Friday, April 25, 2025

जग में धन्य कौन है भाई

इस मायिक संसार में धन्य कौन है? श्रीराम जी को स्मरण कर अल्प बुद्धि से अवलोकन करने की कोशिश...

1. जिन्हें भगवान भोले नाथ प्रिय हैं वे मनुष्य धन्य हैं-याग्यवल्क्य जी- अहो धन्य तव धन्य मुनीसा। तुम्हहिं प्रान सम प्रिय गौरीसा।।याग्यवल्क्य जी कहते हैं कि हे भारद्वाज जी आप धन्य हैं,क्योंकि आपको पार्वती पति शंकर जी प्राणों के समान प्रिय हैं।

2. जो सप्रेम श्रीराम चरित  श्रवण करना चाहते हैं वे धन्य हैं-धन्य धन्य गिरिराज कुमारी।तुम समान नहिं कोउ उपकारी।।शंकर जी के दृष्टि में माता पार्वती जी अज्ञानी नहीं परोपकारी लगती हैं। क्योंकि राजा भगीरथ के प्रयास से गंगा जी पृथ्वी पर आईं और माता पार्वती जी के अनुरोध पर राम चरित मानस- पूँछेहू रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनी गंगा।।

3. जिनके गृह,आश्रम पर संत का आगमन हो,वह संत अतिथि को आदर करने वाले का गृहादि धन्य है- विश्वामित्र जी के आगमन पर दशरथ जी- चरन पखारि कीन्हि अति पूजा।मो सम आजु धन्य नहीं दूजा।।

4. जिनके कार्य से माता पिता आनंदित होते हैं वे संतान धन्य हैं-धन्य जनम जगतीतल तासू।पितहिं प्रमोदु चरित सुनि जासु।। भक्त दशरथ कौशल्या को आनंदित करने हेतु बाल रूप राम जी कई लीला किए...।

5 जो प्रभु दर्शन करा दे वह धन्य हैं-अयोध्या वासी भरत प्रति कहते हैं-धन्य भरतु जीवनु जग माहीं।...देवता- भरत धन्य कहि धन्य सुर हरषित बरसहिं फूल।...भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ...।

6.जिन्हें प्रभु श्रीराम जी अपना लें वह धन्य..भरत जी द्वारा निषाद गुह को गले लगाने पर- धन्य धन्य धुनि मंगल मूला।सुर सराहि तेहि बरिसहिं फूला।।

7.श्रीराम प्रेमी भरत जी के दर्शन करने वाले धन्य हैं- हम सब सानुज भरतहिं देखे।भइन्ह धन्य जुबति जग लेखे।।ग्राम्य नारी अपने को धन्य समझ रही हैं।

8.जो मायिक संसार से आशा त्याग कर श्रीराम रंग में रंग गए वह धन्य हैं- ते धन्य तुलसीदास आस बिहाई जे हरि रंग रँए...।

9. सीताराम जी के नाम का कानों से सतत् पान करने वाला धन्य हैं- धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम् ..।

10.प्रभु कार्य,परोपकार में प्राण न्योछावर करने वाले धन्य हैं- धन्य जटायु सम कोउ नाहीं।

11. जिस वंश में श्रीराम भक्त संतान हों,वह कूल धन्य है- धन्य धन्य तैं धन्य विभीषण।भयहु तात!निसिचर कूल भूषण।।बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर।भजेहु राम सोभा सुख सागर।।....


दो शब्द

बहुत समय पहले की बात है, एक प्रसिद्द गुरु अपने मठ में शिक्षा दिया करते थे। पर यहाँ शिक्षा देना का तरीका कुछ अलग था, गुरु का मानना था कि सच्चा ज्ञान मौन रह कर ही आ सकता है; और इसलिए मठ में मौन रहने का नियम था। लेकिन इस नियम का भी एक अपवाद था, दस साल पूरा होने पर कोई शिष्य गुरु से दो शब्द बोल सकता था।

पहला दस साल बिताने के बाद एक शिष्य गुरु के पास पहुंचा, गुरु जानते थे की आज उसके दस साल पूरे हो गए हैं ; उन्होंने शिष्य को दो उँगलियाँ दिखाकर अपने दो शब्द बोलने का इशारा किया। शिष्य बोला, ”खाना गन्दा“ गुरु ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया। इसी तरह दस साल और बीत गए और एक बार फिर वो शिष्य गुरु के समक्ष अपने दो शब्द कहने पहुंचा। ”बिस्तर कठोर”, शिष्य बोला।

गुरु ने एक बार फिर ‘हाँ’ में सर हिला दिया। करते-करते दस और साल बीत गए और इस बार वो शिष्य गुरु से मठ छोड़ कर जाने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ और बोला, “नहीं होगा” . “जानता था”, गुरु बोले, और उसे जाने की आज्ञा दे दी और मन ही मन सोचा जो थोड़ा सा मौका मिलने पर भी शिकायत करता है वो ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकता है।


हमेशा अच्छा करें

 एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती। एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी,जिसे कोई भी ले जा सकता था।

 एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।

 दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा। वो कुबड़ा रोज रोटी ले के जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएग।

 वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है,मतलब क्या है इसका !!

 एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की,कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- हे भगवन !! मैं ये क्या करने जा रही थी ? और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी।

 हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा। बड़बड़ाता हुआ चला गया। इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है।

 हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापिसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी।

 ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है। वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है। अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है। वह पतला और दुबला हो गया था उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था,भूख से वह कमज़ोर हो गया था। जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा उसने कहा- माँ !! यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ आज !! जब मैं घर से एक मील दूर था,मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया। मैं मर गया होता.. लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे।मैंने उससे खाने को कुछ माँगा। उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- मैं हर रोज़ यही खाता हूँ,लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है। सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो।

 जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी,माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया। उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..? और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।

निष्कर्ष - हमेशा अच्छा करो !! और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको,फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो।कर्म बीज कभी विनष्ट नहीं होते यह अकाट्य सत्य है।जैसा बोयेंगे, वैसा ही काटेंगे बस फलित होने में समय लगता है।

कर भला होगा भला।

नेकी का बदला नेक है।।

Thursday, April 24, 2025

दान दिए धन न घटे

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

सद्गुरु कबीर जी ने बड़े ही सरल व स्पष्ट शब्दों में कहा है:

चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घटियो नीर।

दान दिए धन न घटे, कह गए दास कबीर।

अभिप्राय: यह है कि जब भगवान ने आपको दिया है तो आप भी दान करें। दानी कभी घाटे में नहीं रहता। दान तो कई गुणा बढ़ता है। रविंद्रनाथ टैगोर ने स्वरचित पुस्तक पुष्पांजलि में एक सत्य कथा का बड़ा सुंदर वर्णन किया है कि एक बार एक सज्जन नगर के बाजार से ज्वार खरीद कर ला रहे थे। मार्ग के मध्य में उनकी भेंट एक भिखारी से हुई। भिखारी ने हाथ फैला कर कहा, ‘‘बाबू जी! कुछ देते जाओ।’’ उस भद्र पुरुष ने उस ज्वार में से एक दाना उठाया और भिखारी के हाथ पर रख दिया।

भिखारी ने शुभकामना व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबू जी, भगवान आपको खूब दें। अनगिनत होकर मिले।’’

घर पहुंचते ही उन सज्जन ने ज्वार धर्मपत्नी के हाथों सौंप दी। जब वह उसे पकाने के लिए साफ करने लगी तो ज्वार के दानों में एक सोने का दाना देखकर आश्चर्यचकित रह गई। पत्नी ने तुरंत अपने पति से कहा, ‘‘आप जिस दुकानदार से ज्वार खरीद कर लाए हैं वह तो घाटे में रहा। उसके साथ धोखा हुआ है। उसका एक सोने का दाना गलती से इस ज्वार में आ गया है। कृपया उसे लौटा आइए।’’

पति को मध्य मार्ग में मिले भिखारी की तुरंत याद आ गई। पति ने माथे पर हाथ मार कर कहा, ‘‘धोखा एवं घाटा उस दुकानदार को नहीं हुआ, धोखा तो मेरे साथ हुआ है।’’

पत्नी ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

पति ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘मैंने आते समय एक भिखारी के मांगने पर एक ज्वार का दाना दान में दिया था। उसे ही भगवान ने सोने में परिवर्तित कर दिया है। यदि मुठ्ठी भर दे देता तो आज हमारी दरिद्रता दूर हो जाती।’’

अत: जब दान देने का सुअवसर मिले तो दिल खोलकर उदारतापूर्वक दें। दान देकर सुख की जो अनुभूति होती है उसका वर्णन शब्दों द्वारा नहीं किया जा सकता। उस दिव्य आनंद की अनुभूति उसे ही होती है जो प्रेम एवं उदारतापूर्वक दान करता है।