसी के। 
ठोकर मारा उसके अंग को,
जो देखा लड़की समाज ने।''
विज्ञान का दुरुपयोग- 
कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों का काफी योगदान है। हालांकि अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों पर लिंग परीक्षण नहीं किया जाता है, लेकिन पर्दे के पीछे का खेल जग जाहिर है। यह बातें महज कागजों में हैं। कन्या भू्रण हत्या को एक पैसा कमाने का जरिया माना जाता है और इसके अलावा कुछ नहीं।
समाधान-
कन्या भू्रण हत्या करने या कराने वालों का सामाजिक बहिष्कार हो।
लिंग परीक्षण करने वाले केन्द्रों संचालकों, चिकित्सकों को चिन्हित-दण्डित किया जाए।
दहेज जैसी कुप्रथा को खत्म किया जाए।
महिलाओं को जागरूक करने के लिए विशेष जन- जागरण अभियान चलाया जाए।
प्रचार माध्यम के जरिये लड़की-लड़का में भेद की भावना खत्म किया जाए।
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक अपराध के अलावा धार्मिक - पौराणिक दृष्टि से भी घृणित कार्य है। समाज को इस तथ्य से अवगत कराया जाए।
महिला की सहमति के बगैर कन्या भ्रूण हत्या सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को विशेष भूमिका निभानी होगी।
उपसंहार-
अब भी बहुत देर नहीं हुई है। आइए हम नारी को वह स्थिति प्रदान करें जिसकी वह अधिकारिणी है। अब लड़कियाँ वायुयान उड़ा रही हैं। अंतरिक्ष में पहुँच चुकी हैं। इसके बावजूद कन्या भू्रण हत्या समझ से परे है। समस्या जड़ मूल से खत्म करने के लिए लोगों को सामाजिक चिंतन में परिवर्तन करना होगा तभी कन्या जन्मदर में गिरावट थमेंगी।


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