मनुष्य की इच्छा हो या न हो जीवन में परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आती रहती हैं। आज उतार है तो कल चढ़ाव। चढ़े हुए गिरते हैं और गिरे हुए उठते हैं आज उँगली के इशारे पर चलने वाले अनेक अनुयायी हैं, तो कल सुख-दुख की पूछने वाला एक भी नहीं रहता। रंक कहाने वाला एक दिन घनपतिबन जाता है तो धनवान निर्धन बन जाता हैं। जीवन मं इस तरह की परिवर्तनशील परिस्तिथया आते जाते रहना नियति चक्र का सहज स्वाभाविक नियम है। अधिकांश व्यक्ति सुख सुविधा, सम्पन्नता, लाभ-उन्नति आदि में प्रसन्न और सुखी रहते हैं किन्तु दुःख कठिनाई, हानि आदि में दुःखी और उद्विग्न हो जाते हैं यह मनुष्य के एकांगी दृष्टिकोंण का परिणाम है और इसी के कारण कठिनाई, मुशीबत, कष्ट आदि शब्दों की रचना हुई वस्तुतः परिवर्तन मानव जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण सहज और स्वाभाविक है। जितना रात और दिन का होना, ऋतुओं का बदलना, आकाश में ग्रह-नक्षत्रो का विभिन्न स्थितियों मंे गतिशील रहना। किेन्तु केवल सुख, लाभ अनुकूल परिस्थियाँ की ही चाह के एकांगी दृष्टिकोण के फल स्वरूप मनुष्य दुःख कठिनाई और विपरीतताओं में रोता है, दूसरों को अथवा ईश्वर को अपनी विपरीतताओं के लिए को सता है, शिकायत करता है किन्तु इससे तो उसकी समस्याएँ बढ़ती हैं, घटती नहीं है। कठिनाइयाँ जीवन की एक सहज स्वाभाविक स्थिति है जिन्हें स्वीकार करके मनुष्य अपने लिए उपयोगी बना सकता है जिन कठिनाइयों मंे कई व्यक्ति रोते हैं। मानसिक क्लेश अनुभव करते है। उन्हीं कठिनाइयों मंे दूसरे व्यक्ति नवनी प्रेरणा, नवउत्साह पाकर सफलता का वरण करते हैं। सबल मन वाला व्यक्ति बड़ी कठिनाइयों को भी स्वीकार करके आगे बढ़ता है तो निर्बल मन वाला सामान्य सी कठिनाई में भी निश्चेष्ट हो जाता है। परीक्षा की कसौटी पर प्रतितिष्ठ हुए बिना कोई भी वस्तु उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकती न उसका कोई मूल्य ही होता है। कड़ी धूप में तपने पर ही खेतों में खड़ी फसल पकती है आग की भयानक गोद में पिघलकर ही लोहा साँचे में ढलने के उपयुक्त बनता है परीक्षा की अग्नि में तपकर ही वस्तु शक्तिशील, सौंदर्ययुक्त और उपयोगी बनती है। कठिनाइयाँ मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन्हें खुले मन से स्वीकार मानसिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसे जीवन मंे कभी मुसीबतों का सामना न करना पड़ा हों। दिन और रात के समान सुख-दुख का कालचक्र सदा घूमता ही रहता है। जैसे दिन के बाद रात आना आवश्यक है वैसे ही सुख के बाद दुख आना भी अनिवार्य है। इससे मनुष्य के साहस, धैर्य, सहिण्णुता और आध्यामित्कता की परीक्षा होती है। विपत्तियाँ साहस के साथ कर्म क्षेत्र में बढ़ने के लिए चुनौती है। हम उनसे घबरायें नहीं बहुत सी मुसीबतें तो केवल काल्पनिक होती है। छोटी-मोटी बातों को तूल देकर हम व्यर्थ ही चारों और भय का भूत खड़ा करते हैं। सुबोधराय का जन्म 4 बंगाल में हुआ 6 वर्ष की आयु में एक दिन लेटे-लेटे उनकी नेत्र ज्योति चली गई, उन्होंने निश्चय किया कि ज्ञान चक्षुओं का उपयोग करेगे। अंध विंघालय से उन्होंने एम. ए. प्रथम श्रेणी में किया। छात्रवृति मिली तो अमेरिका, इंग्लैण्ड पढ़ने चले गये। उनकी कुशाग्र कृषि देख कर एक बंगाली विदुषी ने उनसे विवाह कर लिया। डा. सुबोधराय ने पी. एच. डी करने के उपरान्त अपना जीवन उन्धों के विद्यालय बनाने तथा उनके कल्याण की संस्थाएँ बनाने में लगाया। याद रखिए विपत्तियाँ केवल कमजोर कायर और निठल्ले को ही डराती हैं। और उन लोगों के वश में रहती है। जो उनसे जूझने के लिए कमर कस कर तैयार रहते है। इस प्रकार दृढ़ संकल्प वालें व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वरन् दूसरे के लिए प्रेरणा के केन्द्र बन जाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, ब ुद्ध, ईसा, मोहम्मद साहब, दयानन्द, महात्मा गांधी आदि महापुरूषों के जीवन संकट और विपत्तियों से भरे हुए थे पर वे संकटों की तनिक भी परवाह न करते हुए अपने कत्र्तव्य मार्ग पर अविचल अग्रसर होते रहे। सफतः वे अपने उद्देश्य के सफल हुए और आज संसार उन्हें ईश्वरीय अवतार मानकर पूजा करता है। विपत्तियों एवं कठिनाईयों से जूझने मंे ही हमारा पुरूषार्थ ही यदि हम कोई महत्वपूर्ण कार्य करना चाहते हंै तो उसमें अनेक आपत्तियों का मुकाबला करने के लिए हमें तैयार ही रहना चाहये जिन्होंने इस रहस्य को समझकर धैर्य का आप्रय ग्रहण किया हो आपत्तियाँ संसार का स्वाभाविक धर्म हैं। वे आती हैं और सद आती रहेंगी उनसे न तो भयभीत होइए और न भागने की कोशिश करिए बल्कि अपने पूरे आत्मबल साहस और शूरता से अनका सामना कीजिए उन पर विजय प्राप्त कीजिए और जीवन में बड़े से बड़ा लाभ उठाइए।
Tuesday, October 29, 2019
कम्यूनिकेशन स्किल की कला
आज के भौतिक युग में रोजी, रोटी और मकान की आवश्यकताओं से परे इंसान की एक अन्य आवश्यकता भी है अनय लोगों से संवाद, यानी कैम्पू स्किल स्थापित करने की आवश्यकता-अब्राहम मोस्लो की यह प्रसिद्ध उक्ति मानव सभ्यता के जन्म से जुड़ी है, जहाँ एक व्यक्ति दूसरे से अपनी इच्छाओं, आशाओं, अपेक्षाओं तथा भावनाओं को एक दूसरे से शेयर करना चाहता है। दरअसल एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य तक अपने मनोभावो-उद्गारों और विचारों को विभिन्न माध्यमों, यथा-वाणी, लेखन या अन्य इलेक्ट्राॅनिक तकनीकों द्वारा पहुँचाता ही कैम्पू कहलाता है। इन तीनों में माउथ कॅम्यूनिकेशन सबसे पुराना होने के साथ-साथ सर्वाधिक प्रभावशाली भी है। क्योंकि इसमें वक्ता प्रवक्ता का संदेश श्रोता यानी सुनने वाले तक सीधे और तेजी से पहुँचाता है। हाँलकि डायरेक्टर कैम्पू में यह खतरा भी होता है कि कहीं वक्ता के विचार कठिन भाषा एवं प्रवाह ममी भाषा और आक्रामक प्रदर्शन श्रोता को भ्रमित करके उसको निष्प्रभावी न बना दें। अतः माउथ कॅम्यूनिकेशन में वक्ता को सरल भाषा स्पष्ट व शुद्ध उच्चारण, आवाज में भापानुकूलता उतार-चढ़ाव चेहरे का भावपूर्ण प्रदर्शन आदि का ध्यान रखना जरूरी है क्योंकि कॅम्यूनिकेशन का उद्देश्य है अपने विचारों की बिना किसी भ्रम के स्पष्टता के साथ श्रोता तक पहुँचाना। कॅम्यूनकेशन तभी सफल माना जाता है। जब वक्ता और श्रोता दोनों उसके अर्थ को ठीक-ठीक समझने का प्रयत्न करें।
आज के दौर में चुनौतीपूर्ण जीवन में कसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए सशक्त व प्रभावशाली कैम्पू की जरूरत पड़ती है। क्योंकि इसमें व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व की झलक मिलती है। हर व्यक्ति को यह बात गाँठ-बाँध लेनी चाहिए कि कोई जन्म से ही प्रभावी कॅम्यूनिकेशन की क्षमता लेकर पैदा नहीं होता। वस्तुतः कॅम्यूनिकेशन एक कला है जिसे निरंतर अभ्यास द्वारा सीखा जा सकता है। जिसकी भाषा में सरलता, सुगमता विचार में गहनता व स्पष्टता, अभिव्यक्ति में ओज तेज व प्रवाह तथा वाणी में जादू होगा श्रोता मंत्र मुग्ध होकर उसकी बातों को ग्रहण करेगा। कैसे हासिल करें प्रभावी कॅम्यूनिकेशन इसके लिए निम्नलिखित तीन चरणों का ध्यान रखें।
1. बाधाओं को पहचाने व दूर करें।
2. कॅम्यूनिकेशन को बताए प्रभावशाली।
3. श्रोता का रखें पूर्ण ध्यान।
कला सीखने के लिए जरूरी है कि प्रभावशाली अभिव्यक्ति के रास्ते में आने वाली बाधाओं को पहचान कर उन्हें दूर करें। संवाद नहीं कर पाना विचारां की स्पष्टता और सारगर्भित तरीके से अभिव्यक्त न कर पाना अशुद्ध कठिन भाषाा का प्रयोग करना, विषय की अच्छी समझ न होना, आवेश में अपनी बात रखना, श्रोता की जरूरत समझे बिना अपनी बात करते रहना।
प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए भाषा की अच्छी समझ जानकारी, तर्कपूर्ण शैली, आवाज में मधुरता और बुलंदी, सुगंठित विचार होना जरूरी है। लगातार प्रयास से इसे डिवलप किया जा सकता है।
शैक्षणिक, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सांस्कृतिक परिवेश का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। यदि श्रोता प्रबुद्ध है तो समझदार की भाषा और विवेचना शैली प्रभावी होती है। यदि श्रोता वक्ता की अपनी स्थिति से भिन्न है तो उसके स्तर पर पहुँचकर उसके अनुकूल भाषा का प्रयोग कर कैम्प स्थापित करना चाहिए। इस कला के माध्यम से कला सीखकर कोई भी लक्ष्य हासिल करने में सफल हो सकते हैं।
कौन माँ
माँ संक्षिप्त होते हुए भी कितना व्यापक और सारगर्भित शब्द है। इसीलिये तो माँ को जन्मभूमि के समान तथा स्वर्ग से महान बताया गया है। वस्तुतः माँ का स्थान जन्मभूमि से भी बढ़कर है क्योंकि वही तो मानव सृष्टि का मूल स्त्रोत है। वैदिक काल से ही माँ का सर्वोच्च स्थान रहा। सत्य कहा जाये तो माँ देवी के रूप में धरा पर अवतरित होकर सृष्टि में संचालन का गुरूतर भारत वहन करके अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराती है।
जन्म से लेकर सात वर्षो। तक बालक पूर्णतया माँ पर आश्रित होता है। इसी बीच माँ अपने बालक के भविष्य का निर्माण करती है। इसी बीच बालक की शिक्षा की नींव मजबूत होती है। किसी ने सत्य ही कहा है-
''यदि बालक की शिक्षा की नींव सुदृढ़ व सुन्दर होगी तो बालक उन्नति करेगा'' बालक अस्थिर चर्ममय वह आकृति है जिसे माॅ का स्नेह, त्याग, और तपस्या, उसे शारीरिक विकास प्रदान करती है। और पिता का अनुशासन, नैतिकता तथा गंगा का अमृत सिंचन करता है जिससे बालक संसार में पुष्पित तथा पल्लवित होता है। ''शिशु सुन्दर प्रभु का रूप है माँ कोमलता की खान पिता ज्ञान गंगा भरे, बालक बने महान्''।।
साष्टाँग दण्डवत् प्रणाम का महत्व
आजकल स्कूल, कालेज के बड़े-बड़े शिक्षा शास्त्रियों की शिकायत है कि शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों का श्रद्धाभाव बिल्कुल घट गया है। अतएव देश में अनुशासनहीनता तेजी से बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि हम ऋषियों द्वारा निर्दिष्ट दण्डवत् प्रणाम की प्रथा को विदेशी अंधानुकरण के जोश में छोड़ने लगे है।।
साष्टांग दण्डवत् प्रणाम का अर्थ है कि साधक और शिष्य का शरणागतभाव जितना प्रबल होगा, उतना ही वह ज्ञानी महापुरूष के आगे झुकेगा और जितना झुकेगा उतना पायेगा। शिष्य का समर्पण देखकर गुरू का हाथ स्वाभाविक ही उसके मस्तक पर जाता है।
महापुरूषों की आध्यात्मिक शक्तियाँ समस्त शरीर की अपेक्षा शरीर के जो नोंक वाले अंग हैं उनके द्वारा अधिक बहती है। इसी प्रकार साधक के जो गोल अंग हैं उनके द्वारा तेजी से ग्रहण होती है। इसी कारण गुरू शिष्य के सिर पर हाथ रखते हैं ताकि हाथ की अंगुलियों द्वारा वह आध्यात्मिक शक्ति शिष्य में प्रवाहित हो जाये। दूसरी ओर शिष्य जब गुरू के चरणों में मस्तक रखता है तब गुरू के चरणों की अंगुलियाँ और विशेषकर अँगूठा द्वारा जो आध्यात्मिक शक्ति प्रवाहित होती है वह मस्तक द्वारा शिष्य अनायास ही ग्रहण करके आध्यात्मिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है।
विदेश के बड़े-बड़े विद्वान एवं वैज्ञानिक भारत में प्रचलित गंुरू समक्ष साधक के साष्टाँग दण्डवत् प्रणाम की प्रथा को पहले समझ नहीं पाते थे। लेकिन अब बड़े-बड़े प्रयोगों के द्वारा उनकी समझ में आ रहा है कि यह सब युक्ति-युक्त है। इस श्रद्धा भाव से किये हुये प्रणाम आदि द्वारा ही शिष्य गुरू से लाभ ले सकता है अन्यथा आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर वह कोरा ही रह जायेगा।
एक बल्गेरियन डाॅ0 लोजानोव ने इंस्टीट्यूट आॅफ एजेस्टोलाजी की स्थापना की। एक अन्तर्राष्ट्रीय सभा में इस युक्ति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भारतीय योग में जोशवासन प्रयोग है उसमें से मुझे इस पद्धति को विकसित करने की प्रेरणा मिली''।
औपचारिक शिक्षा और अभिभावक
मनुष्य अपने जीवन में दो प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है-औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा। औपचारिक शिक्षा उसे शैक्षिक संस्थाओं से प्राप्त होती है जैसे कि विद्यालय, कालेज और तकनीकी संस्थान। इसके साथ ही अनौपचारिक शिक्षा उसे परिवार, समुदाय, समाज और धर्म जैसी संस्थाओं सें प्राप्त होती है। दोनो प्रकार की शिक्षाओं की हमारे जीवन के संवर्धन एवं परिमार्जन के लिये महती आवश्यकता होती है।
आज के भौतिकवादी आधुनिक तापरस्त विश्व में औपचारिक शिक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। यह जीवन की आधार शिला होती है। समुचित दिशा निर्देशों के अभाव में यह मनुष्य को लक्ष्यहीन कर देती है। अतः औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में अभिभावकों की भूमिका बहुत कम अभिभावक ऐसे हैं जो अपने बच्चों की औपचारिक शिक्षा के विषय में चिन्तन-मन्थन करते है।
सर्वप्रथम प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देना आवश्यक होता है क्योंकि बच्चे कच्ची तैयार मिट्टी के समान होते हैं जिन्हें कोई भी रूप और आकार दिया जा सकता है। अतः यह अभिभावक का कर्तव्य है कि वे निश्चित करें कि अपने पाल्य को वे कैसा शैक्षिक परिवेश देने जा रहे हैं। शिशु या बालक के जीवन रूपी भवन की नींव जितनी सुदृढ़ और अटल होगी। उतना ही उसके जीवन का भवन स्थाई, महत्वपूर्ण और प्रभवशाली तथा समृद्ध होगा। इस अवस्था की शिक्षा भयमुक्त वातावरण में श्रवय एवं दृश्य सामग्री के माध्यम से प्रदान केी जानी चाहिये। बालक या बालिकाइस शिक्षा को स्वयं पर, लदा हुआ बोझ न समझे बल्कि इसके प्रति उसमें स्वयं रूचि उत्पन्न हो ऐसा इस शिक्षा का स्वरूप होना चाहिये।
इसके पश्चात कक्षा-6 से 8 तक के छात्र उन पनपते हुये पादपों के रूप में होते हैं, जिन्हें जल, उर्वरक एवं प्रकाश की अत्यधिक आवश्यकता होती हैं। यदि उन्हें अनुकूल परिस्थितियाँ और संसाधन तथा मार्ग निर्देश प्राप्त होते रहते हैं तो वे अभीप्सित दिशा की ओर उन्नयन प्राप्त करते हैं। इस अवस्था में छात्र/छात्रायें जहाँ पादप के रूप में होते हैं वही अभिभावक माली की भूमिका का निर्वहन करते है। यही छात्र/छात्रायें भावी पीढ़ी की बगिया की पौध होते हैं।
कक्षा-9 एवं 10 में छात्र/छात्राओं के कदम किशोरावस्था की ओर बढ़ने लगते हैं। स्वाभाविक है कि उनमें अनेक शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन आते हैं। अतः अभिभावकों को उनके प्रति सहज, सरल एवं मित्रवत होना चाहिये। इस अवस्था में स्पेयर द रोड एंड स्पोइल द चाइल्ड के सिद्धान्त को लागू नहीं करना चाहिए। अरस्तू के अनुसार We should never be commanding to them instead of directiveand a true guide.'
कक्षा-11 एवं 12 किशोरावस्था के उत्कर्ष काल हैं। यही है-बौद्धिक ऊर्जा का संग्रह काल। इसी काल में या तो यह ऊर्जा वृद्धि की ओर गमन करती अथवा भिन्न दिशाओं में फैलकर निरूद्देश्य हो जाती है। अतः अभिभावक को बहुत अधिक सावधान एवं सचेत रहना पड़ता है। उन्हें अपने पाल्य के दैनिक क्रिया-कलापों का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। यदि वे लक्ष्य से भटक रहे हों तो उन्हें अपने अनुभूत परिणामों से अवगत कराते हुये निश्चित दिशा एवं लक्ष्य केी ओर प्रोत्साहित करना चाहिये। यही वह अवस्था है जब छात्र/छात्रा को उसके द्वारा प्राप्त परिणाम एवं उसकी रूचि के आधार पर उसे व्यावसायिक शिक्षा की ओर मोड़ा जाता है। यही व्यावसायिक शिक्षा उसके जीवन में सुख और समृद्धि की जननी होती है।
यदि इस अवस्था में विद्यार्थी भटक जाता है, तो वह देश एवं समाज के लिये अनुत्पादक सिद्ध होता है। वह सुयोग्य नागरिक बनने के बजाय अपराध जगत से जुड़ जाता है। इस प्रकार वह प्रशासन और कानून के लिये भी चुनौती बन जाता है। ऐसी परिस्थिति में वह अभिभावकों में चिन्ताजनित करता है और उनके शान्तिमय जीवन को अशान्त कर देता है।
लेकिन यहीं यदि उसे उचित व्यावसायिक शिक्षा की दिशा की ओर मोड़ दिया जाता है तो वह सफल, सुयोग्य, सम्पन्न एवं सुशिक्षित नागरिक के रूप में परिणित हो जाता है। अतः अभिभावकों को कर्तव्य हैं कि वे अपने पालय की सभी सुविधाओं का ध्यान रखने के साथ-साथ समयानुसार उसका मार्गदर्शन करते रहें और उद्देश्य के पूर्णता के पथ पर आने वाले अवरोधों को हटाते रहें क्योंकि समय व्यतीत हो जाने के बाद प्रायश्चित के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रह जाता है-
''समय चूँकि पुनि का पछताने, का वर्षा जब कृषी सुखाने'' और ''अवसर चूँकि ग्वालिनें गावैं सारी रात'' वाली कहावतें हमारे जीवन में घटित हो जाती है।
हम प्रायः अपने समाज में देखते हैं कि लोग (विशेषरूप से माध्यम वर्ग) फैशन और दिखावे पर तो पैसा पानी की तरह बहाते हैं। लेकिन और दिखावे पर तो पैसा पानी की तरह बहाते है।। लेकिन अपने पाल्यों की शिक्षा के मद पर ठीक से पैसा खर्च करने से कतराते हैं। यह शिक्षा ही है जो हमें जीवन जीने के सर्वथा उपयुक्त बनाती है और हमें उन्नति के शिखर तक पहुँचाती है। जिस प्रकार शरीर रीढ़ की हड्डी के बिना लचर और असमर्थ हो जाता है, उसी प्रका शिक्षा के बिना समाज और राष्ट्र रूपी शरीर की 'रीढ़ की हड्डी' होती है। अतः हम सभी अभिभावकों को शिक्षा का विशेष ध्यान रखते हुये, इस शिक्षा के मद को व्यय की सूची मेें सर्वोपरि रखना चाहिये। हम सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार समुचित शिक्षा अवश्य प्रदान करनी चाहिए जिससे कि वे अपने जीवन में कहीं भी किसी प्रकार के अभाव का अनुभव न करें। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो निश्चित ही हम उनके साथ शत्रुता का व्यवहार कर रहे हैं। क्योंकि-
''माता शत्रुः, पिता वैरी, येन बालो न पाठितः।
ते न शोभन्ते संभामध्ये, हंस मध्ये वको यथा।''
आज यद्यपि हमारे समाज में वैचारिक क्रांति आ चुकी है तथापि कतिपय परिवार लिंग-भेद करते हैं अर्थात् बालिकाओं की शिक्षा पर बालकों की अपेक्षा बहुत कम ध्यान देते है। इस विषय में उनका चिन्तन होता है कि बालिकायें विवाह के पश्चात अपना घर-बसा लेती हैं और उनसे पितृपक्ष को आर्थिक सहायता और संबल प्राप्त नहीं हो पाता है। वास्तविकता यह है कि यह ऋणात्मक चिन्तन हमारे समाज, राज्य एवं राष्ट्र को पतन की ओर ले जा रहा है। यदि हम चाहते हैं कि हमारा सामाजिक शैक्षिक, आर्थिक तथा राजनैतिक उन्नयन हो तो निश्चित रूप से हमें बालिकाओं की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा क्योंकि प्रसिद्ध शिक्षा-शास्त्री, दार्शनिक एवं हमारे स्वतंत्र भारत के द्वितीय राष्ट्रपति महोदय श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा है-
“Give us good and well-educated mothers and I will give you a developed nation in all respects.”
युवा पीढ़ी और नैतिकता
यदि हम वर्तमान भारतीय समाज पर दृष्टि डालें तो हम देखते हैं कि हमारे चारों ओर भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार, लूटपाट का नग्न नृत्य हो रहा है। हमारी चिरसंचित संस्कृति और सभ्यता पर तुषारापात होने के लक्षण स्पष्ट प्रतीत हो रहे हैं। आज हमारे देश ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में चाहे जितनी सफलता अर्जित कर ली हो परन्तु फिर भी आज हमारा देश दिन-प्रतिदिन अवनति के पथ पर बढ़ता जा रहा है। नैतिकता का हृास दिन-प्रतिदिन तीव्र गति से हो रहा है जो इस राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा। देश में फैली इस अशान्ति का कारण युवा वर्ग कमें व्याप्त असन्तोष, अनंुशासनहीनता, अनैतिकता और असंयम है।
आज का युवा वर्ग अनुशासन और नैतिकता को भूलता जा रहा है तथा अपने बड़े बुजुर्गो, माताओं एवं बहनों को अपशब्द एवं अश्लील शब्द कहकर अपने को गर्वित महसूस करते हैं।
स्वामी विवेकानंद, संत ज्ञानेश्वर, रामानुज, सुभाष चन्द्र बोस जैसे महापुरूषों की इस पावन भूमि पर जहाँ के युवा सद्गुणों एवं नैतिकता से भरपूर संयमी, चरित्रवान, कत्र्तव्यनिष्ठ होने चाहिए थे वहाँ पर नकारा, अनुशासनहीन, सवार्थी ऐसे का पुरूष युवाओं की फौज तैयार हो रही है जो अपने बड़े-बुजुर्गों एवं गुरूओं का अपमान करके इस दिव्य भारतभूमि को कलंकित कर रहे हैं।
आज युवा कालेजों से बहुत काबिल परन्तु पढ़े-लिखे जाहिल, गँवार बनकर निकल रहे है। क्योंकि युवाओं के पास नैतिकता ही नहीं है जिसकी उन्हें ज्यादा आवश्यकता है।
वर्तमान का युवा वर्ग माँ-बहनों के विषय में अश्लील टिप्पणी करके, दुर्बलों को सताकर पशुता का परिचय देकर अपने को वीर समझता है परन्तु महापुरूषों की दृष्टि में वीर तो वो हैं जो दुर्बलों का बल बनें, माताओं-बहनों की मर्यादा का ख्याल रखें बुजुर्गों का सम्मान करें। अरे! संसार में वीरता तो तब है जब युवा त्याग और सेवा को अपने जीवन में ग्रहण करके मनुष्यता का परिचय दे, कीट पतंगों की तरह लड़ना मनुष्यता नहीं है।
हमारे देश को अनुशासी, विनम्र, मर्यादित एवं साहसी युवकों की आवश्यकता है जिसके लिए हमें स्वामी विवेकानन्द की बातों का ध्यान करना चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द ने युवाशक्ति को ललकारते हुए कहा-''इस देश को केवल अनुशासी, दृढ़विश्वासी, निष्कपट, श्रद्धासम्पन्न एवं संयमी युवकों की आवश्यकता है। ऐसे वीर युवकों से इस देश को बदला जा सकता है। याद रखो तुम्हारे आदर्श सर्वत्यागी 'उमानाथ भगवान शंकर जी एवं श्री रामचन्द्र जी हैं। तुम उनसे प्रार्थना करो कि वे तुम्हारी का पुरूषता, दुर्बलता, अनुशासनहीनता, अविवेक को समाप्त करके तुम्हें मनुष्यता प्रदान करें।''
हमारे देश के कर्णधार युवाओं याद रखो। हमें ईश्वर और अपने महापुरूषों पर दृढ़विश्वास करके अपने मन और इन्द्रियों पर संयम करना पड़ेगा। हमें सहयोग एवं सेवा की भावना सीखनी पड़ेगी। जिससे आगे आने वाली पीढ़ी हमें सम्मानित दृष्टि से देखे। याद रखो हमारा और आपका युवा होना तभी सार्थक है यदि हम अनुशासन, नैतिकता, सदाचार, संयम एवं मनुष्यता का परिचय देंगे।
युवाओं! प्रतिज्ञा करो कि छोटों के साथ नरमी से, बड़ों के साथ करूणा से, संघर्ष करने वालों के साथ हमदर्दी और कमजोर व गलती करने वालों के साथ सहनशीलता से पेश आने की क्योंकि हम अपने जीवन में कभी न कभी इनमें से किसी न किसी स्थिति से गुजरते हैं।
तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था
इस लम्बे सफर में साथ तुम्हारे कोई और भी था
हर ठोकर पर सम्भालने वाला कोई और भी था
कितनी ही बरसातों ने कोशिशें की डराने की
सर पर आसमान उठाने वाला कोई और भी था
हर मोड़ पे कोई न कोई छोड़ कर जाता ही रहा
दूर मंज़िल तलक निभाने वाला कोई और भी था
जिसे भी अपना कहा,सबने ही बेगाना कर दिया
नए रिश्तों को संवारने वाला कोई और भी था
कुछ तो खाली रह गया था तुम्हारे खुद के होने में
तुम्हें खुद से ही मिलाने वाला कोई और भी था
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
Thursday, October 24, 2019
ओ भगवाधारी सिंह पुत्र,है कहाँ तुम्हारी हुंकारें
ओ भगवाधारी सिंह पुत्र,है कहाँ तुम्हारी हुंकारें,
हिंदुत्व तुम्हारा कहाँ गया,हैं कहाँ तुम्हारी तलवारें,
तुमको गद्दी पर बिठा दिया यह सोच कि कुछ बदलाव मिले,
अफसोस तुम्हारे रहते भी,हमको घावों पर घाव मिले,
जेहादी मंसूबो से हम लड़ते लड़ते झल्लाये थे,
यू पी का हिन्दू बचा रहे,योगी योगी चिल्लाए थे,
तुम रहो हितैषी हिन्दू के,यह सपने हमने पाले थे,
बस यही सोचकर सत्ता से आजम अखिलेश निकाले थे,
पर हाल तुम्हारे शासन का पहले से ज्यादा तंग मिला,
हमला शिव की बारातों पर,गणपति पर भी हुड़दंग मिला,
सबका विश्वास कमाने के चक्कर मे नैना बंद मिले,
शहरों में पुण्य तिरंगे की यात्राओं पर प्रतिबंध मिले,
जिनका विश्वास कमाना था,उन सबने यह उपहार दिया,
छाती पर चढ़कर योगी की,कमलेश तिवारी मार दिया,
यह सिर्फ नही है इक हत्या,यह कालिख है सरकारों पर,
ढोंगी हिन्दू पाखंडों पर,प्रभु श्री राम के नारों पर,
यह कालिख है गौ माता के उन झूठे सेवादारों पर,
यह कालिख है हिन्दू समाज के कायर ठेकेदारों पर,
ये हत्या एक संदेशा है,हिन्दू अस्तित्व उजाड़ेंगे,
योगी मोदी क्या कर लेंगे,यूँ ही चुन चुन कर मारेंगे,
गर्दन रेती गोली मारी,यह दृश्य देखकर डरे नही?
हिन्दू हिन्दू रटने वाले क्या आज शर्म से मरे नही?
यूँ ही कन्या पूजन या गौ सेवा का स्वांग रचा लोगे?
शहरों के नाम बदलने से हिन्दू की जान बचा लोगे?
योगी जी दो बरसों में ही रक्षा के बंधन छूट गए,
अब क्या राज चैहान कहे,विश्वास सभी के टूट गए,
तुम ही बेसुध हो जाओगे,हम किससे आस लगाएंगे,
जेहादी गुंडों से हमको,आजम अखिलेश बचाएंगे?
गर नही संभलता है शासन तो गोरखपुर में ध्यान करो,
या फिर यू पी के जख्मों का योगी जी तुरत निदान करो,
सबका विश्वास कमाने में,अपनो की मत कुर्बानी दो,
बाहर की नागफनी छोड़ो,घर की तुलसी को पानी दो,
हम धर्म सनातन के प्रहरी आवाज लगाते आएंगे,
हर बार पड़े मरना चाहे,हम जान गंवाते जाएंगे,
कातिलों!सुनो!हम डरे नही,हम परशुराम अवतारी हैं,
इक हिन्दू के अंदर सौ-सौ,जिंदा कमलेश तिवारी हैं।
Monday, October 21, 2019
कोरल ड्रा की शार्टकट की
Here's a list of default keyboard shortcuts.
Align Bottom | B | Aligns selected objects to the bottom |
Align Centers Horizontally | E | Horizontally aligns the centers of the selected objects |
Align Centers Vertically | C | Vertically aligns the centers of the selected objects |
Align Left | L | Aligns selected objects to the left |
Align Right | R | Aligns selected objects to the right |
Align To Baseline | Alt+F12 | Aligns text to the baseline |
Align Top | T | Aligns selected objects to the top |
Artistic Media | I | Draws curves and applies Preset, Brush, Spray, Calligraphic or Pressure Sensitive effe |
Back One | Ctrl+PgDn | Back One |
Break Apart | Ctrl+K | Breaks apart the selected object |
Brightness/Contrast/Intensity | Ctrl+B | Brightness/Contrast/Intensity... |
Bring up Property Bar | Ctrl+Enter | Brings up the Property Bar and gives focus to the first visible item that can be tabbed to |
Center to Page | P | Aligns the centers of the selected objects to page |
Character Formatting | Ctrl+T | Character Formatting |
Color Balance... | Ctrl+Shift+B | Color Balance |
Combine | Ctrl+L | Combines the selected objects |
Contour | Ctrl+F9 | Opens the Contour Docker Window |
Convert | Ctrl+F8 | Converts artistic text to paragraph text or vice versa |
Convert Outline To Object | Ctrl+Shift+Q | Converts an outline to an object |
Convert To Curves | Ctrl+Q | Converts the selected object to a curve |
Copy | Ctrl+C | Copies the selection and places it on the Clipboard |
Copy | Ctrl+Insert | Copies the selection and places it on the Clipboard |
Cut | Ctrl+X | Cuts the selection and places it on the Clipboard |
Cut | Shift+Delete | Cuts the selection and places it on the Clipboard |
Delete | Delete | Deletes the selected object(s) |
Distribute Bottom | Shift+B | Distributes selected objects to the bottom |
Distribute Centers Horizontally | Shift+E | Horizontally Distributes the centers of the selected objects |
Distribute Centers Vertically | Shift+C | Vertically Distributes the centers of the selected objects |
Distribute Left | Shift+L | Distributes selected objects to the left |
Distribute Right | Shift+R | Distributes selected objects to the right |
Distribute Spacing Horizontally | Shift+P | Horizontally Distributes the space between the selected |
Distribute Spacing Vertically | Shift+A | Vertically Distributes the space between the selected objects |
Distribute Top | Shift+T | Distributes selected objects to the top |
Duplicate | Ctrl+D | Duplicates the selected object(s) and offsets by a specified amount |
Dynamic Guides | Alt+Shift+D | Shows or hides the Dynamic Guides (toggle) |
Edit Text... | Ctrl+Shift+T | Opens the Edit Text dialog box |
Ellipse | F7 | Draws ellipses and circles; double-clicking the tool opens the Toolbox tab of the Option |
Envelope | Ctrl+F7 | Opens the Envelope Docker Window |
Eraser | X | Erases part of a graphic or splits an object into two closed paths |
Exit | Alt+F4 | Exits CorelDRAW and prompts to save the active drawing |
Export... | Ctrl+E | Exports text or objects to another format |
Font Size Decrease | Ctrl+NUMPAD2 | Decreases font size to previous point size |
Font Size Increase | Ctrl+NUMPAD8 | Increases font size to next point size |
Font Size Next Combo Size | Ctrl+NUMPAD6 | Increase font size to next setting in Font Size List |
Font Size Previous Combo Size | Ctrl+NUMPAD4 | Decrease font size to previous setting available in the Font Size List |
Forward One | Ctrl+PgUp | Forward One |
Fountain Fill... | F11 | Applies fountain fills to objects |
Freehand | F5 | Draws lines and curves in Freehand mode |
Full-Screen Preview | F9 | Displays a full-screen preview of the drawing |
Graph Paper | D | Draws a group of rectangles; double-clicking opens the Toolbox tab of the Options dial |
Graphic and Text Styles | Ctrl+F5 | Opens the Graphic and Text Styles Docker Window |
Group | Ctrl+G | Groups the selected objects |
Hand | H | Hand Tool |
Horizontal Text C | Ctrl+, | Changes the text to horizontal direction |
Hue/Saturation/Lightness... | Ctrl+Shift+U | Hue/Saturation/Lightness |
Import... | Ctrl+I | Imports text or objects |
Insert Symbol Character | Ctrl+F11 | Opens the Insert Character Docker Window |
Interactive Fill | G | Adds a fill to object(s); clicking and dragging on object(s) applies a fountain fill |
Lens | Alt+F3 | Opens the Lens Docker Window |
Linear | Alt+F2 | Contains functions for assigning attributes to linear dimension lines |
Macro Editor... | Alt+F11 | Macro Editor... |
Mesh Fill | M | Converts an object to a Mesh Fill object |
Micro Nudge Down | Ctrl+DnArrow | Nudges the object downward by the Micro Nudge factor |
Micro Nudge Left | Ctrl+LeftArrow | Nudges the object to the left by the Micro Nudge factor |
Micro Nudge Right | Ctrl+RightArrow | Nudges the object to the right by the Micro Nudge factor |
Micro Nudge Up | Ctrl+UpArrow | Nudges the object upward by the Micro Nudge factor |
Navigator | N | Brings up the Navigator window allowing you to navigate to any object in the document |
New | Ctrl+N | Creates a new drawing |
Next Page | PgDn | Goes to the next page |
Nudge Down | DnArrow | Nudges the object downward |
Nudge Left | LeftArrow | Nudges the object to the left |
Nudge Right | RightArrow | Nudges the object to the right |
Nudge Up | UpArrow | Nudges the object upw |
Open... | Ctrl+O | Opens an existing drawing |
Options... | Ctrl+J | Opens the dialog for setting CorelDRAW options |
Outline Color... | Shift+F12 | Opens the Outline Color dialog box |
Outline Pen... | F12 | Opens the Outline Pen dialog box |
Pan Down | Alt+DnArrow | Pan Down |
Pan Left | Alt+LeftArrow | Pan Left |
Pan Right | Alt+RightArrow | Pan Right |
Pan Up | Alt+UpArrow | Pan Up |
Paste | Ctrl+V | Pastes the Clipboard contents into the drawing |
Paste | Shift+Insert | Pastes the Clipboard contents into the drawing |
Place Inside Container... | Ctrl+1 | Places selected object(s) into a PowerClip container object |
Polygon | Y | Draws polygons |
Position | Alt+F7 | Opens the Position Docker Window |
Previous Page | PgUp | Goes to the previous page |
Print... | Ctrl+P | Prints the active drawing |
Properties | Alt+Enter | Allows the properties of an object to be viewed and edited |
Record Temporary Macro | Ctrl+Shift+R | Record Temporary Macro |
Rectangle | F6 | Draws rectangles; double-clicking the tool creates a page frame |
Redo | Ctrl+Shift+Z | Reverses the last Undo operation |
Refresh Window | Ctrl+W | Redraws the drawing window |
Repeat | Ctrl+R | Repeats the last operation |
Rotate | Alt+F8 | Opens the Rotate Docker Window |
Run Temporary Macro | Ctrl+Shift+P | Run Temporary Macro |
Save As... S | Ctrl+Shift+ | Saves the active drawing with a new name |
Save... | Ctrl+S | Saves the active drawing |
Scale | Alt+F9 Window | Opens the Scale Docker |
Select all | Ctrl+A | Select all object of the active page |
Shape | F10 | Edits the nodes of an object; double-clicking the tool selects all nodes on the selected |
Size | Alt+F10 Window | Opens the Size Docker |
Smart Drawing | Shift+S Dbl-click | opens Smart Drawing Tool options; Shift+drag backwards over line erases |
Snap to Grid | Ctrl+Y | Snaps objects to the grid (toggle) |
Snap to Objects | Alt+Z | Snaps objects to other objects (toggle) |
Spell Check... | Ctrl+F12 | Opens the Spell Checker; checks the spelling of the selected text |
Spiral | A | Draws spirals; double-clicking opens the Toolbox tab of the Options dialog |
Step and Repeat... | Ctrl+Shift+D | Shows Step and Repeat docker |
Stop Recording | Ctrl+Shift+O | Stop Recording |
Super Nudge Down | Shift+DnArrow | Nudges the object downward by the Super Nudge factor |
Super Nudge Left | Shift+LeftArrow | Nudges the object to the left by the Super Nudge factor |
Super Nudge Right | Shift+RightArrow | Nudges the object to the right by the Super Nudge factor |
Super Nudge Up | Shift+UpArrow | Nudges the object upward by the Super Nudge factor |
Symbol Manager | Ctrl+F3 | Symbol Manager Docker |
Text | F8 | Adds text; click on the page to add Artistic Text; click and drag to add Paragraph Text |
To Back Of Layer | Shift+PgDn | To Back Of Layer |
To Back Of Page | Ctrl+End | To Back Of Page |
To Front Of Layer | Shift+PgUp | To Front Of Layer |
To Front Of Page | Ctrl+Home | To Front Of Page |
Toggle Pick State | Ctrl+Space | Toggles between the current tool and the Pick tool |
Toggle View | Shift+F9 | Toggles between the last two used view qualities |
Undo | Ctrl+Z | Reverses the last operation |
Undo | Alt+Backspace | Reverses the last operation |
Ungroup | Ctrl+U | Ungroups the selected objects or group of objects |
Uniform Fill... | Shift+F11 | Applies uniform color fills to objects |
Use bullets | Ctrl+M | Show/Hide Bullet |
Vertical Text | Ctrl+. | Changes the text to vertical |
View Manager | Ctrl+F2 | Opens the View Manager Docker Window |
What's This? | Shift+F1 | What's This? Help |
Zoom | Z | Zoom Tool |
Zoom One-Shot | F2 |
|
Zoom Out | F3 | Zoom Out |
Zoom To Fit | F4 | Zoom To All Objects |
Zoom To Page | Shift+F4 | Zoom To Page |
Zoom To Selection | Shift+F2 | Zoom To Selected |
तेजाब के हमले में घायल एक लड़की के दिल से निकलीं कुछ पंक्तियाँ
चलो, फेंक दिया
सो फेंक दिया....
अब कसूर भी बता दो मेरा
तुम्हारा इजहार था
मेरा इन्कार था
बस इतनी सी बात पर
फूंक दिया तुमने
चेहरा मेरा....
गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
कि उसको मैं समझ ना सकी....
अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम ... अपनाओगे मुझको?
क्या अब अपना ... बनाओगे मुझको?
क्या अब ... सहलाओगे मेरे चहरे को?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे?
जो अब अन्दर धस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलियाँ मेरे गालों पर?
जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है
हाँ, शायद तुम कर लोगे....
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना?
अच्छा! एक बात तो बताओ
ये ख्याल 'तेजाब' का कहाँ से आया?
क्या किसी ने तुम्हें बताया?
या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया?
अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर?
गौरान्वित..???
या पहले से ज्यादा
और भी मर्दाना...???
तुम्हें पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बाकी है
एक सलाह दूँ!
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर इसमें मुझसे छलाँग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊँगी मैं
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें
और गहरा और सच्चा होगा....
एक दुआ है....
अगले जन्म में
मैं तुम्हारी बेटी बनूँ
और मुझे तुम जैसा
आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे
तुम्हारी इस हरकत से
मुझे और मेरे परिवार को
कितना दर्द सहना पड़ा है।
तुमने मेरा पूरा जीवन
बर्बाद कर दिया है।
बेटी से माँ का सफ़र
बेटी से माँ का सफ़र
बेफिक्री से फिकर का सफ़र
रोने से चुप कराने का सफ़र
उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र
पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी ।
आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं ।
पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को उठाया करती थी ।
आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं ।
छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती थी
बड़ी बड़ी बातों को मन में रखा करती हैं ।
पहले दोस्तों से लड़ लिया करती थी ।
आज उनसे बात करने को तरस जाती हैं ।
माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी ।
माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं ।
10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था ।
आज 7 बजे उठने पर भी
लेट हो जाता हैं ।
खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था ।
आज खुद के लिए एक कपडा लेने में आलस आ जाता हैं ।
पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया करते थे ।
अब पूरे दिन काम करके भी फ्री
कहलाया करते हैं ।
साल की एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करते थे।
अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करते हैं ।
ना जाने कब किसी की बेटी
किसी की माँ बन गई ।
कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई .....
तम्बाकू, गुटका खाने वालों के लिए इनामी योजना
योजना अवधि - जीवन पर्यन्त
प्रथम पुरस्कार - कैंसर
द्वितीय पुरस्कार - टी. बी.
तृतीय पुरस्कार - दमा
चतुर्थ पुरस्कार - गालों में छेद
पंचम पुरस्कार - गुर्दा फेल
षष्टम पुरस्कार - जवानी में बुढ़ापा
सप्तम पुरस्कार - मुख का खुलना बंद
अष्टम पुरस्कार - दांत गायब
नवम पुरस्कार - खांसी
दशम् पुरस्कार - अंधापन
ग्यारहवां पुरस्कार - हार्ट अटैक
शीघ्र करंे। आज ही आवेदन पत्र भरें-
1. आवेदन पत्र प्राप्ति का स्थान- जर्दा गुटका पान मसालों की दुकान।
2. आवेदन शुल्क- एक रुपये से दस रुपये तक।
पुरस्कार समारोह स्थल - स्थानीय श्मशान घाट
मुख्य अतिथि - यमराज महोदय
शीघ्रता से योजना का लाभ उठायें। प्रत्येक पाउच के साथ यमराज का आशीर्वाद मुफ्त पायें।
मत काटो इन वृक्षों को
मत काटो इन वृक्षों को।
वृक्षों में भी जान वही है,
जो है हम सबके अन्दर।
हरे भरे जो वृक्ष रहेंगे,
दुनिया होगी कितनी सुन्दर।
रखो सुरक्षित इन दरख्तों को,
मत काटो इन वृक्षों को।
लेकर कार्बन डाईआॅक्साइड,
दूर प्रदूषण ये करते हैं।
देकर आक्सीजन,
जिन्दा ये सबको रखते है।
ये फायदा दोनों पक्षों का,
मत काटो इन वृक्षों को।
निःस्वार्थ ये सेवा करते हैं,
परमारथ जीते, मरते हैं।
कितने ही फल पैदा करके,
पेट हमारा भरते हैं।
चुका नहीं सकते इनके कर्जों को,
मत काटो इन वृक्षों को।
मानसून इनसे ही बनता,
वरना जग सारा जाता जल।
करें आज इनकी रक्षा का वादा,
क्योंकि आता नहीं कभी कल।
मत भूलो अपने लक्ष्यों को,
मत काटो इन वृक्षों को।