हर विभाग के केंद्रीय बज़ट 2022 उपरांत सकारात्मक विश्लेषण वेबीनार से उत्साह का माहौल- पीएम द्वारा खुद बजट से हर क्षेत्र की प्रभावोत्पादकता बताना सराहनीय-एड किशन भावनानी
Monday, February 28, 2022
योजनाओं, परियोजनाओं बज़ट 2022 को रणनीतिक रोडमैप से धरातल पर पारदर्शिता से हितधारकों तक क्रियान्वयन करना चुनौतीपूर्ण कार्य
Sunday, February 20, 2022
मातृभाषाएं हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने, एक दूसरे से जोड़ने, सशक्त बनाने, सहिष्णुता, संवाद एकजुटता को प्रेषित करने का अचूक अस्त्र व मंत्र है
वैश्विक स्तरपर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फ़रवरी 2022 को मनाए जा रहे पर्व पर इस साल की थीम का विषय, बहुभाषी सीखने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना- चुनौतियां और अवसर, है| इस साल का विषय बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्ता शिक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है। वर्तमान प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग की प्रौद्योगिकी में आज शिक्षा में कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है। यह सभी के लिए समान और समावेशी आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासों में तेजी ला सकता है।
बुर्का, हिजाब और घुंघट सब गुलामी की निशानी
जब से मानव समाज की शुरुआत हुई है तब से लेकर अब तक औरतों को गुलाम बनाने की लगातार साजिश और कोशिशें होती रही है। मगर धीरे-धीरे मानव समाज ने अपनी पुरानी रूढ़ वादी परंपराओं को खत्म करने की कोशिश तो की मगर आज भी बहुत सी ताकत हैं, जो इन परंपराओं के पक्ष में खड़ी रहती है।
आज जो मुस्लिम समाज कर्नाटक के मुस्लिम लड़कियों के बुर्के और हिजाब के समर्थन में उतर रहा है। मैं उनसे सीधा सवाल करना चाहता हूं कि क्या आप आप नहीं चाहते कि आपके समाज की महिलाएं पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं से मुक्त हो ? अगर आप चाहते हैं कि आपके समाज की महिलाएं आगे बढ़े, आपके कदम से कदम मिलाए और देश का नाम रोशन करें तो फिर आपको दो नाव में पैर नहीं रखना चाहिए बल्कि आपको रूढ़िवादी परंपराओं, गुलामी के प्रतीक वस्त्र आभूषणों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अगर आपको लगता है कि कर्नाटक में आपकी समाज की लड़कियां सही कर रही है तो इससे एक बात साफ होता है कि आप नहीं चाहते कि आपके समाज की लड़कियां गुलामी से मुक्त हो। अब आप मेरे से सवाल करेंगे या मेरे सवालों का जवाब देंगे कि यह तो हमारी संस्कृति का हिस्सा है तो भैया जो संस्कृति किसी व्यक्ति या किसी समाज को गुलाम बनाती है तो उस संस्कृति को नष्ट ही किया जाता है।
अब बात आती है उन बच्चों की जो कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें धार्मिक नारे लगाकर प्रताड़ित करना चाहते हैं। अपने सोशल मीडिया पर एक
कुछ लोग का कहना हैं कि स्कूल, कॉलेजों में यूनिफार्म होती है जो सबके लिए लागू होती है ऐसे में मुस्लिम लड़कियों का हिजाब पहनने का समर्थन करना संवैधानिक तौर पर गलत है।
अगर देश को संवैधानिक तौर पर चलना या चलाना है तो फिर हम सभी को अपनी धार्मिक विचारधारा को घर में बंद करके रखना होगा। आपको लग रहा होगा कि हम किसी विशेष समुदाय
खैर छोड़िए हमारा मुख्य विषय- हिजाब, घुंघट और बुर्का है। आज मुस्लिम समाज अपने ही समाज की औरतों के बुर्के के समर्थन में खड़ा है।
मुस्लिम समाज यह बताएं कि कौन से नेता, कौन से अभिनेता और कौन से पूंजीपतियों का परिवार बुर्खा और हिजाब पहनता है ? यही सवाल हिंदू समाज से भी है कि आपके समाज के कितने
अगर आपको अपने समाज में किसी चीज का विरोध करना ही है तो बुरी चीजों का विरोध करो। जैसे बढ़ता नशे का कारोबार, सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही नफरत, सरकार की गलत
- दीपक कोहली
Thursday, February 17, 2022
बाल श्रम की विभीषिका, बगले झांकती मानवाधिकार संस्थाएं
संविधान के अनुसार 18 साल से कम उम्र का बच्चा यदि घरेलू कामों से अलग अन्य कार्यों जैसे कारखाना, होटल हलवाई या अन्य जगह कार्य करता है तो उसे बाल श्रमिक माना जाता है। कानूनी रूप से बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर पूरे भारत सहित अन्य विकासशील देशों में बाल श्रम की बहुतायत पाई गई है। बाल श्रम केवल एक ही रूप में मौजूद नहीं है बल्कि कई अन्य रूपों में भी वह प्रचलित है, इसमें घर पर कार्य करने वाले घरेलू श्रमिकों चाय खाने-पीने की होटलों पर कार्य करते बच्चे पटाखा उद्योगों में दिन रात काम करते बच्चों के छोटे-छोटे शहरों में कचरा कूड़ा बीनते और भीख मांगते बच्चों से कार्य लिया जाना भी बाल श्रम माना जाता है। यह भी कानूनी रूप से अवैध ही है। बाल श्रम मूल रूप से भारत में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, कुपोषण तथा बेरोजगारी जैसे कारण के कारण परिवार के लोगों द्वारा स्वयं अपने बच्चों को बाल श्रम के दलदल में फसा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त समाज में शिक्षा का अभाव, अंधविश्वास जागरूकता का अभाव तथा बच्चों के अधिकार के प्रति जानकारी का नितांत अभाव और बाल श्रम को लागू करने वाली संस्थाओं की कमजोरी के कारण बाल श्रम को बल मिलता है। बाल श्रम रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया में इतनी लंबी तथा महंगी होती है की इस प्रक्रिया पर रोक लगाना लगभग असंभव प्रतीत दिखाई देता है। कई परिवारों में बहुत बच्चे होने के कारण और परिवार के अभिभावकों की असामयिक मृत्यु अथवा बीमारी के कारण बच्चों पर ज्यादा जिम्मेदारी आने से बाल श्रम का सिलसिला शुरू होता है, और वह निर्बाध गति से आगे बढ़ता है। इसमें बच्चों का समाजिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, प्रशासनिक जैसे सभी स्तरों पर शोषण होता है। भारत में बाल श्रम इसीलिए भी प्रचलित है क्योंकि बाल श्रमिकों को वयस्क श्रमिक से आधे से भी कम पारिश्रमिक दिया जाता है। बाल श्रमिक बहुत कम दाम पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसलिए इस सिलसिले को रोकने का प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। बालकों के श्रम करने से उनमें मस्तिष्क का तनाव मानवी कुंठा तथा उन्हें दिग्भ्रमित करने की दिशा में कई स्तरों पर शोषण किया जाता है। इस तरह लाखों बच्चे सामाजिक बुराई के शोषण का शिकार होते हैं। बाल श्रम के कारण अनेक विसंगतियां के प्रमाण मिले थे जैसे मानव दुर्व्यवहार, बाल वेश्यावृत्ति जैसे अपराधों में बड़ी संख्या में वृद्धि होती है,और बाल श्रमिकों का जीवन एक दुर्घटना तथा अभिशाप बनकर रह जाता है । समाज के लिए कई परेशानियों का जन्म भी होता है। बाल श्रम करने के पश्चात भी बालकों बालिकाओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने से वह कुपोषण के भी शिकार होते हैं, और बाद में कई बीमारियों के संवाहक भी बन जाते हैं। जो बालक बालिकाओं की जिंदगी के लिए अत्यंत खतरनाक एवं कष्ट दायक होता है। बाल श्रम रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 का यदि कड़ाई से पालन किया जाए तो बाल श्रम को रोका जा सकता है । इसका क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियां ही एकदम ढीली एवं संदेशों से परे नहीं है। इन एजेंसियों में नियोजक द्वारा क्रियान्वयन की जाने वाली एजेंसियों के अधिकारियों के साथ भ्रष्टाचार करके इसे लालफीताशाही की चादर ओढ़ा दी जाती है। ऐसे में लाखों बच्चे बाल श्रम की आग में झोंक दिया जाते हैं। भारत में बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 एवं प्राथमिक शिक्षा अधिकार 2009, राष्ट्रीय पोषण मिशन, राष्ट्रीय बाल श्रम निवारण योजनाएं बनाई गई है। इनके क्रियान्वयन में को की लेटलतीफी के कारण लाखों बच्चे अभी भी बाल श्रम में उलझे हुए हैं। अपनी जिंदगी को स्वयं अपने कंधों पर ढोने पर मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में दुनिया भर की मानव अधिकार संस्थाएं क्यों मौन है। इतने कानून बनने के बाद भी बाल श्रमिकों की संख्या हर वर्ष क्यों बढ़ते जा रही है। यह एक विचारणीय प्रश्न है। बाल श्रमिकों पर जब भी संसद या विधायिका में प्रश्न उठाए जाते हैं तो मानव अधिकार की संस्थाएं क्यों बगले झांकने लगती है। बाल श्रमिक होना और बाल श्रम करवाना दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। बाल श्रमिक मजबूरी के कारण अपनी आजीविका चलाने के लिए बाल श्रमिक बनता है। पर इनको नियोजन में रखने वाली संस्थाओं पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। वरना बाल श्रमिक की विभीषिका दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती जाएगी और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। बाल श्रमिकों की संख्या को तत्काल रोका जाना चाहिए और इन्हें देश की मुख्यधारा में शामिल किया जा कर देश के विकास में इनका सहयोग लिया जाना चाहिए। अन्यथा आज के ये बच्चे भविष्य के मजबूत नागरिक कैसे बन पाएंगे और एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कैसे हो पाएगा।
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक,
संजीव-नी
शहरों की नीयत ठीक नहीं,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,
नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,
तोतली बोली में झूमती हवाएं,
लहरा लहरा कर उड़ता दुपट्टा,
अनाज की बालियां,
खेतों की हरियाली,
छल छल कर बहता पानी,
पहली बरसात की
काली मिट्टी की सोंधी गंध,
गोधूलि की फैली संध्या,
बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,
छोटी सकरी सड़क पर,
बकरी और गाय हांकने की आवाज,
दूर दिखाई देता,
घास फूस का मचान,
और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,
सब कुछ धुंधला दिखता,
फ्लैशबैक की तरह मलीन,
घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,
कसैला धूंआ
गोधूलि की बेला को धूमिल करता,
निश्चल पानी कसैला हो उठा,
नन्हें पैर भयानक बन गए,
काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,
छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,
मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,
दूर लकड़ी का मचान नहीं,
गगनचुंबी इमारत दिखती,
उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,
गाड़ियों की गड़गड़ाहट,
कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,
अब खुशहाल हरीतिमा के,
इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,
सब कुछ कठोर,
शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल
को देखकर,
शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?
संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,
प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2022-27 के लिए एक नई योज़ना - प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया
सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैर साक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय - एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तरपर किसी भी देश के तीव्रता से विकास करने के कारणों के मुख्य स्तंभों में से एक साक्षरता, शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, आधारभूत साक्षरता का महत्वपूर्ण रोल होता है जो, उच्च शिक्षा, उच्चतम शिक्षा की नींव होती हैं। अगर मनीषियों की बुनियादी शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण है, आधारभूत साक्षरता उच्च स्तर की है, तो अपेक्षाकृत तीव्र और तत्परता से उस देश में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक सहित अनेक तकनीकों के विशेषज्ञ निकलते हैं जो तीव्रता से उस देश को विकास में आगे बढ़ाकर पूर्ण विकसित देश की श्रेणी में लाकर खड़ा करते हैं यह है गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा का कमाल!!!
साथियों बात अगर हम भारत की करें तो यह एक कृषि,गांव प्रधान देश है। अधिकतम आबादी गांव में रहती है, लेकिन भारत को शिक्षा का विस्तार और गुणवत्तापूर्ण ढांचे को दूर-दराज के गांव, इलाकों में पहुंचाने में समय की दरकार है जबकि शहरी क्षेत्रों में आधारभूत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के आधारभूत ढांचे को तीव्रता से स्थापित करने में शासकीय प्रशासकीय स्तर पर तीव्रता से योजनाएं जारी है।
साथियों बात अगर हम ऐसे मनीषियों की करें जिनका शिक्षा का समय अपेक्षित था पर उम्र निकल गई है उन्हें शिक्षित करने साक्षरता अभियान की करें तो शिक्षा मंत्रालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रौढ़ शिक्षा शब्दावली में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैरसाक्षरों को उचित रूप से शामिल नहीं किया जा रहा है इसका संज्ञान लेकर अभी सरकार ने उस योजना का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा रखा गया है, जो निर्णय एक प्रगतिशील कदम के रूप में है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 16 फरवरी 2022 को मंजूरी दिए गए न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022 -27 की करें तो इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और 2021-22 के बजट की घोषणा के अनुसार वयस्क शिक्षा के सभी पहलुओं को कवर करने के लिए लाया गया है,ऐसा पीआईबी में कहा गया है।
साथियों बात अगर हम न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022-27 की विशेषताओं और इससे एक जनांदोलन के रूप में देखने की करें तो शिक्षा मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार, योजना की मुख्य विशेषताएं-1)स्कूल इस योजना के क्रियान्वयन की इकाई होगा। 2) लाभार्थियों और स्वैच्छिक शिक्षकों (वीटी) का सर्वेक्षण करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्कूल। 3) विभिन्न आयु समूहों के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई जाएगी। नवोन्मेषी गतिविधियों को शुरू करने के लिए राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों को लचीलापन प्रदान किया जाएगा। 4)15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैर-साक्षर लोगों को महत्वपूर्ण जीवन कौशल के माध्यम से मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्रदान की जाएगी।
5) योजना के व्यापक कवरेज के लिए प्रौढ़ शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकियों का उपयोग। 6)राज्य/केंद्रशासित प्रदेश और जिला स्तर के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) यूडीआईएसई पोर्टल के माध्यम से भौतिक और वित्तीय प्रगति दोनों के बीच संतुलन कायम करते हुए वार्षिक आधार पर योजना और उपलब्धियों को लागू करने के लिए राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन को दिखाएगा। 7) आईसीटी समर्थन, स्वयंसेवी सहायता प्रदान करने, शिक्षार्थियों के लिए सुविधा केंद्र खोलने और सेल फोन के रूप में आर्थिक रूप से कमजोर शिक्षार्थियों को आईटी पहुंच प्रदान करने के लिए सीएसआर/ परोपकारी सहायता प्रदान की जा सकती है।
8) साक्षरता में प्राथमिकता और पूर्ण साक्षरता - 15-35 आयु वर्ग को पहले पूर्ण रुप से साक्षर किया जाएगा और उसके बाद 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को साक्षर किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी/अल्पसंख्यकों, विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों (दिव्यांगजन), हाशिए वाले/घुमंतू/निर्माण श्रमिकों/मजदूरों/आदि श्रेणियों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो प्रौढ़ शिक्षा से पर्याप्त रूप से और तुरंत लाभ उठा सकते हैं। स्थान/क्षेत्र के संदर्भ में, नीति आयोग के तहत सभी आकांक्षी जिलों, राष्ट्रीय/राज्य औसत से कम साक्षरता दर वाले जिलों, 2011 की जनगणना के अनुसार 60 प्रतिशत से कम महिला साक्षरता दर वाले जिलों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक की अधिक जनसंख्या, शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों/ब्लॉकों पर ध्यान दिया जाएगा।
साथियों बात अगर हम इस योजना को जनांदोलन के रूप में करें तो पीआईबी के अनुसार 1) जनांदोलन के रूप में एनआईएलपी-अ) यूडीआईएसई के तहत पंजीकृत लगभग 7 लाख स्कूलों के तीन करोड़ छात्र / बच्चे के साथ-साथ सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लगभग 50 लाख शिक्षक स्वयंसेवक के रूप में भाग लेंगे।
ब) शिक्षक शिक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों के अनुमानित 20 लाख छात्र स्वयंसेवक के रूप में सक्रिय रूप से शामिल किए जाएंगे। क) पंचायती राज संस्थाओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं और नेहरू युवा केंद्संगठन, एनएसएस और एनसीसी के लगभग 50 लाख स्वयंसेवकों से सहायता प्राप्त की जाएगी।ड) स्वैच्छिकता के माध्यम से और विद्यांजलि पोर्टल के माध्यम से समुदाय की भागीदारी, परोपकारी / सीएसआर संगठनों की भागीदारी होगी। स) राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश विभिन्न मंचों के माध्यम से व्यक्तिगत/परिवार/गांव/जिले की सफलता की गाथाओं को बढ़ावा देंगे।ज) यह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, टीवी चैनल, रेडियो आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, लोक और इंटर-पर्सनल प्लेटफॉर्म जैसे सभी प्रकार के मीडिया का उपयोग करेगा। 2) मोबाइल ऐप, ऑनलाइन सर्वेक्षण मॉड्यूल, भौतिक तथा वित्तीय मॉड्यूल एवं निगरानी संरचना आदि से लैस समेकित डेटा कैप्चरिंग के लिए एनआईसी द्वारा केंद्रीय पोर्टल विकसित किया जाएगा।
3) कार्यात्मक साक्षरता के लिए वास्तविक जीवन की सीख और कौशल को समझने के लिए वैज्ञानिक प्रारूप का उपयोग करके साक्षरता का आकलन किया जाएगा। मांग पर मूल्यांकन भी ओटीएलएएस के माध्यम से किया जाएगा और शिक्षार्थी को एनआईओएस तथा एनएलएमए द्वारा संयुक्त रूप से ई-हस्ताक्षरित ई-प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। 4)प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश से चुने गए 500-1000 शिक्षार्थियों के नमूनों और परिणाम-उत्पादन निगरानी संरचना (ओओएमएफ) द्वारा सीखने के परिणामों का वार्षिक उपलब्धि सर्वेक्षण।
साथियों बात अगर हम इस योजना के बजट और 15 वर्ष से ऊपर गैरसाक्षर मनीषियों की करें तो, नव भारत साक्षरता कार्यक्रम का अनुमानित कुल परिव्यय 1037.90 करोड़ रुपये है, जिसमें वित्त वर्ष 2022-27 के लिए क्रमशः 700 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा और 337.90 करोड़ रुपये का राज्य हिस्सा शामिल है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में गैर-साक्ष्यों की कुल संख्या 25.76 करोड़ (पुरुष 9.08 करोड़, महिला 16.68 करोड़) है। 2009-10 से 2017-18 के दौरान साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत साक्षर के रूप में प्रमाणित व्यक्तियों की 7.64 करोड़ की प्रगति को ध्यान में रखते हुए, यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में भारत में लगभग 18.12 करोड़ वयस्क अभी भी गैर-साक्षर हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि न्यू इंडिया साक्षरता योजना प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2024-27 के लिए एक नई योजना लाई गई है,प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया है तथा सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैरसाक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय कार्य है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
Wednesday, February 16, 2022
खामोश...तुम्हारी इतनी जुर्रत
अब दिन कुछ ऐसे आ गए हैं कि सांस लेने से पहले हवा से अनुमति लेनी होगी कि क्या मैं सांस ले सकता हूं? हवा को सख्त आदेश दे दिए जायेंगे कि वह बहने से पहले बताएं आज कहां, कब और किस दिशा में बहेगी और कितना बहेगी। बहने से पहले अपनी मंशा भी बतानी होगी कि वह क्यों बहना चाहती हैं। अन्यथा उसके बहने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
ऐसा ही एक नया कानून तूफानी हवाओं पर भी लगा दिया गया। उन्हें देश से तड़ीपार हो जाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। यदि वे इसका उल्लंघन करते हैं तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। कारण, सताने वाले शेखचिल्ली के ख्वाब बुन रहे हैं और गहरी निद्रा के बाद हवाई किलो को वास्तविक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए नए कानूनों का पालन करना तूफानी हवाओं की मौत पर बन आयी है। इतना ही नहीं नए कानून का चाबुक समुद्र की लहरों पर भी पड़ा है। अब वह बड़ी-बड़ी लहरों के साथ किनारे को छूने का प्रयास नहीं कर सकता। यदि ऐसा करता है तो उसकी लहरें कैद कर ली जाएंगी। इसके अतिरिक्त समस्त जल राशि दंड स्वरूप वसूल ली जाएगी। इसलिए जितनी भी हलचल, उथल-पुथल आक्रोश हो उसे अपने भीतर ही दबाकर रखना होगा। उसका प्रदर्शन करना कानूनी अपराध माना जाएगा।
नए कानून के अनुसार बगीचे के फूल सारे एक जैसे ही उगने चाहिए। उगने वाले फूल भी एक जैसे रंग के होने चाहिए। यदि फूल इन बातों का कहा नहीं मानते तो उन पर कानून की दंड संहिता लागू कर दी जाएगी। जब देश एक है तो फूल का रंग भी एक होना चाहिए। हवाएं जब हमारी सीमाओं में बहती है तो उन्हें हमारी सीमाओं का पालन करना चाहिए। समुद्र की लहरें जब हमारी जमीन पर उछल-कूद करती है तो उन्हें भी हमारी कानूनी उछल-कूद का पालन करना होगा। काश कानून बनाने वाले जान पाते कि हवा, समुद्र और सांसें जब तक चुप हैं तब तक नए कानूनों की मनमानी चलती है। किंतु यही जब सुनामी बन जाते हैं तब कानूनों की गुमनामी इतिहास के पन्नों में पढ़नी पड़ती है।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा
Sunday, February 13, 2022
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए
प्रेम नाम की अद्भुत बख़्शीश को फिल्म के माध्यम से जबरदस्त लोकप्रिय बनाया गया है। प्रेम को केंद्र में रख कर बनती फिल्में इस तरह बनती हैं कि गरीबों से ले कर अमीरों तक को दुखी कर देती हैं। आलमआरा से पुष्पा तक प्रेम से मिलने वाले आनंद के साथ-साथ प्रेम के लिए बलिदान की भी बातें बताई जाती हैं। पुरानो फिल्मों में एक लंबे दौर तक गरीब प्रेमी और अमीर प्रेमिका वाली स्टोरी चलती रही। एक अंतराल में संगम टाइप प्रणय त्रिकोण आया, पर ज्यादातर प्रेम का निर्दोष स्वरूप ही रहा। जिसमें बेवफाई कम ही देखने को मिलती थी। परंतु धीरे-धीरे कुछ नए के चक्कर में जो लोगों को अच्छा लगे, उस थीम पर फिल्में बनने लगीं। यह कुछ गलत भी नहीं था, क्योंकि फिल्में बनाना भी तो आखिर एक धंधा ही है। परंतु हिंदुस्तान देश में जहां आज भी लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र के चक्कर में पड़े रहते हैं, सांप-बिच्छू काटे तो इमरजेंसी ट्रीटमेंट के बजाय तंत्र-म॔त्र के पीछे भागते हैं, आज भी घटिया-टुटपुंजिया नेताओं के कहने पर तोड़-फोड़ करते हैं, वहां सार्वजनिक रूप से जनता को प्रभावित कर सके, इस तरह के हर माध्यम को इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि किसी भी मुद्दे को समझदारी के साथ अर्थघटन करे इतनी परिपक्वता हमारे यहां आई नहीं है। ऐसे समय में जो सचमुच परिपक्व और प्रतिभाशाली लोग हैं, उन्हें जिम्मेदारी के साथ अपना फर्ज निभाना चाहिए। बल्गैरिटी से भरपूर अनेक वेबसिरीज के युग में यह मुद्दा डिबेट का विषय होने के साथ बहुत ही महत्वपूर्ण है।
भिक्षुकों और ट्रांसजेंडर समुदाय की आजीविका, उद्यमों, कल्याण और व्यापक पुनर्वसन के लिए नायाब तोहफा
भीख मांगने के कार्य में से संलग्न और ट्रांसजेंडर समुदाय को सुरक्षित जीवन जीने में यह केंद्रीय स्माइल अंब्रेला स्कीम मील का पत्थर साबित होगी- एड किशन भावनानी
सच्चा भक्त
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं।
मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन में तो कुछ इसके विपरित ही विचार चल रहा था। जब वो वोट डालने के लिए घर से मतदान केन्द्र की तरफ निकले तो वो रास्ते में सोच रहे थे कि आज तक उन्होंने जिस भी नेता को वोट दिया है चाहे वो ग्राम प्रधान हों या जिला पंचायत वो सिर्फ हारा है।
जैसे ही विदेश चौधरी ई बी एम मशीन पर पहुंचे तो उन्होंने सोचा कि यदि वो साइकिल का बटन दवा दे तो साइकिल तो कैसा रहेगा? ज्यों ही उन्होंने साइकिल का बटन दबाने के लिए हाथ आगे बढाया त्यों ही उनके दिल के अन्दर से आवाज आई कि तू कमल ही दबा दें जो होगा देखा जायेगा और उन्होंने कमल का बटन दबा दिया।
लेखक
नितिन राघव
Friday, February 11, 2022
लोक कल्याण संकल्प पत्र, सत्य वचन, उन्नति विधान
नए डिजिटल भारत में चुनावी घोषणा पत्रों का स्वरूप बदला- नए प्रौद्योगिकी भारत में मतदाता स्पष्ट विकल्प चुनने में सक्षम
वजह
मुस्कुराहट की वजह बनो
क्यों दर्द की वजह बनते हो ?
मोहब्बत की वजह बनो
क्यों नफरत की वजह बनते हो ?
जीने की वजह बनो
क्यों मृत्यु की वजह बनते हो ?
निभाने की वजह बनो
क्यों बिखरने की वजह बनते हो ?
हंसने की वजह बनो
क्यों रुलाने की वजह बनते हो ?
दोस्ती की वजह बनो
क्यों दुश्मनी की वजह बनते हो ?
सम्मान की वजह बनो
क्यों अपमान की वजह बनते हो ?
आशा की वजह बनो
क्यों निराशा की वजह बनते हो ?
जीताने की वजह बनो
क्यों हराने की वजह बनते हो ?
राजीव डोगरा
Wednesday, January 26, 2022
उरई से महेन्द्र कठेरिया तथा कालपी से विनोद चतुर्वेदी अब बने सपा के प्रत्याशी
दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो
उरई(जालौन)। विधानसभा चुनाव मे टिकट कटने और मिलने के घमासान मे जनपदीय नेता रात दिन लखनऊ और जनपद जालौन को अधाधुंध भागदौड़ करके मानो एक किये दे रहे है। फलस्वरूप ताजा जानकारी के अनुसार पूर्व मे कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व विधायक विनोद चतुर्वेदी को अब कालपी विधानसभा सीट से तथा युवा उदयीमान नेता महेन्द्र कठेरिया को अब सपा का कालपी और उरई का प्रत्याशी बना दिया गया है। उक्त जानकारी सपा हाईकमान द्वारा दी जा रही है।
रोज रोज नए समीकरण बनने और बिगड़ने से जनपद के राजनीतिक हलकों मे जहां तगड़ा घमासान मचा हुआ है वहीं जनपद की जनता भी निष्ठा परिवर्तन के साथ साथ प्रत्याशिता परिवर्तन का मजा पूरे आनन्द के साथ देख रही है। स्मरण रहे कि एक दिन पूर्व सपा के यह दोनो टिकट क्रमशः पूर्व मंत्री श्रीराम पाल तथा उरई से पूर्व राज्यमंत्री दयाशंकर वर्मा के लिये घोषित किये जाने की चर्चा रही। किन्तु इन पुरानी बातों को निरमूल साबित करते हुए समाजवादी पार्टी के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सवर्णो की अग्रणी विरादरी ब्राम्ह्रण को उपेक्षित करना उचित नही समझा और सवर्ण, वैकवर्ड तथा दलित समाज को सन्तुलित करने की ऐसी रणनीति बनायी कि रातों रात टिकट परिवर्तित कर दिये तथा सर्वत्र अखिलेश यादव की कूटनीतिक चतुराई की जनपद मे सराहना की जा रही है। क्योंकि ब्राहम्मण सामूहिकता मे सपा से एक भी टिकट न मिलने से अपने को खास उपेक्षित महसूस कर रहे थे और इसका नुकसान सपा के लिये चुनाव मे खतरनाक साबित हो सकता था। मगर अब सामाजिक सन्तुलन को बखूबी संभाल दिया गया है।