Monday, October 21, 2019

आर्कटिक-सागर ;उत्तरी ध्रुव

 आर्कटिक यानि उत्तरी ध्रुव जिसे भौगोलिक भाषा में 900 उत्तरी अक्षांश, जो बिन्दु मात्र रह जाता है, के नाम से जाना जाता है। अगर उसे हम पृथ्वी की छत कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां विशाल बर्फ के अतिरिक्त आर्कटिक सागर भी शामिल है। यह सागर कई देशों जैसे- कनाडा, ग्रीन लैण्ड, रूस, अमेरिका, आइसलैण्ड, नार्वे, स्वीडन और फिनलैण्ड की जमीनों को छूता हैै।
 उत्तरी धु्रव पर पहुंचने का सबसे प्रथम सफल प्रयास राबर्ट पियरे ने किया। इसके पहले भी कई प्रयास हुए थे। लेकिन वे सफल नहीं हुए। यह व्यक्ति 1908 में इन अन्तरीप तक रूजवेल्ट नामक जहाज में गया। वहां से वह अपने दल के साथ पैदल ही आगे बढ़ा। बारह स्लेज गाड़ियों में उसका सामान लदा था जिसे 133 कुत्ते ;रेण्डियरद्ध खींच रहे थे। 
 6 अप्रैल 1909 को पियरे अपने साथी मैथ्यू हैनसन और चार एस्किमों के साथ पृथ्वी की उत्तरी-चोटी पर पहुंचा। आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ का विशाल सागर है जिसे अंध महासागर का उत्तरी छोर भी कहा जाता है इस क्षेत्र में वनस्पति कम मिलती है फिर भी लाइकेन, मांस तथा प्लैक्टन नामक पौधे पाये जाते हैं। इस जमीन पर धु्रवीय भालू और कुछ लोग भी रहते हैं। इस अनोखे भौगोलिक वातावरण के कारण यहां रहने वाले लोगों ने खुद को हालात के अनुसार ढाल लिया है यहां पर सर्दियां भीषण बर्फीली और अंधियारी होती है। गर्मियों में सूर्य 24 घण्टे निकला रहता है। यहां का मौसम सर्दियों में शून्य से 400ब् तक नीचे जा पहुंचता है। यहां का सबसे कम तापमान शून्य से 680ब् से नीचे तक रिकार्ड किया गया है। 
 यहां गर्मियों में भी ठण्ड बनी रहती है। ऐसा समुद्री हलचल के कारण होता है। कई तरह के पदार्थ भी इस क्षेत्र में मिलते हैं, जैसे-तेल, गैस, खनिज आदि। कई किस्म की जैव-विविधता, यहां प्राड्डतिक तौर पर संरक्षित हैं। कुछ समय से यह क्षेत्र पर्यटन उद्योग की दृष्टि में आया है। यहां विश्व के जल क्षेत्र का 1/5 प्रतिशत जल स्त्रोत है। इन्टरनेशनल आर्कटिक साईन्स कमेटी ने गत दस वर्षों में इस जटिल क्षेत्र के संदर्भ में कई नई जानकारियां जुटाई हैं तथा प्रयास भी कर रही हैं।
 इस क्षेत्र का सबसे रोचक दृश्य मिडनाईंट-सन और  पोलरनाईट है।


शिष्य, शिक्षक और सम्भावना

 गुरु और शिष्य का पुरातन काल से अत्यन्त पवित्र, श्रद्धा एवं विश्वास से भरा विशु( निस्वार्थपूर्ण सम्बन्ध रहा है दोनो एक सिक्के के दो पहलू हैं, दोनों का ही अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। समाज में यदि आज इन सम्बन्धों में कुछ कमी आई है तो इस सम्बन्ध में दोनों को ही विचार करने की आवश्यकता है।
 सामान्यतयः हमें अपनी गलतियां ढूंढनी चाहिए न कि सामने वाले की। यदि हम ऐसा कर लेते हैं, तो समझो कि हमने उस पर विजय प्राप्त कर ली। हमें दूसरे के अनुकूल बनने की सोचना चाहिये, न कि हम दूसरे को अपने अनुकूल बनाने की सोचें। 
 यदि हमें किसी विद्यार्थी को दण्ड देना अनिवार्य लगता है तो हम उसे दण्ड तो दें, किन्तु बाद में उस घटना पर आत्मावलोकन भी करें। एक-दो दिन बाद उस दण्डित किये गये शिष्य को बुलाकर समझाए, कि उसे दण्ड क्यों दिया गया। उसे उसके उज्ज्वल भविष्य के बारे में समझाऐं और विश्वास दिलाऐं कि यदि उसने पूरे मनोयोग से पढ़ाई में मन लगाया तो उसका भविष्य संवर जायेगा और वह अच्छा विद्यार्थी एवं श्रेष्ठ नागरिक बन सकता है। ऐसा करने पर उस शिष्य के मन में यदि दण्ड पाने के समय क्षणिक द्वेष, गलत भावना पैदा हो गई होगी तो स्वतः आपके समझाने के कारण दूर हो जायेगी और वह यह समझने लगेगा कि जो आपने उसे दण्ड दिया, वह उसकी भलाई के लिये था, और उसके मन में आपके प्रति श्रद्धाभाव भी पैदा हो जायेगा। साथ ही स्वयं पर भी चिन्तन करके एक घटना पर विचार करें।
 कल्पना करें कि आप से किसी ने बस स्टैण्ड तक पहुंचने का रास्ता पूंछा, और आपने उसे वहां तक पहुंचने का रास्ता समझाया, किन्तु आपके समझाने के बाद भी वह व्यक्ति बस स्टैण्ड तक नहीं पहुंच पाया, तो क्या कभी आपने विचार किया कि इसमें किसकी गलती है, आपकी या उस व्यक्ति की जो बस स्टैण्ड नहीं ढूंढ सका।
 यदि आप अपना अहम छोड़कर विचार करें, तो आपकी समझ में आ जायेगा कि आप ही उसे ठीक से बस स्टैण्ड पहुंचने का रास्ता नहीं समझा पाये, जिससे वह अपने गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाया।
हमें सदैव प्यार की ताली बजानी चाहिये। ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती। एक व्यक्ति जब दूसरे व्यक्ति की ओर हाथ बढ़ाता है, और दोनों हाथ परस्पर पास पास आते हैं तभी प्यार भरी ताली की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती है।
 यही सिद्धांत गुरु एवं शिष्य के मध्य, मर्यादाओं का ध्यान रखते हुये होना चाहिये। हमें शिष्य की भावनाओं एवं उसके मानसिक स्तर को समझना चाहिये, तथा शिष्य को गुरु के प्रति श्रद्धा समर्पण, विश्वास का भाव अपने मन-मस्तिष्क में समाहित करना चाहिये। गुरु को अपने हृदय में ऊँचा स्थान देना चाहिये। गुरु से जिज्ञासु होकर प्रश्न करना चाहिये और अहंकार से दूर रहना चाहिए। एक अक्षर पढ़ाने वाला भी गुरु होता है। तर्क कभी नहीं करना चाहिए, तर्क तलवार जैसा है।
 जब आप किसी से कुछ कहें तो विचार करना कि आपका हृदय अशान्त, दुखी तो नहीं है। सदैव शान्त भाव में ही बोलना चाहिए। क्रोध में शान्त रहना चाहिए। अपने दिल की बात कह, दूसरे के दिल की बात भी सुनें।
 शिष्य को अपने शिक्षक के प्रति असीम श्र(ा एवं आस्था होती है। पठन-पाठन के संदर्भ में उसके हृदय में आपके प्रति अपने माता-पिता से भी अधिक विश्वास होता है।
 उपरोक्त कथन के सम्बन्ध में हंसानुकरण को बताना समीचीन समझता हूँ। हंस को नीर-क्षीर विवेककारी कहा गया है। अर्थात जल व दूध को मिलाकर हंस को दिया जाय तो हंस दूध को तो पी लेता है, किन्तु जल को पात्र में ही छोड़ देता है। हमारे अन्दर भी ऐसा ही विवेक होना चाहिए कि हंस की भांति हम भी सत्य-असत्य, अच्छाई-बुराई आदि का ईमानदारी से बिना भेद - भाव किये विश्लेषण करें। हंस का यह विशिष्ट लक्षण सभी के लिये विशेष प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय होना चाहिए। यदि हम इस हंसानुकरण को आत्मसात कर ले तो हमारा जीवन तो सफल होगा ही, अपितु दूसरों के लिये भी अनुकरणीय होगा।
 जिन्दगी में सम्भावना शब्द का अलग ही महत्व है।  जो किसी को भी किन्हीं भी बुलन्दियों तक ले जाने में सक्षम है। इस शब्द को यदि गुरु और शिष्य के परिपेक्ष में समझे तो हमें चांदी और लोहा का उदाहरण लेना पड़ेगा।
 यदि हम किसी से जानना चाहें कि चांदी और लोहा में कौन चमकदार है, तो उसका उत्तर होगा चांदी। अब यदि हम सम्भावना के संदर्भ में चंादी और लोहा की चमक की बात करें तो हम पायेंगे कि चांदी की चमक एक सीमित चमक है, किन्तु लोहा में चमक तो नहीं है अपितु सम्भावना है। इसको समझने के लिये हमें पारस का सहारा लेना पड़ेगा। चांदी को पारस के सम्पर्क में लाने पर चंादी की चमक में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। क्योंकि इसमें कोई सम्भावना नहीं है। किन्तु लोहा को पारस के सम्पर्क में लायेंगे तो पारस उस चमकहीन लोहा को सोना बना देगा। अर्थात लोहा चांदी से अधिक चमकीला हो गया, या यूं कहें कि अभी तक चांदी मूल्यवान थी, किन्तु अब लोहा चांदी से भी बहुमूल्य धातु में बदल गया। ऐसा केवल इसलिये हुआ क्योंकि लोहा में संभावना है।
 इसी सम्भावना को एक गुरु को तलाशना होता है अपने शिष्य में। शिक्षक की यही योग्यता है, कि वह अपने लोहा रूपी शिष्य की सम्भावना को पहचाने और उसकी प्रतिभा को बाहर निकालकर निखारे, सपना देखने की ललक पैदाकर आत्म विश्वास को जगाये और उसे एक योग्य, शिष्ट, शीलवान और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का इंसान बनाये यही कार्य कुरु क्षेत्र में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देकर किया, और समुद्र तट पर जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी शक्ति एहसास कराकर किया।
 सम्भावना साधारण को भी महान बनाती है। बड़ा तो बड़ा बन ही जाता है, क्योंकि उसकी पृष्ठभूमि समृ( होती है, जैसे टाटा, बिरला आदि किन्तु डा. अब्दुल कलाम, एकलव्य, लालबहादुर शास्त्री, सचिन तेंदुलकर आदि साधारण परिवार से होने के बावजूद भी महान हो गये, क्योंकि उनकी सम्भावनाओं को उनके गुरुओं नें पहचाना और शिष्यों को उसका बोध कराकर प्रतिभावान बनने के लिये प्रेरित किया।
 अन्त में मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि यदि गुरु अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करते हुए अपने शिष्य की सम्भावनाओं को उजागर करे, तो शिष्य अवश्य ही प्रतिभावान एवं तेजस्वी बनकर अपना नाम तो रोशन करेगा ही, अपितु अपने गुरु के नाम को भी प्रकाशित करेगा, और उसके हृदय मन-मस्तिष्क में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊँचा होगा।
तभी तो कबीरदास जी ने ठीक ही कहा है- 
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाँय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय।।
 अतः सम्भावना में प्रयास छिपा है, और प्रयास सफलता एवं प्रगति का रास्ता दिखाती है। 
सुरेश चन्द्र पाण्डेय


सदाचरण

 किसी व्यक्ति का सच्चा परिचय उसका आचरण है। शिष्टाचार मानव जीवन की सुगन्ध है। किसी का व्यक्तित्व कितना ही आकर्षक क्यों न हो, शिष्ट आचरण के बिना उसका कोई मूल्य नहीं है। शिष्टता की बड़ी बहन का नाम विनम्रता है। विनम्रता से सेवा, सरलता, शिष्टाचार, सद्व्यवहार आदि सभी गुण विकसित होते हैं। विनम्र सन्तान के माता पिता सदैव प्रसन्न रहते हैं।
 'विद्या ददाति विनयम्' विनय से विद्या आती है। किसी शिष्य के लिये गुरु से बढ़ कर मार्ग दर्शक कौन हो सकता है? अतः गुरु के प्रति श्र(ा, विनम्रता एवं सेवा का भाव रखते हुये उनकी इच्छानुसार आचरण करना चाहिए। शिष्य की उद्दण्डता एवं अनुशासनहीनता गुरु के मन को खिन्न कर देती है। ऐसे शिष्यों को पढ़ने लिखने की चाहे जितनी व्यवस्था की जाय वे अज्ञानी ही रहेंगे। विनम्र व्यक्ति सदैव सर्वत्र आदर प्राप्त करते हैं गुरु का तथा अपने से बड़ों के साथ विनम्रता का व्यवहार करने से आयु, विद्या, यश तथा बल की प्राप्ति होती है।
अभिवादन शीलस्य नित्य वृद्धोपि सेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्।।
 कोई ज्ञानार्थी तभी ज्ञान प्राप्त कर सकेगा जब उसके हृदय में विनम्रता होगी। अहंकारी व्यक्ति के अन्तःकरण में ज्ञान का प्रवेश नहीं हो सकता। गुरु का दिया गया ज्ञान उसके ऊपर से बह कर निकल जाएगा। आज के युग में कुछ लोग विनम्रता की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं। ऐसे लोग विनम्रता को किसी व्यक्ति की कमजोरी मानते हैं वे यह मानते हैं कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति का कठोर होना आवश्यक है। यह सोचना पूर्णतया गलत है। श्री लालबहादुर शास्त्री हमारे देश के प्रधानमंत्री थे। व्यक्तिगत जीवन में अत्यन्त विनम्र एवं सरल होते हुये भी प्रशासनिक जीवन में उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। 1965 के भारत-पाक यु( में उनके सफल संचालन से प्राप्त विजयश्री इसका उदाहरण है। उनके एक विनम्र अनुरोध से पूरे देशवासियों ने एक बार अन्न खाना छोड़ दिया। क्या कठोरता के चलते यह सम्भव था। विनय द्वारा मनुष्य दूसरों का हृदय जीत सकता है। विनम्रता से जो कार्य हो सकता है वह किसी प्रकार के बल प्रयोग द्वारा नहीं कराया जा सकता।
 कोई भी व्यक्ति कितना भी विद्वान हो, धनबल, जनशक्ति रखता हो। यदि अहंकार से युक्त है तो दूसरों की दृष्टि में अनादर और अवहेलना का पात्र बनता है। अहंकारी, दुष्ट स्वभाव वाला तथा प्रतिकूल आचरण करने वाला व्यक्ति सबसे तिरस्कृत होता है और अन्ततः विनाश को प्राप्त होता है। लंका के रावण की दुष्टता से कौन परिचित नहीं है।
 विनम्रता आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों क्षेत्रों में लाभकारी है। जीवन में सफलताएँ प्राप्त करने के लिये इन्द्रियों को वश में करना पड़ता है। यह दुष्कर कार्य है। मानव शरीर एक मंदिर के समान है। इस मन्दिर में ईश्वर का निवास है। इस शरीर द्वारा विनम्रता पूर्वक सदाचरण करने वाला ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। निष्कर्ष यह है कि विनम्रतापूर्वक सदाचरण करते हुये रसवती वाणी से हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। 


वेदानन्द त्रिपाठी


बस पैसे से ही रिश्ता बता गए

लोग मुर्दे पर पैसे चढ़ा गए ,
कितना चाहते बता गए ,
दिल में दया भी है उनके ,
भिखारी को आज बता गए ,
भूख से बिलखते बच्चे को ,
जनसँख्या का दर्द बता गए ,
एक पल भी नही था पास में ,
बस पैसे से ही रिश्ता बता गए ,
खर्च तो करता हूँ सब कुछ ,
कितने खोखले है बता गए ,
एक अदद रोटी क्यों बनाये ,
लंगर में जाने को बता गए ,
आलोक को खरीदने का हौसला ,
असमान को जाने क्यों बता गए ,
मुट्ठी में बंद कौन कर पाया है ,
आलोक को बिकना बता गए ,
कितनी सिद्दत से सजाई दुनिया ,
दुकान का मतलब वो बता गए ,
रीता रीता सा रहा दिल आज फिर ,
खून बिकता है वो भी बता गए ,
आंसू भी बिकता है अब यहा पर,
सच को मेरे वो नाटक बता गए ,
इतनी लम्बी जिन्दगी में कौन अपना ,
बिकती साँसों का राज बता गए ,
कोई खरीद कर जला दो मुझको ,
शमशान में लकड़ी मुझे दिखा गए ,
जाना है उनको भी यहा से एक दिन ,
मुझको कफन खरीदना सीखा गए ...........................


पता नही इस दुनिया में हम मनुष्य बन कर किस मनुष्य को ढूंढते है ..........................


पर अब तो सब कुछ पैसा से तौला जा रहा है .................क्या हमें रुकना नही चाहिए
आलोक  चान्टिया


एक किलो रिश्ता

आज एक किलो रिश्ता ,
खरीद कर लाया हूँ ,
पचास किलो शरीर में ,
किसी को रखने की ,
फुर्सत की नही मिलती ,
इसी लिए बाजार से ,
जीने के लिए उठा लाया हूँ ,
ये देखो एक किलो रिश्ता ,
तुम्हारे लिए भी ले आया हूँ ,
बात भी डालो कितना दूँ ,
क्या कुछ भी नही चाहते ,
फिर मानव क्यों हो बताते ,
सिर्फ जिस्म में गोश्त ही नही ,
एक भावना भी खेलती है ,
जो बनाती है मुझको यहाँ ,
पिता , चाचा , मामा , फूफा ,
दादा ,नाना और पति,प्रेमी भी  ,
तुम भी तो बनती हो यहाँ ,
माँ , चाची. मामी , बुआ ,
दादी , नानी और पत्नी प्रेमिका भी ,
पर आज हम क्यों भाग रहे है ,
दिन रात जाग रहे है ,
कहा और कब खो गए रिश्ते ,
क्या मिल पाएंगे कभी रिश्ते ,
सुना है अब कंपनी भी बेचती है ,
कुछ रगीन दुनिया खिचती है ,
और हम फिर से बिकने लगे ,
आदमी में जानवर दिखने लगे ,
देखो आज मैं रिश्ते ताजे लाया हूँ ,
आओ जल्दी ले लो दौड़ो दौड़ो ,
बड़ी मुश्किल से एक किलो पाया हूँ ,
चाहो तो काट कर खा लो या ,
पी लो एक गिलास में भर कर ,
पर रिश्ते की खुराक लेना न छोडो ,
इस दुनिया को फिर न मोड़ो ,
वरना जानवर हम पर हसने लगेंगे ,
फब्तिय हम पर कसने लगेंगे ,
कैसे कहेंगे हम है इनसे बेहतर ,
जब पाएंगे हमको कमतर ,
तो लो अब मुह न मोड़ो रिश्तो से ,
जी   लो थोडा  अब रिश्तो से ,
कब तक चलोगे किश्तों से ,
आओ हमसे कुछ रिश्ते ले लो ,
रिश्ते को रिसने से तौबा कर लो ....
रिश्तो को दीमक क्यों लग रही है ....
हम रिश्ते से ज्यादा मैं में डूब कर बस एक शरीर से ज्यादा  कुछ नही रह गए .
 आलोक चांटिया


गाय हिन्दू संस्कृति का टोटेम है

भारतीय संविधान के मूलाधिकारों में प्रत्येक भारतीय को अनुच्छेद २५ से २८ तक अवश्य पढ़ना चाहिए क्योकि अपने धर्म के प्रति किसी धार्मिक समुदाय के लिए क्या अधिकार प्राप्त है इसकी विशद  और पर्याप्त व्याख्या इसमें की गयी है द्य अनुच्छेद २६ में धार्मिक स्वतंत्रता की बतकही गयी और ये भी अधिकार दिया गया है कि धार्मिक मामलों में अपने कार्यो का प्रबंधन किया जा सकता है | कुछ दिन दे गौ हत्या को लेकर जिसतरह से एक संवाद समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है उससे अखिल भारतीय अधिकार संगठन सहमत नहीं है और उसको लगता है कि भारतियों को अपने देश में रहने वाले धर्मो और उन धर्मो के लिए संविधान में की गयी व्यवस्था को न सिर्फ जानना चाहिए बल्कि इस बे सर पूँछ के विवाद को विराम भी देना चाहिए |
भारत का इतिहास का आरम्भ ही इस देश के उन लोगो से होता है जिनका अस्तित्व ही तब नहीं था जब वो लिखा जाना शुरू किया गया द्य यहाँ के धार्मिक देवी देवताओ की बात करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा गया कि प्रत्येक जीव जंतु को भी देवी देवताओ से जोड़ करके उन्हें जिओ और जीने दो के सिद्धांत में सम्मिलित किया जाये और ऐसा हुआ भी द्य प्रत्येक हिन्दू घर में गाय को दी जाने वाली पहली रोटी में जहा उसकी सर्वोच्चता को स्वीकार करने का तथ्य समाहित था वही यह भी वैज्ञानिकता सम्मलित थी कि गाय को ताजे भोजन में किसी भी तरह के विकार का ज्ञान आसानी से हो जाता है | हमारी  इस धार्मिक भावना को बल दिया गया हमारे परम देव महादेव की सवारी नंदी बैल से जिसका प्रमाण सिंधुघाटी सभ्यता में भी प्रमाणित है और देवासुर संग्राम के समय हुए समुद्रमंथन में निकली काम धेनु गाय से | याज्ञवल्क्य स्मृति हो या फिर नचिकेता के पिता द्वारा दिए जाने वाले गौ के दान का वर्णन हो सभी में हिन्दू संस्कृति में गाय को समुचित स्थान मिला है द्य गाय को सिर्फ इस लिए माँ का दर्ज नहीं प्राप्त हो गया क्योकि हम भारतियों को भावना में बहने की आदत है बल्कि इस लिए ऐसी व्यवस्था सामने आई क्योकि गाय के दूध में उन्ही तत्वों का समावेश है जो ज्यादातर मानव माँ में पाया जाता है | इसी लिए मानव माँ के दूध पिलाने में अक्षमता की स्थति में एक नवजात शिशु को जिन्दा रखने में गाय का दूध एक संजीविनी साबित हुआ है इस लिए गाय हमारे बीच माँ बन कर प्रतिष्ठित हुई है |मानवशस्त्र एक ऐसा विषय है जो हर समस्या का एक समुचित समाधान देने में सक्षम रहा है | इसी लिए आज आपको टोटेम शब्द से परिचित करना चाहता हूँ द्य टोटेम एक काल्पनिक व्यक्ति या वास्तु या पशु को प्रतीक रूप में एक समूह द्वारा दी जाने वाली मान्यता है जिससे वो अपने समूह के के जन्म या अस्तित्व को जोड़ते है | जैसा कि मैंने पहले कहा कि हिन्दू संस्कृति है और इसी लिए ब्रिटेन के विधि विशेषज्ञ  भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को वहा की शैली हिंदुत्व से जोड़ कर देखते है| और इसी लिए गाय हिन्दू संस्कृ का टोटेम है न कि उसको एक जानवर की तरह देख कर आंदोलन किया जा रहा है और ऐसा नहीं है कि टोटेम जैसी स्थिति कोई कृत्रिम स्थिति है | मुंडा जनजाति का टोटेम हेम्ब्रम ( बकरा ) है तोडा जनजाति का टोटेम भैस है | ये जनजातियां इस जानवरों को इतना पवित्र मानती है कि ना तो इनको मारते
 है और ना ही इनको कहते है द्य भैस को पलने वाले पुजारी पुलोल कहलाते है द्यकुछ दिन पहले तक तोडा में ये मान्यता प्रचलित थी कि अगर उनके समाज में पैदा हुई लड़की भैस के बाड़े में पूरी रात जिन्दा रह गयी तो उसे समाज में सम्मलित कर लिया जाता था द्य ऐसे में अगर स्वतंत्र भारत के बहुसंख्यक समुदाय की संस्कृति के अनुरूप उसके टोटेम गाय को अक्षुण्ण रखने के प्रयास किया जा रहे है जो बुराई क्या है ? क्या संविधान के मूलाधिकारों से आच्छादित किसी धर्म के मूल्य या संस्कृति इस लिए संरक्षित नहीं रहने चाहिए क्योकि वो समूह बहुसंख्यक है | अगर आब ए जम जम ( मक्का जाने वाले ये पानी लेट है जो उतना ही पवित्र है जितना हिन्दू के लिए गंगा ) या होली वाटर( ईसाईयों का पवित्र जल ) का संरक्षण हो सकता है तो गंगा को क्यों दूषित किया गया| जिस चरस के लिए होली वाटर का मूल्य था उस चार्ल्स ने हिन्दुओ के पवित्र गंगा जल को १९३२ में पहला नल गनगा नदी में वाराणसी में खोल कर क्यों गन्दा किया ? क्या आधुनिक भारत का संविधान जो धर्म निरपेक्षता की वकालत करता है उसका बहुसंख्यक के धार्मिक मूल्यों के प्रति वचनबद्ध होना साम्प्रदायिकता है ? तो इस से यह भी स्पष्ट है कि आज भी भारत में आने वाले लोगो का भारत में संविधान के अनुसार चलना अच्छा नहीं लग रहा है|  संयुक्त राष्ट्र संघ के १०९ कन्वेंशन में जब ये बात उठी कि भारत के मूल लोग कौन है ? तो भारत ने कहा कि भारत में सभी लोग मूल निवासी ही है और ये बात इस लिए उठी क्योकि अमेरिका में वहा के मूल निवासी रेड इंडियन को मार कर गोर लोग बसे थे| जब मूल की बात हो रही है तो मूल धर्म के संरक्षण पर इतनी हाय तौबा क्यों | क्या किसी धर्म के सर्वमान्य टोटेम को इस लिए मरने दिया जाये क्योकि उस देश में और धर्म के लोग भी रहते है I निश्चित रूप से ये गलत परम्परा है और असंवैधानिक है | किसी की धार्मिक भावना को चोट पहुचाना है द्य एक धर्मिक तथ्य के कारन ही तो कोई गैर मुस्लिम मक्का नहीं जा सकता और पूरी दुनिया उसका पालन करती है तो फिर भारत जैसे देश में जहा एक धर्म के लोगो के लिए गाय माता है तो उन्ही लोगो के सामने गाय मारना , खाना क्यों सही हो सकता है और अपने धर्म का प्रचार और उसको बचाये रखना जब मूलाधिकार है तो उसके लिए सरकार , उच्चतम न्यायालय सभी का जिम्मेदार होना लाजमी है क्योकि सरकार कोई भी हो वो भी 


संविधान के अंतर्गत ही है और अगर संविधान  बनने के बाद किसी सरकार में किसी


 धर्म के भवना ओ न समझते हुए उनके धर्मिक टोटेम के प्रति कठोर कदम नहीं उठाये 
तो इसके लिए किसी सरकार द्वारा उठाये गए कदम को साम्प्रदायिकता के आईने 


में देखना और उस प्रयास का गलत प्रचार करना एक असंवैधानिक कार्य है और देश संविधान , कानून को ना मैंने वालो को देश हित वाला नहीं कहा जा सकता द्य जब दुनिया के हर धर्म के पवित्र स्थान , पानी आदि के लिए दुनिया में अपने नियम है तो दुनिया


 के विशाल धर्म के लोगो के मंदिर , पानी और पशु की वैसे ही मान्यता और सुरक्षा होनी चाहिए जैसी दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म की पवित्रता के लिए चाहते है  जितनी पवित्रता 


वेटिकन सिटी की है जितनी पवित्रता मक्का की है उससे किसी भी हालत में भारत की पवित्रता को कम नहीं आँका जाना चाहिए जहा से सनातन धर्म का सूत्रपात हुआ और सके हर तत्व को बचाना  और उस देश में उस धर्मिक मूल्यों के लिए ऐसे किसी भी 


कृत्या को रोकना एक उचित कदम है इसको ये कह कर बढ़ावा  नहीं दिया जा सकता कि दूसरे देश में गाय की चर्बी से चॉक्लेट बन रही है क्योकि महत्व उस स्थान का है जहा किसी धर्म और उसके  पवित्र तत्वों ने जन्म लिया और इसी लिए  भारत में गाय  के मारे जाने उसको खाने का विरोध होना ही चाहिए और ऐसा विरोध करने का अधिकार हमारा संविधान हमें देता है |


..डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन


Sunday, October 20, 2019

कैसे बदल गई बांदा कताई मिल की तस्वीर, करने लगे लोग पलायन

20 अप्रैल 1981 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बांदा कताई मिल का शिलान्यास 1983 में 1500सौ मजदूर 10000 किलो 45 लाख का धागा रोज बनाकर देते थे। यह चलती मिल कैसे बर्बाद हुई पढ़ें! 15 वर्ष चलने के बाद युवा पीढ़ी जाने समझे सवाल करें सरकारों से, अपने जनप्रतिनिधि से, जिम्मेदारों से, जो रोजगार देते थे। अपने यहां वे पलायन कर रोजगार मांग रहे हैं अन्य राज्यों से आपके शहर में भारत के कई राज्यों के लोग नौकरी करते थे अपना पेट पालते थे।



 बांदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 20 अप्रैल 1981 को बांदा कताई मिल का शिलान्यास किया था 85 एकड़ जमीन में बहुत खूबसूरत बाग बगीचे फूल खूबसूरत बिल्डिंग बनकर तैयार हुई बड़ी सुंदर तकनीकी की मशीनें लगाई गई 1350 मजदूर 150 कर्मचारी अधिकारी बड़ी ईमानदारी से मेहनत से धागा तैयार करते थे जो उच्च क्वालिटी का था। जिसकी बाजार में मांग थी बांदा कताई मिल के धागे का इस्तेमाल भारत ही नहीं विदेशों में कपड़ा बनाने वाली मिले मांग करती थी। नेपाल बांग्लादेश चाइना भूटान सहित कई देशों को बांदा कताई मिल का धागा जाता था भारत के कई राज्य जहां कपड़ा मिले लगी थी।बांदा कताई मिल का धागा उनकी पहली प्राथमिकता थी बड़ी होशियारी से बांदा कताई मिल को 1992 में बीमार घोषित कर दिया गया। औद्योगिक वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड भारत सरकार दिल्ली ने इस बंदी को अवैधानिक माना इस मिल को चलाने के लिए 1992 में मात्र 35 करोड़ रुपए की आवश्यकता थी। 100 कुंटल धागा बनाने वाली मशीन मजदूर कर्मचारी एक ही आदेश पर बेकार हो गए। धागा मिल के शुरुआती दिनों में 1800 सौ मजदूर काम करते थे वर्क बढ़ता गया मिल प्रबंध तंत्र लेबर निकालती गई अपने अयोग्य लोगों को  रखने की कोशिश शुरू कर दी गई। इस कताई मिल के साथ के  स्थापना से ही भेदभाव शुरू किया गया जो मशीन 50000 तकुवा धागा की होनी चाहिए थी वह बांदा में 25000 तकुवा धागा की लगी। इस कताई मिल का  उद्देश्य था बुंदेलखंड के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देना किसान कपास पैदा करें उनका नौजवान इस मिल में नौकरी कर धागा बनाए। इस कताई मिल को कई बार बेचने की साजिश भी की गई अभी यह साजिश जारी है बड़ा बड़ा प्रलोभन दिखाकर शायद साजिशकर्ता बांदा के एकमात्र इस उद्योग की मिल को बेचना दें यूपी एसआईडीसी उत्तर प्रदेश यार मिल कितनी सक्रियता करती है रोजगार देने में आपके सामने है विभिन्न सरकारों ने उत्तर प्रदेश की 26 मिलो की क्या हालत कर रखी है बताने की जरूरत नहीं है बलिया, मेजा, जौनपुर, बांदा में तथा झांसी की कताई मिलों की स्थिति पर विचार करने की जरूरत है विशेषकर बांदा, झांसी जहां से प्रतिदिन बेरोजगार युवा  हजारों की संख्या में पलायन कर रहा है रोजगार के लिए बुंदेलखंड की चर्चा पूरे भारत में बेरोजगारी गरीबी के लिए प्रचारित की जाती है। श्रम विभाग के तत्कालीन श्रम आयुक्त ने इस मिल बंदी को गलत माना इस मिल की स्थापना 18 करोड 36 लाख रुपए खर्च करके की गई थी। बंगाल, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली के मजदूर बांदा में काम करते थे ग्रेड 4 से लेकर ग्रेड 60 तक का धागा यहां तैयार होता था। चित्रकूट मंडल सैकड़ों वर्ष से यहां के किसान कपास की खेती करते आ रहे हैं धागा कपड़ा व्यापार के लिए यहां की भूमि व जलवायु सबसे उपयुक्त है बांदा कताई मिल के धागे की भारत सहित अन्य देशों में इतनी मांग थी कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती थी मांग के अनुसार लेकिन बेईमान मिल प्रबंध तंत्र ने अपने स्वार्थ के लिए सदैव घाटा दिखाया 350 बीघा 50 एकड़ में बनी यह बांदा कताई मिल अपने आप में इतनी खूबसूरत थी कि बांदा जिले के अलावा बाहर के अधिकारी इस मिल की खूबसूरती देखने आते थे। इस मिलके पार्क वा फूलों के वजह से कई बार फिल्म की शूटिंग भी हुई इस मॉडल पर कई बिल्डिंग का निर्माण अन्य जगह हुआ मजदूर खुश थे, परिवार खुश थे, बच्चे प्रसन्न थे तत्कालीन नेताओं की नासमझी के कारण सब बर्बाद हो गया लोगों के सपने टूट गए इस मिल बंदी को औद्योगिक न्याय अधिकार प्राधिकरण इलाहाबाद की खंडपीठ ने असंवैधानिक माना बार-बार बुलाने के बावजूद मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर 20 बरस से इस मिल में कार्यरत मजदूरों कर्मचारियों को परेशान करता रहा। उनके बकाई के लिए के लिए तत्कालीन पीठासीन अधिकारी माननीय विजय कुमार त्रिपाठी आईएएस ने अपने निर्णय दिनांक 4-1-2016 के निर्णय में कहा कि कताई मिल मजदूरों की मांगे जायज है कताई मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर परेशान कर रहा है उन्हें उनका भुगतान तुरंत दिया जाए। यूपी एसआईडीसी तथा उत्तर प्रदेश सहकारी कताई मिल संघ कुछ खिचड़ी पका रहे हैं। कताई मिल प्रबंधन इस मिल को 1992 से बंद दिखा रहा है जबकि यह मेल 3 दिसंबर 1998 को बंद हुई चलती हुई मिल को बंद करना एक साजिश है क्या वर्तमान में देश की मिलों को धागे की जरूरत नहीं है हजारों मिले देश में कपड़ा बनाती हैं वे धागा खरीदती हैं। नई नई धागा मिले खुल रही तो यह क्यों नहीं चल सकती यक्ष प्रश्न? जिसका समाधान हो सकता है इच्छाशक्ति से इस मिल को बचाने के लिए चित्रकूट मंडल का कोई भी नेता मुझे पिछले 20 वर्षों से नहीं देखा केवल कताई मिल मजदूर संघ के नेता रामप्रवेश यादव संघर्ष करते हैं अपने कुछ साथियों के साथ जो बाहर के हैं हम उनके आभारी हैं जो काम बांदा मंडल वासियों को करना चाहिए था यादव जी कर रहे हैं।
बुंदेलखंड कनेक्ट के समन्वयक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण निगम का कहना है कि बांदा कताई मिल से एक ओर जहां बेरोजगारों को रोजगार मिलता वहीं दूसरी ओर छोटे बड़े सभी व्यापारियों किसानों स्थानीय नागरिकों को किसी न किसी रूप में पैसा मिलता यह कताई मिल राजनीति का शिकार हो गई। बांदा के बड़े-बड़े नेता हुए अगर वह थोड़ा सा सोच लेते तो यह मिल चल जाती है पलायन रुकता, हमारे युवाओं को रोजगार के लिए बाहर न जाना पड़ता बांदा का पैसा बांदा में रहता। महोबा निवासी जाने-माने जनप्रतिनिधि प्रसिद्ध राजनीतिक घराने के मनोज तिवारी का कहना है कि कताई मिल के बांदा में खुल जाने से चित्रकूट धाम मंडल के बेरोजगारों को रोजगार मिलता साथ ही पूरे बुंदेलखंड से पलायन रुकता तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने स्थानीय जनता के साथ धोखा किया। चित्रकूट निवासी वरिष्ठ पत्रकार कानपुर संदीप रिछारिया का कहना है कि कताई मिल से बुंदेलखंड के विकास के रास्ते खुलते हैं एक ओर जहां आर्थिक संपन्नता आती क्षेत्र में वहीं स्थानीय किसान कपास की खेती करते जो पहले से होती थी सरकार को चाहिए कि कताई मिल शुरू करें। हमीरपुर के निवासी ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री देवी प्रसाद गुप्ता का कहना है कि यह कताई मिल बुंदेलखंड के लिए उपलब्धि थी खासकर चित्रकूट मंडल के लिए स्थानीय नागरिकों को रोजगार मिलता पूरे देश में संपर्क होता मिल बंद होने से हताशा हुई, निराशा हुई। बांदा निवासी कई समाचार पत्रों के संपादक रहे दिल्ली वरिष्ठ पत्रकार अरुण खरे का कहना है कि नई तकनीक की मशीनें मंगाकर काम शुरू करें कताई मील में पूरे संसाधन उपलब्ध है फिर से कताई मिल शुरू की जाए राजनीतिक लोगों को पहल करनी चाहिए। दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार  मुकुंद गुप्ता  का कहना है कि यहां के राजनेता कभी भी गंभीर नहीं रहे  रोजगार देने के लिए पलायन रोकने के लिए। युवा सामाजिक कार्यकर्ता आगे आए आखिर कब तक हम रोजगार की तलाश में बाहर जाते रहेंगे। कपास जूट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन दिनेश कुमार जी ने कहा कि बांदा की कताई मिल बंद होने से देश के किसानों का नुकसान हुआ है। बांदा निवासी अधिवक्ता आदित्य सिंह परिहार बहुत अफसोस के साथ कहते हैं बांदा की कताई मिल को नियमानुसार बंद ही नहीं किया जा सकता था क्योंकि यह मिल  राज सरकार की पुनर्वास योजना के अंतर्गत संचालित की गई थी जिस का उल्लेख कताई मिल कंपनी की ओर से हाई कोर्ट इलाहाबाद में दायर की गई थी। रिट संख्या 13 व्थ्ओ एफ 1998, 2006 त्क्।भ्आरडी एज 14 फरवरी 2006 हाई कोर्ट इलाहाबाद कोर्ट नंबर 9 न्यायमूर्ति सुनील अंबानी के जजमेंट में उल्लिखित है। कताई मिल कंपनी को 1985 में अध्याय 22 में बीमार मिलों के संचालन के लिए विशेष आर्थिक अनुदान की व्यवस्था की गई है बांदा मिल को चलाने के लिए इसकी भी मदद नहीं ली गई बांदा कताई मिल जानबूझकर बंद की गई है। एक साजिश के तहत मिल की जमीन बेची जाए यहां बांदा, चित्रकूट में भुखमरी रहे, पलायन होता रहे राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेकते रहे। पुनर्वास योजना क्या है?इसका पैसा कहां से आया है और उसका उद्देश्य क्या है? यह जानना युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है। देश में चल रहा है कोई भी पुनर्वास इस कार्यक्रम जिस उद्देश्य शुरू किए गए हैं जब तक वह उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता बंद नहीं किए जा सकते चाहे गरीबी हटाने के लिए हो,स्वास्थ्य के लिए हो शिक्षा के लिए, अथवा रोजगार के लिए हो यह साजिश है।


भारत रत्न बनाम सावरकर

10 #मर्सी_पिटिशन लिखने वाला..... कौन??( वीर सावरकर) अंग्रेजों से ₹60 प्रति माह #पेंशन पाने वाला कौन...(वीर सावरकर)


जो अंग्रेजों से 1924 से 1947 तक ₹60 पेंशन लेता रहा ...जो आज के सवा लाख रुपए महीना है.... अपनी पेंशन बढ़ाने के लिए #डी_एम को खत लिखता रहा था .....वो कौन.....(वीर सावरकर)


अब ज़रा #चरित्र_दर्पण हो जाए


जिसने 1908 में #मार्गरेटलॉरेंस नाम की एक अंग्रेज महिला पर असफल #रेप की कोशिश में #चारमहीनेकीसज़ाकाटीहो...वो कौन.....(वीर सावरकर)


अंडमान की पूरी हिस्ट्री में कुल 3 लोगों ने पर्सनल मर्सी पिटिशन फाइल करी थी.... जिसमें से दो #सावरकर_बंधु और एक बाइंद घोष थे.... यानी दो चार डंडे पड़ते ही हिंदुत्व की चड्ढी फट गई...किसकी!!!(वीर सावरकर की)
सेल्यूलर जेल में करीब 8500-9000 के आसपास #सिख कैदी और दूसरे कैदी थे....
7000 के आसपास #मुस्लिम कैदी थे... इनमें से 3-4 को हर महीने फांसी दे दी जाती थी और 7-8 लोग आत्महत्या कर लेते थे ....पर किसी ने भी #माफी.... #दया...... #रहम. ..…#मर्सी के लिए #भीख नहीं मांगी ....
#माफीनामा लिखने के लिए सिर्फ यही #तीन लोग थे ... और इन्हीं तीनों लोगों में से एक को #भारत_रत्न देने की बात चल रही है।
सावरकर #टूनेशनथ्योरी के #प्रेसिडेंट और #कट्टर समर्थक थे....
जिस #हिंदुत्व की परिभाषा आज हम देख रहे हैं ....दरअसल... इस हिंदुत्व की नींव सावरकर ने ही रखी थी.... सावरकर के अनुसार हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग राष्ट्र होने चाहिए... वो एक हो ही नहीं सकते।


तावड़कोर के दीवान को अपने राज्य को हिंदू राष्ट्र घोषित किया तो बधाई किसने दी????(वीर सावरकर ने) 
दारा सिंह को अपना अलग से सिखिस्तान राष्ट्र घोषित करने के लिए किसने कहा!!!(वीर सावरकर)
#जूनागढ़ और #मैसूर के राजा को भी अलग राष्ट्र घोषित करने के लिए बाकायदा लिखा.... किसने??....(वीर सावरकर) 


यानी..


तो जो #खंड_खंड भारत चाहते थे... उनके लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने अखंड भारत नहीं हुआ इसलिए गांधी का खून किया। 


दरअसल अखंड भारत का सपना #गांधी_जी का था और इसीलिए.... #दाढ़ी बढ़ाकर... #खतना करा कर गांधी जी की हत्या कर दी।
और आप उसे #वीर कहते हैं ??? 
ऐसा वीर जिसने एक निहत्थे और अखंड भारत के सपने को देखने वाले को मार दिया।
(निरंजन टकले का वीडियो रूपांतरण)


इस साल गिफ्ट की अदला बदली बंद

क्यूँ न इस दीवाली एक नया विचार करे। दोस्तों को मिले तो बिना गिफ्ट के मिले। ये भी क्या परम्पराएँ हम शुरू कर बैठे की तुम मेरे यहाँ आना तो गिफट लेते आना और फिर मैं तेरे यहाँ जाऊंगा तो गिफ्ट लेता जाऊंगा। बड़ी बड़ी कंपनियां चांदी काट रही है और मध्यम वर्ग डिब्बों के रेट उलट पलट रहा है की किस दोस्त को क्या देना है, कौन सा रिश्तेदार कितनी हैसियत का है। कोई दोस्त महंगा गिफ्ट देता है तो उसको गिफ्ट भी महंगा ही वापिस करना होगा और कोई हल्का दोस्त तो गिफ्ट भी हल्का दे दो। और कभी कभी तो पिछले वर्षो के गिफ्ट ही दे देते हे।ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, टीवी और सारा मीडिया आपको ये बताने पर लगा है की कितना कितना सामान कहाँ कहाँ बेचा जा रहा है। ये खबरे नहीं है दोस्तों ये आपका दिमाग घुमाने की साजिश है की आपको लगे सारी दुनिया लगी है सामान खरीदने में आप रह गए पीछे। इस साल इस विचार पर काम करे, दीवाली को दीवाला न बनाए।


इस साल दोस्ती को सेलिब्रेट करे। प्यार को सेलिब्रेट करे।


कुछ छोटे छोटे गिफ्ट्स जैसे बिस्कुट ,लड्डू,फ्रूटी,मोमबती,कपडे,इत्यादि उन गरीब बचो में बांटे जो आपको आते जाते टुकर टुकर देखते रहते है। यही सच्ची दिवाली होगी।


बदलो समाज को , लाओ नए विचार और शुरुआत करो अगर कुछ अच्छा लगे ! 


हिन्दू एक "संस्कृति" है, "सभ्यता" है... सम्प्रदाय नहीं..!

एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे।


रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा, मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया!


अकबर ने पूछा कौन हे ये?


बीरबल - मेरी माता हे!


अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया


और बोला - कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की...!


बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी!


आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला। बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर


कहा - जय हो बाप मेरे!


अकबर को गुस्सा आया... दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा।


इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला - बीरबल ये क्या हो गया?


बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!


अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती।


बोला - बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!


बीरबल बोला - उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है। उससे विनती करनी पड़ेगी!


अकबर बोला - जल्दी करो!


आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि...


हे माता दवाई दो...


गाय ने गोबर कर दिया... अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई!


अकबर बोला - बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?


बीरबल ने कहा - नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी।


आप बोलिए हर- हर गंगे... जय गंगा मईया की... और कूद जाइए!


नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए


अकबर ने बीरबल से कहा - कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं!


इनको मानने वालों को ही "हिन्दू" कहते हैं..!


हिन्दू एक "संस्कृति" है, "सभ्यता" है...
सम्प्रदाय नहीं..!


आपकी पहचान एक बॉडी

जिस पल आपकी मृत्यु हो जाती है, उसी पल से आपकी पहचान एक बॉडी बन जाती है।
अरे


"बॉडी" लेकर आइये, 
"बॉडी" को उठाइये,
"बॉडी" को सुलाइये 
ऐसे शब्दो से आपको पुकारा जाता है, वे लोग भी आपको आपके नाम से नहीं पुकारते ,
जिन्हे प्रभावित करने के लिये आपने अपनी पूरी जिंदगी खर्च कर दी।


इसीलिए


इधर उधर से ज्यादा इक्कठा करने की जरूरत नहीं है।


इसीलिए


अच्छे से कमाओ, अच्छे से खाओ, और अच्छे से सोओ


इसीलिए 


जीवन मे आने वाले हर चुनौती को स्वीकार  करे।......
अपनी पसंद की चीजों के लिये खर्चा कीजिये।......
इतना हंसिये के पेट दर्द हो जाये।....


आप कितना भी बुरा नाचते हो ,
फिर भी नाचिये।......
उस खूशी को महसूस कीजिये।......
फोटोज के लिये पागलों वाली पोज दीजिये।......
बिलकुल छोटे बच्चे बन जाइये।


क्योंकि मृत्यु जिंदगी का सबसे बड़ा लॉस नहीं है।


लॉस तो वो है 
के आप जिंदा होकर भी आपके अंदर जिंदगी जीने की आस खत्म हो चुकी है।.....


हर पल को खुशी से जीने को ही जिंदगी कहते है।


"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं,
"काम में खुश हूं," आराम में खुश हू,


"आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं,
"आज गाड़ी नहीं," पैदल ही खुश हूं,


"दोस्तों का साथ नहीं," अकेला ही खुश हूं,
"आज कोई नाराज है," उसके इस अंदाज से ही खुश हूं,


"जिस को देख नहीं सकता," उसकी आवाज से ही खुश हूँ


"जिसको पा नहीं सकता," उसको सोच कर ही खुश हूँ


"बीता हुआ कल जा चुका है," उसकी मीठी याद में ही खुश हूँ
"आने वाले कल का पता नहीं," इंतजार में ही खुश हूँ


"हंसता हुआ बीत रहा है पल," आज में ही खुश हूँ
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूँ


अगर दिल को छुआ, तो जवाब देना,
वरना मै तो बिना जवाब के भी खुश हूँ..!!


रेल का निजीकरण हर भारतीय पे असर डालेगा

रेलवे में निजीकरण होने पर


रेलवे टिकट खिड़की पर :...


यात्री : सर दिल्ली से लखनऊ का एक रिजर्व टिकट चाहिए। 


क्लर्क : ₹ 750/-


ग्राहक : पर पहले तो 400/- था!


क्लर्क : सोमवार को 400/- है, मंगल बुध गुरु को 600/- शनिवार को 700/- तुम रविवार को जा रहे हो तो 750/-


ग्राहक : ओह! अच्छा लोवर दीजियेगा, पिताजी को जाना है।


क्लर्क : फिर 50 रुपये और लगेंगे। 


ग्राहक : अरे! लोवर के अलग! साइड लोवर दे दीजिए। 


क्लर्क : उसके 25 रुपये और लगेंगे। 


ग्राहक : हद है! न टॉयलेट में पानी होता है, न कोच में सफ़ाई, किराया बढ़ता जा रहा है। 


क्लर्क : टॉयलेट यूज का 50 रुपये और लगेगा, शूगर तो नहीं है ना ? 24 घंटे में 4 बार यानी रात भर में 2 बार से ज़्यादा जाएंगे तो हर बार 10 रुपये एक्स्ट्रा लगेंगे।
 
ग्राहक : हैं! और बता दो भाई, किस-किस बात के पैसे लगने हैं अलग से। 


क्लर्क : देखो भाई, अगर फोन चार्ज करोगे तो 10 रुपये प्रति घंटा, अगर खर्राटे आएंगे तो 25 रुपये प्रति घंटा, और अगर किसी सुन्दर महिला के पास सीट चाहिए तो 100 रुपये का अलग चार्ज है।
अगर कोई महिला आसपास कोई खड़ूस आदमी नहीं चाहती है, तो उसे भी 100 रूपये अलग से देना पड़ेगा। एक ब्रीफकेस प्रति व्यक्ति से अधिक लगेज पर 20 रुपये प्रति लगेज और लगेगा। मोबाइल पर गाना सुनने की परमिशन के लिए 25 रुपये एक मुश्त अलग से। घर से लाया खाना खाने पर 20 रुपये का सरचार्ज़। उसके बाद अगर प्रदूषण फैलते हैं तो 25 रुपये प्रदूषण शुल्क।


ग्राहक (सर पकड़ के) : ग़ज़बै है भाई, लेकिन ई सब वसूलेगा कौन ?


क्लर्क : अरे भाई निजी कंपनियों से समझौता हुआ है, उनके आदमी वसूलेंगे।


ग्राहक : एक आख़िरी बात और बता दो यदि तुम्हें अभी कूटना हो तो कितना लगेगा ?


क्लर्क : काहे भाई ! जब रेलवे का निजीकरण हो रहा तब तो बड़े आराम से घर में बैठे थे और सोच रहे थे कि हमारा तो कुछ होने वाला है नहीं अब भुगतो औऱ पब्लिक क्या सोचती है निजीकरण का असर सिर्फ कर्मचारियों पर ही होगा। रेल का निजीकरण हर भारतीय पे असर डालेगा। 


Saturday, October 19, 2019

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है?

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?
आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -


अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।


देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।


इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम् अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।


बिना देन्येन जीवनम् अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।


देहांते तव सानिध्यम अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।


देहि में परमेशवरम् हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।


यह प्रार्थना करें गाड़ी ,लाडी ,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।


हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।


जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें । मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।
 "आप का दिन शुभ हो,यही ईश्वर से प्रार्थना"।