Wednesday, June 17, 2020

भारत की सरजमीं पर पैर बढ़ाने से पहले केवल रेजांगला के वीर अहीर सैनिकों के शौर्य को याद कर ले चीन..

चीन जिस तरह से हालिया दिनों में अहंकार में मगरूर हो कर सीमा पर प्रतिरोध बढ़ा रहा है वह उसके मूर्खता का प्रतीक है।शायद वह भूल चुका है कि उसे रेजांगला में मुट्ठी भर भारतीय वीर सैनिकों ने धूल चटा दी थी। बहुत कुछ हो सकता है चीन के पास लेकिन याद कर ले एक एक भारतीय के पास वह आत्म बल और स्वाभिमान है,जो चीन के हजार लोगों के बराबर है। हमारे धैर्य और सहनशीलता का ज्यादा परीक्षा लेने की कोशिश ना करे अन्यथा जिस दिन भारतीय लोगों का गुस्सा बाहर आ गया उस दिन चीन कहीं का नहीं रह पाएगा।आखिर चीन समझता क्या है भारत के कुछ सैनिकों को धोखे से मारकर भारतीय सेना और लोगों को धमका देगा।भारत कोई नेपाल,भूटान,तिब्बत और ताइवान नहीं है। एक-एक शहादत का बदला लेना जानता है भारत और हमेशा से चीन को ईंट का जवाब पत्थर से दिया है।सर्वप्रथम हम किसी को छेड़ते नहीं है और अगर गलती से भी कोई हमें छेड़ दे तो हम उसे भूलते और छोड़ते नहीं।चीन हमेशा से 1962 में धोखे से लड़े गए युद्ध पर आत्ममुग्धता में रहता है पर उसे 1967 को याद रखना चाहिए,जब भारतीय सैनिकों ने 40 के बदले 400 चीनी सैनिकों को मार गिराया था।चीन को अपने पिट्ठू पाकिस्तान के बंटवारे से भी सीखना चाहिए पाकिस्तान ने भी भारत के साथ धृष्टता की थी जिसे भारत ने पहले तो माफ किया पर जब फिर भी वह नहीं संभला और समझा तो उसे दो हिस्सों में बांट दिया।उस बंटवारे की कसक में पाकिस्तान हर दिन आहें भरते हुए आज भी जी रहा है।दूसरी ओर अगर चीन को अपने धन का घमंड है तो वह अपने पास रखे।जिस रेत के पहाड़ पर उसकी अर्थव्यवस्था टिका हुआ है वह चंद महीनों में विलीन हो जाएगा,अगर भारतीय बाजार को चीनी माल के लिए बंद कर दिया जाए तो।

पूरा हिंदुस्तान जानता है कि दक्षिणी हरियाणा के वीरों की खान के नाम से प्रसिद्ध अहीरवाल क्षेत्र जो अपनी पराक्रम वीरता और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध रहा है इसी क्षेत्र के वीर यादव नौजवानों ने 18 नवंबर 1962 को चुशूल घाटी की रेजांगला पोस्ट पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में भारत भूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था लेकिन 1 इंच आगे नहीं बढ़ने दिया था।जब रात 3:30 बजे चुशूल घाटी यानी रेजांगला में भारतीय रणबांकुरे चीनी हमला का मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था।यह लड़ाई शून्य से 35 डिग्री नीचे के तापमान में हमारे जवानों ने बिना बर्फ से बचने वाले ड्रेस के लड़े थे।उनके पास लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त गोला-बारूद भी नहीं थे।फिर भी चीन को वीर अहीर सैनिकों ने घुटनों के बल झुकने को मजबूर कर दिया गया था। मालूम हो कि चीनी सेना आर्टिलरी सपोर्ट के साथ आगे बढ़ रही थी।इस लड़ाई को आखिरी आदमी आखिरी गोली आखरी सांस के नाम से भी याद किया जाता है।ऐसा इतिहास में दर्ज है 124 भारतीय सैनिकों ने 1700 चीनियों की लाश बिछा दी थी।यही एकमात्र इतिहास का युद्ध था जिसमें दुश्मन ने भी भारतीय सैनिकों की वीरता की तारीफ किया था।आज भी दुनिया के सैन्य अफसरों और सैनिकों को ट्रेनिंग के दौरान रेजांगला के बारे में पूरा पाठ पढ़ाया जाता है।भारत को इस युद्ध की कहानी शायद पता तक न चलता अगर मरते समय तेरहवीं बटालियन कुमायूं के अगुआ मेजर शैतान सिंह भाटी ने मानव कैप्टन रामचंद्र यादव को पूरी जानकारी देने के लिए सेना के मुख्यालय ना भेजा होता। ऐसा कहा जाता है कि 124 जवानों में 119 अहीर (यादव) थे। उस वक्त भारतीय सेना के रेसलर और नायक राम सिंह यादव राइफल की गोली समाप्त होने के बाद गोली वर्षा के बीच चीनी सैनिकों के बीच पहुंचकर उनसे भिड़ गए और वीरगति से पूर्व से कई चीनी सैनिकों का काम तमाम कर दिया था।चीनी सैनिकों ने हमारे वीर अहीर शेरों की लाशों को कम्बल से ढककर उनके सिर के साथ उनकी बन्दूक को खड़ा किया और एक कार्ड पर “बहादुर” लिख कर उनके सीने पर रख दिया और फिर रेडियो पीकिंग से खबर दी की चीन का सबसे ज्यादा नुक्सान रेजांगला में हुआ।

विश्व का सैन्य इतिहास यूं तो वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से वीरता और शहादत की अनूठी दास्तां है।बिना किसी तैयारी के हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र के वीर जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर सैन्य पराक्रम वीरता और शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था,जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।चीन को आज भी वह हार कचोटते रहता है। वीर अहीर सैनिकों की बहादुरी दुनिया में अपनी तरह का एक अलग नजीर पेश करता है जहां मुट्ठी भर सैनिकों ने पूरी पलटन को पलट कर रख दिया था।यह भारत भूमि के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था,कि चीन सीज फायर करने को मजबूर हो गया था।बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर  भारतीय जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मौत के नींद सुला कर भारत की अस्मिता की लाज रख ली थी।इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे।शहादत वीरता और पराक्रम की गाथा लिखने वालों में अधिकांश जवान अहीरवाल क्षेत्र के थे।

इस युद्ध की खास बात यह थी कि चीनी सैनिक जहां पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों व बर्फीले मौसम से पूरी तरह अभ्यस्त थे, वहीं मैदानी क्षेत्रों से गये भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी।उसी विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया था।नजदीक की दूसरी पहाडि़यों पर मोर्चो संभाल रहे अन्य सैनिकों को रेजांगला पोस्ट पर चल रहे इस ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी तक नहीं थी।

 लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी थी और उनके  पांव उखड़ गए थे। इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये,तब तक उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फिर दिया था।

पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी।रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।साथ ही इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना पदक व एक को मेंशन इन डिस्पेच से सम्मानित किया गया था।13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था।भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन के जवानों को एक साथ इतने सम्मान नहीं प्राप्त हुए हैं।

रेजांगला युद्घ में शहीद हुए सैनिकों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे,जबकि नर्सिग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे।वही कंपनी का सफाई कर्मचारी पंजाब का रहने वाला था,इनके अलावा शेष सभी जवान अहीर जाति के थे।इनमें से भी अधिकांश हरियाणा के रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर जिले के रहने वाले थे.।कहा तो ऐसा जाता है जब उनके पास गोलियां खत्म हो गई तो जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल लाठियों के रूप में किया और रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया।रेजांगला के वीर अहीर सैनिकों के सम्मान में आज भी वहां स्मारक बना हुआ है जहां सभी सैनिकों के नाम संगमरमर पर खुदा हुआ है।देश के लोग आज भी रेजांगला के वीर सैनिकों को गर्व के साथ याद करते हैं।भारत हमेशा से शांति और भाईचारा में विश्वास करने वाला मुल्क रहा है लेकिन जब जब किसी ने ललकारा है उसे उसी की भाषा में जवाब देते आया है और देता रहेगा।

 

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

सामाजिक और राजनीतिक चिंतक 

देवदत्तपुर दाउदनगर औरंगाबाद बिहार  95 07 34 1433

 

 

 

स्वरचित मौलिक

©® लेखक
 

 


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