Thursday, August 15, 2019
जय भोले शंकर
सुषमा स्वराज को श्रद्धांजलि ।।शोक गीत।।
बेटे की सीख
Friday, August 9, 2019
गिरगिट बना इंसान
Thursday, July 25, 2019
भारतीय शोधकर्ताओं ने विकसित किया जहरीले रसायनों का डेटाबेस
नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): पर्यावरण या फिर दैनिक जीवन से
जुड़े उत्पादों के जरिये हर दिन हमारा संपर्क ऐसे रसायनों से होता है, जो सेहत के
लिए हानिकारक होते हैं। इस तरह के रसायन उपभोक्ता उत्पादों से लेकर
कीटनाशकों, सौंदर्य प्रसाधनों, दवाओं, बिजली की फिटिंग से जुड़े सामान, प्लास्टिक
उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों समेत विभिन्न चीजों में पाए जाते हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसे रसायन का एक विस्तृत डेटाबेस तैयार किया है, जो
मानव शरीर में हार्मोन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं, जिससे शारीरिक
विकास, चयापचय, प्रजनन, प्रतिरक्षा और व्यवहार पर विपरीत असर पड़ सकता
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ऐसे रसायनों को स्वास्थ्य से जुड़ा प्रमुख
उभरता खतरा बताया है। इस खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है
कि हार्मोन्स के तंत्र को प्रभावित करने वाले ये रसायन पर्यावरण में मौजूद जहरीले
रसायनों का सिर्फ एक उप-समूह है।
यह डेटाबेस रसायनों की कोई आम सूची नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य पर रसायनों के
कारण पड़ने वाले प्रभाव पर केंद्रित शोधों के आधार पर तैयार की गई एक विस्तृत
सूची है। इनमें से अधिकतर शोधों में रसायनों का परीक्षण मनुष्य के अलावा अन्य
जीवों पर भी किया गया है। चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं
ने यह डेटाबेस विकसित किया है।
इस डाटाबेस को विकसित करने के दौरान अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों से जुड़े 16
हजार से अधिक वैज्ञानिक अध्ययनों की पड़ताल की गई है। इस अध्ययन में मनुष्य
के हार्मोन तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले 686 रसायनों के बारे में शोधकर्ताओं को
पता चला है। इनके संदर्भ 1796 शोध पत्रों में पाए गए हैं, जो रसायनों के कारण
हार्मोन्स में होने वाले बदलावों की पुष्टि करते हैं। DEDuCT नामक इस डेटाबेस का
पहला संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है, जिसे निशुल्क देखा जा सकता है।
इसके अंतर्गत रसायनिक पदार्थों को सात वर्गों में बांटा गया है, जिनमें मुख्य रूप से
उपभोक्ता उत्पाद, कृषि, उद्योग, दवाएं एवं स्वास्थ्य क्षेत्र, प्रदूषक, प्राकृतिक स्रोत
और 48 उप-श्रेणियां शामिल हैं। डेटाबेस में शामिल करीब आधे रसायनों का संबंध
उपभोक्ता उत्पादों की श्रेणी से जुड़ा पाया गया है। डेटाबेस में पहचाने गए 686
संभावित हानिकारक रसायनों में से केवल 10 रसायन अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण
एजेंसी की सुरक्षित रसायन सामग्री सूची (एससीआईएल) में शामिल हैं।
कौन-सा हार्मोन अवरोधक रसायन, किस मात्रा में मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित
कर सकता है, इसकी जानकारी इस डेटाबेस में मिल सकती है। इसके साथ ही, यह
भी पता लगाया जा सकता है कि अध्ययनों में रसायन का परीक्षण मनुष्य या फिर
किसी अन्य जीव पर किया गया है। रसायनों की मात्रा की जानकारी महत्वपूर्ण है
क्योंकि कई रसायनों की बेहद कम मात्रा से भी शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है।
इस डेटाबेस से किसी पदार्थ की रासायनिक संरचना, भौतिक रासायनिक गुण और
रसायनों के आणविक विवरणक प्राप्त किए जा सकते हैं।
चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं की टीम
अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे, गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता अरिजित
सामल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "हमने विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित
प्रायोगिक प्रमाण के आधार पर अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों की पहचान की है,
और उनकी खुराक की जानकारी के साथ-साथ उनके प्रतिकूल प्रभावों का संकलन
किया है। यह जानकारी इन रसायनों द्वारा अंतःस्रावी व्यवधान के तंत्र को समझने
की दिशा में विष विज्ञान अनुसंधान में उपयोगी हो सकती है।"
यह डेटाबेस नियामक एजेंसियों, स्वास्थ्य अधिकारियों और उद्योग के लिए उपयोगी
हो सकता है। इसके अलावा, इसका उपयोग अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों के लिए
मशीन लर्निंग-आधारित भविष्यसूचक उपकरण विकसित करने में किया जा सकता
है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह डेटाबेस इन रसायनों पर केंद्रित अन्य उपलब्ध
संसाधनों की तुलना में अधिक व्यापक है और इसमें रसायनों की खुराक पर विस्तृत
जानकारी है, जो अन्य किसी डेटाबेस में नहीं मिलती।
सामल ने कहा कि, "विष विज्ञान विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलावा, यह डेटाबेस
आम जनता के लिए भी उपयोगी हो सकता है। यह एक ऐसा संसाधन है, जिसका
उपयोग दैनिक जीवन में इन हानिकारक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ
जागरूकता बढ़ाने में हो सकता है।"
गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता इससे पहले भारतीय जड़ी-बूटियों में पाए
जाने वाले फाइटोकेमिकल्स का ऑनलाइन डेटाबेस विकसित कर चुके हैं। इस
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में अरिजित सामल के अलावा, भगवती शण्मुगम,
कार्तिकेयन, जननी रविचंद्रन, कार्तिकेयन मोहनराज, आर.पी. विवेक अनंत शामिल
थे। इस डेटाबेस से संबंधित रिपोर्ट शोध पत्रिका साइंस ऑफ द सोशल एन्वायरमेंट
में प्रकाशित की गई है। (इंडिया साइंस वायर)
नैनो तकनीक से बढ़ायी जा सकेगी टायरों की मजबूती
नई दिल्ली | (इंडिया साइंस वायर): किसी उबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी
का टायर अचानक पंक्चर हो जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। भारतीय
शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से निजात पाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसी
तकनीक विकसित की है, जो टायरों की परफार्मेंस बढ़ाने में उपयोगी साबित हो
सकती है।
केरल स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड
नैनो-टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट
सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर
लाइनरों को मजबूती प्रदान करने में किया जा सकता है।
नैनो-क्ले और क्रियाशील नैनो-क्ले तंत्र के उपयोग से इनर लाइनर बनाने के लिए
विकसित फॉर्मूले को गैस अवरोधी गुणों से लैस किया गया है। इससे टायरों के इनर
लाइनर की मजबूती बढ़ायी जा सकती है। इंटरनेशनल ऐंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर
फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी (आईआईयूसीएनएन) ने टायर निर्माता कंपनी
अपोलो टायर्स के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराया है। कंपनी जल्द ही इस
तकनीक का उपयोग हाई-परफार्मेंस टायर बनाने में कर सकती है।
प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल और डॉ साबू थॉमस (बाएं से दाएं)
ट्यूब वाले टायरों ग्रिप अच्छी होती है, पर ये टायर जल्दी पंक्चर हो जाते हैं और
पंक्चर होने के बाद कुछ क्षणों में सपाट होकर सतह से चिपक जाते हैं। इसके
विपरीत, ट्यूबलेस टायरों में अलग से कोई ट्यूब नहीं होती, बल्कि यह टायर के
अंदर ही टायर से जुड़ी रहती है, जिसे इनर लाइनर कहा जाता है। ट्यूबलेस टायरों
की एक खासियत यह है कि पंक्चर होने के बाद इनमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है।
हालांकि, बार-बार पंक्चर होने की परेशानी इन टायरों के साथ भी जुड़ी हुई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नैनो तकनीक की मदद से टायर को अधिक मजबूत
एवं टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
गाड़ियों के टायर को अधिक टिकाऊ बनाने से जुड़ी तकनीक को विकसित करने
वाले वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के उप-
कुलपति डॉ साबू थॉमस ने बताया कि "पॉलिमर नैनो-कम्पोजिट विकसित करते हुए
कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और नैनो-क्ले जैसे नैनोफिलर्स के प्रसार से जुड़ी चुनौतियों
से निपटने में ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे अत्याधुनिक उपकरण
मददगार साबित हुए हैं।"
ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन द्वारा समर्थित आईआईयूसीएनएन
नैनो-उपकरणों के तकनीकी विकास और निर्माण से जुड़े अनुसंधान कार्यक्रमों को
बढ़ावा देता है। इस तरह के अनुसंधान कार्यक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल,
ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोग शामिल हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विभाग के सहयोग से इस केंद्र को ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे परिष्कृत
उपकरणों से सुसज्जित किया गया है, जिसकी मदद से नैनो स्तर के नमूनों की
आंतरिक संरचना को भी देखा जा सकता है।
आईआईयूसीएनएन कई प्रमुख नैनो तकनीकों पर काम कर रहा है। आंतरिक
अनुप्रयोगों और अत्यधिक तापमान एवं आर्द्रता वाले वातावरण में उपयोग होने
वाले उच्च क्षमताओं की नैनो-संरचनाओं से बने एपोक्सी मिश्रण से जुड़ी तकनीकें
इनमें शामिल हैं। इन तकनीकों का उपयोग आमतौर पर एयरोस्पेस, जल शुद्धिकरण
फिल्टर्स, तापीय स्थिरता, नैनो-फिलर्स और वियरेबल डिवाइसेज इत्यादि में
उपयोग हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से भविष्य में उन्नत
प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिसकी मदद से अग्रणी किस्म के
उत्पाद बनाए जा सकते हैं। डॉ साबू थॉमस के अलावा शोधकर्ताओं में
आईआईयूसीएनएन के निदेशक प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल शामिल थे। (इंडिया साइंस
वायर)
Keywords : flattened tyres, Nanotechnology, Nano Mission,
वक्त
Sunday, July 21, 2019
नई तकनीक से चुनौतियों के हल खोजने वाले उद्यमियों को पुरस्कार
उमाशंकर मिश्र
नई दिल्ली, 18 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): किसी दिव्यांग को ऐसा कृत्रिम अंग मिल जाए
जो दिमाग के संकेतों से संचालित हो तो इसे तकनीक पर आधारित एक महत्वपूर्ण सामाजिक
योगदान माना जाएगा। बिट्स पिलानी के कंप्यूटर साइंस के दो छात्रों उज्ज्वल कुमार झा और
सिद्धांत डांगी ने ऐसे ही बायोनिक हाथ का नमूना पेश किया है, जो दिमाग के संकेतों से
संचालित होता है। इस बायोनिक हाथ के प्रोटोटाइप को इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम 2.0 के
तहत राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित यूनिवर्सिटी चैलेंज प्रतियोगिता में 10 लाख रुपये का पुरस्कार
मिला है। इन दोनों छात्रों ने बताया कि उनका प्रोटोटाइप फिलहाल विकास के दूसरे चरण में है
और इस पुरस्कार राशि की मदद से वे इसे अधिक बेहतर बना सकेंगे।
सामाजिक एवं औद्योगिक समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित ऐसे
नवाचारों के लिए इस वर्ष इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के तहत ओपन इनोवेशन चैलेंज में 16
स्टार्ट-अप कंपनियों और यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत 20 अकादमिक संस्थानों की टीमों को
क्रमशः 25 लाख रुपये और 10 लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया है। इन विजेताओं को 2400
आवेदकों द्वारा प्रस्तुत किए गए नवाचारों में से चुना गया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बुधवार को ये पुरस्कार नई
दिल्ली में प्रदान किए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लाइफ साइंसेज, संचार, बायोटेक्नोलॉजी,
स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, रोबोटिक्स, कचरा प्रबंधन, जल प्रबंधन और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों के
नवाचार इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि "स्टार्टअप का विस्तार और उन्हें
एक स्थापित कारोबारी मॉडल के रूप में स्थापित करना प्रमुख चुनौती है। उद्योग जगत सफल
स्टार्टअप में अगर किसी निर्धारित राशि का निवेश करता है तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
भी ऐसे स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए समान राशि का निवेश करने का फैसला जल्दी ही ले
सकता है।"
पुरस्कृत नवाचारों में आईआईटी-बॉम्बे के शोधकर्ता आदर्श के. द्वारा बनाया गया स्मार्ट
स्टेथेस्कोप, आईआईटी-कानपुर के छात्र नचिकेता देशमुख द्वारा विकसित बिजली ट्रांसफार्मर को
अधिक टिकाऊ बनाने की तकनीक, नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के छात्र रवि प्रकाश द्वारा
दूध उत्पादकों द्वारा दूध सप्लाई करने के लिए बनायी गई स्मार्ट बाल्टी और कानपुर फ्लावरिंग
स्टार्टअप के नचिकेत कुंतला द्वारा मंदिरों से फेंके जाने वाले अपशिष्ट फूलों से अगरबत्ती बनाने
की तकनीक शामिल हैं।
विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा
यह पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन और टाटा ट्रस्ट
की पहल पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत में नवाचारों के लिए अनुकूल वातावरण
विकसित करना है। इसके तहत, ओपन इनोवेशन चैलेंज और यूनिवर्सिटी चैलेंज नामक दो
प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, चयनित उद्यमियों को उद्योग जगत के
साथ मिलकर काम करने का अवसर भी मिलता है। इस वर्ष चयनित स्टार्टअप विजेताओं में से
तीन कंपनियों के साथ लॉकहीड मार्टिन ने कारोबारी करार किया है।
प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि “सरकार देश में स्टार्टअप केंद्र स्थापित करने जा रही है। करीब 150
करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किए जाने इन केंद्रों से स्टार्टअप कंपनियों को संसाधन एवं
सहयोग मिल सकेगा। भविष्य में इस तरह के कुल 20 केंद्र स्थापित किए जाने हैं। इस वर्ष ऐसे
तीन केंद्र शुरू हो जाएंगे और फिर हर साल 3-4 केंद्र स्थापित किए जाने की योजना है।”
इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के यूनिवर्सिटी चैलेंज में पुरस्कृत बिट्स पिलानी के छात्रों द्वारा विकसित प्रोटोटाइप
ओपन इनोवेशन चैलेंज के विजेताओं में एस्ट्रोसेज लैब्स, आयु डिवाइसेज, बीएबल हेल्थ,
बायोलमेड इनोवेशन्स, बीएनजी स्प्रे सॉल्यूशन्स, सी इलेक्ट्रिक ऑटोमोटिव ड्राइव्स, कॉग्निएबल,
सिका ऑन्कोसॉल्यूशन्स, कानपुर फ्लावरसाइक्लिंग, न्यूबवेल नेटवर्क्स, ओसस
बायोरिन्यूएबल्स, टैन90 थर्मल सॉल्यूशन्स, टेरेरो मोबिलिटी, अनबॉक्स लैब्स, वार्ता लैब्स और
विडकेयर इनोवेशन्स शामिल हैं।
यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत पुरस्कृत विजेताओं में सिद्धांत डांगी और उज्जवल झा के अलावा,
आईआईटी-मद्रास के आयुष पारसभाई मनियर एवं ध्यानेश्वरन सेनगोत्तुवेल, आईआईटी-कानपुर
के अयन चक्रबर्ती, अखिल बी. कृष्णा एवं पर्वराज पचोरे, शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ
एग्रीकल्चर साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी और आईआईटी-खड़गपुर के शंखा कर्माकर शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
Tuesday, July 16, 2019
ग़ज़ल
16-17 जुलाई 2019 चंद्र ग्रहण, सम्पूर्ण जानकारी
यह खंडग्रास चंद्रग्रहण है|
तो आइये जानते है 16 जुलाई 2019 को पड़ने वाले खंडग्रास चंद्रग्रहण की पूरी जानकारी कि किस समय दिखेगा और कहाँ दिखाई देगा|
चंद्रग्रहण कैसे होता है
चंद्रग्रहण एक अद्भुत आकाशीय घटना है| वैज्ञानिकों के अनुसार जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है| इस अवस्था में पृथ्वी चंद्रमा को ढक लेती है, और चंद्रमा का प्रकाश धरती पर नहीं आ पाता और अँधेरा छा जाता है| इसी को चंद्रग्रहण होता है|
खंडग्रास चन्द्र ग्रहण
16 जुलाई 2019 को साल का दूसरा चंद्रग्रहण पड़ेगा| यह खंडग्रास चंद्रग्रहण है| इसमें पृथ्वी चन्द्रमा को आंशिक रूप से ढक लेगी| इस अवस्था को खंडग्रास चंद्रग्रहण कहते है|
चन्द्र ग्रहण कहाँ दिखाई देगा
दोस्तों 2019 का यह दूसरा चंद्रग्रहण भारत सहित अगानिस्तान, यूक्रेन, टर्की, ईरान, इराक, सऊदी अरब, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, अन्टार्कटिका में दिखाई देगा|
चन्द्र ग्रहण किस समय दिखाई देगा
साल का दूसरा चंद्रग्रहण 16 जुलाई 2019 को लगने वाला है| यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को दिन मंगलवार को लगने वाला है| यह खंडग्रास चंद्रग्रहण के रूप में दिखाई देगा| यह चंद्रग्रहण 16 जुलाई 2019 को रात 1 बजकर 31 मिनट से लेकर रात 4 बजकर 30 मिनट तक होगा|
चन्द्र ग्रहण के सूतक काल का समय
इस चंद्रग्रहण का सूतक काल 16 जुलाई 2019 को शाम 4 बजकर 32 मिनट से प्रारम्भ होगा, जोकि चंद्रग्रहण के साथ ही 16-17 जुलाई 2019 की मध्य रात्रि उपरांत को 4 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा|
यह चंद्रग्रहण भारत में दिखाई देंगे इसलिए इसका सूतक काल भारत में मान्य होगा, जो ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले लग जायेगा| ये चंद्रग्रहण जिन देशों में दिखाई देगा वहाँ सूतक व ग्रहण काल में पूरी सावधानी बरतनी चाहिए खासकर गर्भवती महिलाओं को उन्हें ग्रहण के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है|
चन्द्र ग्रहण में वर्जित कार्य
ग्रहण काल के दौरान सोना वर्जित है|
ग्रहण काल में खाना वर्जित होता है|
भगवान की मूर्ति स्पर्श ना करें|
मल, मूत्र और शौच आदि न जाये|
किसी नए काम की शुरुआत ना करें।
Thursday, July 11, 2019
युवा अन्वेषकों के हाइटेक नवाचारों को पुरस्कार
उमाशंकर मिश्र
नई दिल्ली, जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय
रसायनिक दवाओं के संपर्क में आने से किसानों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इंस्टीट्यूट फॉर
स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बेंगलूरू के छात्र केतन थोराट और उनकी टीम ने
मिलकर डर्मल जैल नामक एक ऐसी क्रीम विकसित की है, जिसे त्वचा पर लगाने से कीटनाशकों
के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
आईआईटी, दिल्ली की रोहिणी सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित नई एंटीबायोटिक दवा
वितरण प्रणाली भी देश के युवा शोधकर्ताओं की प्रतिभा की कहानी कहती है। इस पद्धति को
विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में दवा के वितरण की यह प्रणाली
भविष्य में कैंसर के उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
आईआईटी, खड़गपुर की शोधार्थी गायत्री मिश्रा और उनकी टीम ने एक ई-नोज विकसित की है,
जो अनाज भंडार में कीटों के आक्रमण का पता लगाने में उपयोगी हो सकती है। इसी तरह,
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू के छात्र देवल करिया की टीम द्वारा मधुमेह रोगियों के लिए
विकसित सस्ती इंसुलिन पंप युवा वैज्ञानिकों की प्रतिभा का एक अन्य उदाहरण है।
इन युवा शोधार्थियों को उनके नवाचारों के लिए वर्ष 2019 का गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल
इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ये पुरस्कार शनिवार को
उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रदान किए हैं। चिकित्साशास्त्र, ऊतक इंजीनियरिंग, मेडिसिन,
रसायन विज्ञान, जैव प्रसंस्करण, कृषि और इंजीनियरिंग समेत 42 श्रेणियों से जुड़े नवोन्मेषों के
लिए 21 युवा शोधकर्ताओं को ये पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अग्रणी विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा
राष्ट्रीय नवाचार आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है, जो जीवन में सुधार और समृद्धि को
बढ़ावा देने का जरिया बन सके। उपराष्ट्रपति ने नए और समावेशी भारत के निर्माण के लिए
समाज के हर वर्ग में मौजूद प्रतिभा को उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स (सृष्टि) द्वारा
स्थापित ग्यति पुरस्कार जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्था बायोटेक्नोलॉजी
इंडस्ट्री असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किए जाते हैं। तीन श्रेणियों में
दिए जाने वाले इन पुरस्कारों में बाइरैक-सृष्टि पुरस्कार, सृष्टि-ग्यति पुरस्कार और ग्यति
प्रोत्साहन पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कृत छात्रों की प्रत्येक टीम को उनके आइडिया पर आगे काम
करने के लिए 15 लाख रुपये दिए जाते हैं और चयनित तकनीकों को सहायता दी जाती है।
इस वर्ष लाइफ साइंसेज से जुड़े नवाचारों के लिए 15 छात्रों को बाइरैक-सृष्टि अवार्ड और
इंजीनियरिंग आधारित नवाचारों के लिए छह छात्रों को सृष्टि-ग्यति अवार्ड प्रदान किए गए हैं।
इसके अलावा, 23 अन्य परियोजनाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस बार 34
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 267 विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों
की 42 विषयों में 1780 प्रविष्टियां मिली थी।
एनआईटी, गोवा के देवेन पाटनवाड़िया एवं कल्याण सुंदर द्वारा टोल बूथ पर ऑटोमेटेड
भुगतान के लिए विकसित एंटीना, ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान के लिए एनआईटी, सूरतकल
के शोधकर्ता अनु शाजु द्वारा विकसित रेडियोग्रामेट्री निदान पद्धति, केरल के कुट्टीपुरम स्थित
एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के मुहम्मद जानिश द्वारा बनाया गया कृत्रिम पैर, गाय के
थनों में सूजन का पता लगाने के लिए श्री वेंकटेश्वरा वेटरिनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति के हरिका
चप्पा द्वारा विकसित पेपर स्ट्रिप आधारित निदान तकनीक, अमृता विश्वविद्यापीठम,
कोयम्बटूर के जीतू रविंद्रन का एनीमिया मीटर, आईआईटी, मद्रास की शोधार्थी स्नेहा मुंशी
द्वारा मिट्टी की लवणता का पता लगाने के लिए विकसित सेंसर और चितकारा यूनिवर्सिटी,
पंजाब के कार्तिक विज की टीम द्वारा मौसम का अनुमान लगाने के लिए विकसित एंटीना तंत्र
इस वर्ष पुरस्कृत नवाचारों में मुख्य रूप से शामिल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग की
सचिव डॉ रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक आर.ए. माशेलकर और हनी-बी
नेटवर्क के संस्थापक तथा सृष्टि के समन्वयक प्रोफेसर अनिल गुप्ता पुरस्कार समारोह में उपस्थित
थे। (इंडिया साइंस वायर)
Wednesday, July 10, 2019
पौधों की विविधता के लिए पर्याप्त पानी सबसे महत्वपूर्ण है
मोनिका कुंडू श्रीवास्तव द्वारा
नई दिल्ली, 9 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 329 मिलियन हेक्टेयर है।
जलवायु उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक बदलती रहती है। हालांकि, इस विविधता के बावजूद, थोड़ा
इस बारे में जाना जाता है कि जलवायु किसी विशेष क्षेत्र में बढ़ने वाले पौधों की विविधता को कैसे प्रभावित करती है।
डॉ। पूनम त्रिपाठी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), खड़गपुर की टीम द्वारा हाल ही में एक अध्ययन,
यह दर्शाता है कि किसी स्थान पर वर्षा की मात्रा और तापमान प्रमुख पौधों की विविधता को कैसे प्रभावित करते हैं
भारत के बायोग्राफिकल जोन। अनुसंधान के तहत एकत्र पौधों की प्रजातियों की समृद्धि डेटा का उपयोग किया
राष्ट्रीय परियोजना 'लैंडस्केप स्तर पर भारतीय राष्ट्रीय स्तर की जैव विविधता विशेषता'।
पिछले 100 वर्षों के आंकड़ों से एक स्थान के तापमान और वर्षा की मात्रा की गणना की गई।
हालांकि सबसे शुष्क महीने (न्यूनतम वर्षा) के लिए वर्षा की मात्रा का सबसे अधिक प्रभाव था, ए
न्यूनतम वर्षा और न्यूनतम तापमान का संयोजन वांछनीय पाया गया। यह था
पानी और ऊर्जा संयंत्र की शारीरिक प्रक्रियाओं, पौधों की वृद्धि और इसकी उपज को प्रभावित करती है।
मध्यम तापमान और अच्छे जल की उपलब्धता वाले वातावरण में विविधता अधिक होती है
अधिकांश पौधे मध्यम जलवायु को चरम जलवायु से बेहतर सहन कर सकते हैं।
वैज्ञानिक पत्रिका PLoS ONE में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र न केवल पौधे में सबसे समृद्ध हैं
विविधता लेकिन उन पौधों की संख्या में भी जो नमी में प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण हो सकते हैं
पर्याप्त पानी की उपस्थिति। के बीच के क्षेत्र में पौधों की अधिकतम विविधता (623) पाई गई
गंगा का मैदान और हिमालय क्षेत्र। दक्कन में प्रजातियों की संख्या 10 से 609 के बीच है
पश्चिमी घाट में प्रायद्वीप, 31 और 581, उत्तर-पूर्व में 30 और 344, ट्रांस में 97 और 531
हिमालय, 14 और 160 तट के साथ, 3 और 517 अर्ध-शुष्क क्षेत्र में, और 6 और 175 रेगिस्तानी क्षेत्र में हैं।
पश्चिमी घाट, दक्कन प्रायद्वीप और हिमालय और ट्रांस-हिमालय में पौधों की विविधता अधिक थी
शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र। जैसा कि इन क्षेत्रों में कमोबेश इसी तरह के उच्च तापमान हैं
इस तथ्य के कारण पौधे की विविधता पर पानी का एक मजबूत प्रभाव इंगित करता है कि शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्र
कम बारिश होती है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र, इसके अलावा पहाड़ी जैसे अन्य कारकों से भी प्रभावित था
इलाके इस प्रकार पौधों की संख्या और विविधता को प्रभावित करते हैं।
ड्रियर जोन में पाए जाने वाले किस्मों की बहुत कम से मध्यम संख्या को निम्न द्वारा समझाया जा सकता है
मिटटी की नमी। ये जोन बहुत गर्म हैं। वर्षा अनियमित और कम (0.41 मिमी से 94 मिमी) है। की कमी
मिट्टी में पानी पौधों को बढ़ने नहीं देता है। इसके अलावा, तापमान की बड़ी रेंज अतिरंजित होती है
अत्यधिक जलवायु के प्रभाव से सीमित किस्म के पौधे पैदा होते हैं जो शुष्क स्थानों में उगते हैं। हालाँकि,
तापमान में लगातार और बड़े उतार-चढ़ाव भी पौधों को बहुत कम समय के भीतर समायोजित करने का कारण बनते हैं
चरम सीमाओं से सामना करना पड़ता है, अर्थात् बहुत अधिक से बहुत कम तापमान तक। यहाँ पाए जाने वाले हार्डी पौधे हो सकते हैं
कठोर पर्यावरणीय चुनौतियों को पार किया।
डॉ। पूनम त्रिपाठी के अनुसार, “विभिन्न पर्यावरण के तहत पौधों की समृद्धि पैटर्न का ज्ञान
जैव विविधता संरक्षण और प्रबंधन कार्यों से निपटने के लिए परिस्थितियाँ महत्वपूर्ण हैं। ”
अनुसंधान दल के अन्य सदस्य डॉ। मुकुंद देव बेहरा और डॉ। पार्थ सारथी रॉय हैं। (इंडिया
विज्ञान तार)
कीवर्ड: विविधता, जैव-भौगोलिक क्षेत्र, अत्यधिक जलवायु, उष्णकटिबंधीय जलवायु, गंगा का मैदान, दक्कन
पठार, पश्चिमी घाट और रेगिस्तान, हार्डी पौधे
युवा अन्वेषकों के हाइटेक नवाचारों को पुरस्कार
उमाशंकर मिश्र
नई दिल्ली, 8 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय
रसायनिक दवाओं के संपर्क में आने से किसानों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इंस्टीट्यूट फॉर
स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बेंगलूरू के छात्र केतन थोराट और उनकी टीम ने
मिलकर डर्मल जैल नामक एक ऐसी क्रीम विकसित की है, जिसे त्वचा पर लगाने से कीटनाशकों
के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
आईआईटी, दिल्ली की रोहिणी सिंह और उनकी टीम द्वारा विकसित नई एंटीबायोटिक दवा
वितरण प्रणाली भी देश के युवा शोधकर्ताओं की प्रतिभा की कहानी कहती है। इस पद्धति को
विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर में दवा के वितरण की यह प्रणाली
भविष्य में कैंसर के उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
आईआईटी, खड़गपुर की शोधार्थी गायत्री मिश्रा और उनकी टीम ने एक ई-नोज विकसित की है,
जो अनाज भंडार में कीटों के आक्रमण का पता लगाने में उपयोगी हो सकती है। इसी तरह,
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूरू के छात्र देवल करिया की टीम द्वारा मधुमेह रोगियों के लिए
विकसित सस्ती इंसुलिन पंप युवा वैज्ञानिकों की प्रतिभा का एक अन्य उदाहरण है।
इन युवा शोधार्थियों को उनके नवाचारों के लिए वर्ष 2019 का गांधीवादी यंग टेक्नोलॉजिकल
इनोवेशन (ग्यति) अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ये पुरस्कार शनिवार को
उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू ने प्रदान किए हैं। चिकित्साशास्त्र, ऊतक इंजीनियरिंग, मेडिसिन,
रसायन विज्ञान, जैव प्रसंस्करण, कृषि और इंजीनियरिंग समेत 42 श्रेणियों से जुड़े नवोन्मेषों के
लिए 21 युवा शोधकर्ताओं को ये पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने अग्रणी विचारों और नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा
राष्ट्रीय नवाचार आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है, जो जीवन में सुधार और समृद्धि को
बढ़ावा देने का जरिया बन सके। उपराष्ट्रपति ने नए और समावेशी भारत के निर्माण के लिए
समाज के हर वर्ग में मौजूद प्रतिभा को उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन्स (सृष्टि) द्वारा
स्थापित ग्यति पुरस्कार जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत संस्था बायोटेक्नोलॉजी
इंडस्ट्री असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) द्वारा संयुक्त रूप से प्रदान किए जाते हैं। तीन श्रेणियों में
दिए जाने वाले इन पुरस्कारों में बाइरैक-सृष्टि पुरस्कार, सृष्टि-ग्यति पुरस्कार और ग्यति
प्रोत्साहन पुरस्कार शामिल हैं। पुरस्कृत छात्रों की प्रत्येक टीम को उनके आइडिया पर आगे काम
करने के लिए 15 लाख रुपये दिए जाते हैं और चयनित तकनीकों को सहायता दी जाती है।
इस वर्ष लाइफ साइंसेज से जुड़े नवाचारों के लिए 15 छात्रों को बाइरैक-सृष्टि अवार्ड और
इंजीनियरिंग आधारित नवाचारों के लिए छह छात्रों को सृष्टि-ग्यति अवार्ड प्रदान किए गए हैं।
इसके अलावा, 23 अन्य परियोजनाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस बार 34
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 267 विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अध्ययनरत छात्रों
की 42 विषयों में 1780 प्रविष्टियां मिली थी।
एनआईटी, गोवा के देवेन पाटनवाड़िया एवं कल्याण सुंदर द्वारा टोल बूथ पर ऑटोमेटेड
भुगतान के लिए विकसित एंटीना, ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान के लिए एनआईटी, सूरतकल
के शोधकर्ता अनु शाजु द्वारा विकसित रेडियोग्रामेट्री निदान पद्धति, केरल के कुट्टीपुरम स्थित
एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के मुहम्मद जानिश द्वारा बनाया गया कृत्रिम पैर, गाय के
थनों में सूजन का पता लगाने के लिए श्री वेंकटेश्वरा वेटरिनरी यूनिवर्सिटी, तिरुपति के हरिका
चप्पा द्वारा विकसित पेपर स्ट्रिप आधारित निदान तकनीक, अमृता विश्वविद्यापीठम,
कोयम्बटूर के जीतू रविंद्रन का एनीमिया मीटर, आईआईटी, मद्रास की शोधार्थी स्नेहा मुंशी
द्वारा मिट्टी की लवणता का पता लगाने के लिए विकसित सेंसर और चितकारा यूनिवर्सिटी,
पंजाब के कार्तिक विज की टीम द्वारा मौसम का अनुमान लगाने के लिए विकसित एंटीना तंत्र
इस वर्ष पुरस्कृत नवाचारों में मुख्य रूप से शामिल हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग की
सचिव डॉ रेणु स्वरूप, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक आर.ए. माशेलकर और हनी-बी
नेटवर्क के संस्थापक तथा सृष्टि के समन्वयक प्रोफेसर अनिल गुप्ता पुरस्कार समारोह में उपस्थित
थे। (इंडिया साइंस वायर)