Monday, October 21, 2019

तेजाब के हमले में घायल एक लड़की के दिल से निकलीं कुछ पंक्तियाँ

 चलो, फेंक दिया
सो फेंक दिया....
अब कसूर भी बता दो मेरा


तुम्हारा इजहार था
मेरा इन्कार था
बस इतनी सी बात पर
फूंक दिया तुमने
चेहरा मेरा....


गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
कि उसको मैं समझ ना सकी....


अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम ... अपनाओगे मुझको?
क्या अब अपना ... बनाओगे मुझको?


क्या अब ... सहलाओगे मेरे चहरे को?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे?
जो अब अन्दर धस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलियाँ मेरे गालों पर?
जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है


हाँ, शायद तुम कर लोगे....
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना?


अच्छा! एक बात तो बताओ
ये ख्याल 'तेजाब' का कहाँ से आया?
क्या किसी ने तुम्हें बताया?
या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया?
अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर?
गौरान्वित..???
या पहले से ज्यादा
और भी मर्दाना...???


तुम्हें पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बाकी है


एक सलाह दूँ!
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर इसमें मुझसे छलाँग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊँगी मैं
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें
और गहरा और सच्चा होगा....


एक दुआ है....
अगले जन्म में
मैं तुम्हारी बेटी बनूँ
और मुझे तुम जैसा
आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे
तुम्हारी इस हरकत से
मुझे और मेरे परिवार को
कितना दर्द सहना पड़ा है।
तुमने मेरा पूरा जीवन
बर्बाद कर दिया है।


 


बेटी से माँ का सफ़र 

बेटी से माँ का सफ़र 
बेफिक्री से फिकर का सफ़र
रोने से चुप कराने का सफ़र
उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र


पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी
आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं


पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को उठाया करती थी
आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं


छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती थी
बड़ी बड़ी बातों को मन में रखा करती हैं


पहले दोस्तों से लड़ लिया करती थी
आज उनसे बात करने को तरस जाती हैं


माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी
माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं


10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था
आज 7 बजे उठने पर भी 
लेट हो जाता हैं


खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था
आज खुद के लिए एक कपडा लेने में आलस जाता हैं


पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया करते थे
अब पूरे दिन काम करके भी फ्री 
कहलाया करते हैं


साल की एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करते थे।
अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करते हैं


ना जाने कब किसी की बेटी 
किसी की माँ बन गई
कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई .....


तम्बाकू, गुटका खाने वालों के लिए इनामी योजना

 योजना अवधि   -  जीवन पर्यन्त
 प्रथम पुरस्कार   -  कैंसर
 द्वितीय पुरस्कार  -  टी. बी.
 तृतीय पुरस्कार  -  दमा
 चतुर्थ पुरस्कार  -  गालों में छेद
 पंचम पुरस्कार  -  गुर्दा फेल
 षष्टम पुरस्कार  -  जवानी में बुढ़ापा
 सप्तम पुरस्कार  -  मुख का खुलना बंद
 अष्टम पुरस्कार  -  दांत गायब 
 नवम पुरस्कार   -  खांसी 
 दशम् पुरस्कार  -  अंधापन
 ग्यारहवां पुरस्कार  -  हार्ट अटैक
 शीघ्र करंे। आज ही आवेदन पत्र भरें- 
1. आवेदन पत्र प्राप्ति का स्थान- जर्दा गुटका पान मसालों की दुकान। 
2. आवेदन शुल्क-  एक रुपये से दस रुपये तक।
 पुरस्कार समारोह स्थल - स्थानीय श्मशान घाट
 मुख्य अतिथि  -  यमराज महोदय
 शीघ्रता से योजना का लाभ उठायें। प्रत्येक पाउच के साथ यमराज का आशीर्वाद मुफ्त पायें।


मत काटो इन वृक्षों को

मत काटो इन वृक्षों को।
वृक्षों में भी जान वही है,
जो है हम सबके अन्दर।
हरे भरे जो वृक्ष रहेंगे,
दुनिया होगी कितनी सुन्दर।
रखो सुरक्षित इन दरख्तों को,
मत काटो इन वृक्षों को।
लेकर कार्बन डाईआॅक्साइड,
दूर प्रदूषण ये करते हैं।
देकर आक्सीजन,
जिन्दा ये सबको रखते है।
ये फायदा दोनों पक्षों का,
मत काटो इन वृक्षों को।
निःस्वार्थ ये सेवा करते हैं,
परमारथ जीते, मरते हैं।
कितने ही फल पैदा करके,
पेट हमारा भरते हैं।
चुका नहीं सकते इनके कर्जों को,
मत काटो इन वृक्षों को।
मानसून इनसे ही बनता,
वरना जग सारा जाता जल।
करें आज इनकी रक्षा का वादा,
क्योंकि आता नहीं कभी कल।
मत भूलो अपने लक्ष्यों को,
मत काटो इन वृक्षों को।


सावधान दुनिया!

सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
है यह सृष्टि रचयिता;
पर रखती शक्ति महाविनाश का।
है कर सकती दुनिया का, 
पल भर में यह संहार।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
साक्षात प्रतीक है, हिरोशिमा, नागासाकी
विज्ञान के अभिशाप का।
पूर्व का ब्रिटेन 'जापान'! है सहता कष्ट
आज भी विज्ञान के महाविनाश का।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
समझ एक पैनी तलवार,
दो विज्ञान को फेंक, 
तजकर मोह स्मृति के पार।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।


जूता जिन्दाबाद

चुनावी सभा हो या पत्रकार वार्ता,
एक नेता जी, हेलमेट पहन कर
आ-जा रहे हैं।
पूछने पर बतला रहे हैं, 
कि यार! आजकल लोग ,
बहुत जूते चला रहे हैं।
पता नहीं कब, कौन, मेरी तरफ भी उछाल दे,
किसी और की खुन्नस, मुझ पर निकाल दे।
इसलिए हेलमेट का, सहारा ले रहा हूंॅ
हर सभा में, हेलमेट पहनकर भाषण दे रहा हूंॅ।
बुश के ऊपर उछाले गये जूते ने,
ऐसी परम्परा चला दी है,
कि हम नेताओं की वाट ही लगा दी है।
नवीन जिंदल, पी. चिदम्बरम,
कभी आडवाणी..........,
आगे ही बढ़ती जा रही है, जूता फेंकने की कहानी।
अरे भाई! हम तो कहते हैं कि,
जूता मारना ही है, तो आतंकवाद को मारो।
भ्रष्टाचार को मारो, हत्या, लूट, बलात्कार को मारो।
लेकिन तुम लोग, कुछ नहीं देख-भाल रहे हो।
हर बार जूता,
हम नेताओं पर ही उछाल रहे हो!
इधर दे रहे थे नेताजी सफाई,
उधर नेपथ्य से आवाज आई।
'नेताजी, आपके द्वारा बताये गए,
भ्रष्टाचार, हत्या, लूट, बलात्कार,
जातिवाद और आतंकवाद,
माना कि मानवता के लिए अभिशाप है।
लेकिन इन सब की जड़ में,
हुजूर, आप..... आप और सिर्फ आप हैं!


जागो! देशवासियों जागो तुम्हें जगाने आया हूँ

आँसू बेच के हम खरीद, लाये नकली मुस्कानों को।
बिना जड़ों के फूलों से, सज्जित कर लिया मकानों को।।
चैपालें वीरान हुई, मन की पीड़ा का जिक्र नहीं।
कौन कहाँ जीता-मरता है, इसकी कोई फिक्र नहीं।।
जीव रहित पृथ्वी को, करने की कर ली है तैयारी।
और मंगल पर जीवन, खोजती दृष्टि आज हमारी।।
चर्खा तोड़ दिया बापू का, झूठे खद्दर वालांे ने।
सौदा कर डाला, धरती के रखवालों नें।।
गौ माता बन गई फूड, और गंगा रह गई पानी है।
भारत माँ को डायन कहती, मजहब की शैतानी है।।
पशुओं को काट-काट कर, मांस निर्यात किया जाता है।
बदले मंे उसके गोबर का, आयात किया जाता है।।
सन्डे-मन्डे खाओ अन्डे, सरकारें खुद कहती हैं।
दूध हुआ गायब, नदियाँ लहू और सुरा है।।
मर्यादा छूट पहुँच रही, कसकर पश्चिम की बाहों में।
तुलसी कुंभन वाले लड़ते, भाषा के चैराहों में।।
माईकल जैक्सन तोड़ रहे है, कजरी मटकी नाचों को।
स्टारों ने तोड़ दिया, संस्कृति के ही ढांचों को।।
थर्माकोल के गिलासों नें, माटी के कुल्हड़ फोड़ दिए।
अनजाने ही पश्चिम से, मन के नाते जोड़ दिए।।
मैं भारत से ऐसी गंदी, रीति मिटाने आया हूँ।
सदाचार की गंगा का, अवतरण कराने आया हूँ।।
जागो! देशवासियों जागो! तुम्हें जगाने आया हूँ।


कलयुगी वन्दना

हे प्रभो आनन्द दाता बस यह उपकार हम पे कीजिए।
सिर्फ मैं जीता रहूँ और मार सबको दीजिए।।
भक्त हूँ मैं आपका अर्जी प्रभो ले लीजिए।
और जितनी अर्जियां हो फाड़ उनको दीजिए।।
पुष्प चन्दन और तुलसी की माला आप सब ले लीजिए।
सौ सौ के नये नोट बस मेरी जेब में भर दीजिए।।
आपके भंडार में प्रभो धन की कोई सीमा नहीं।
किन्तु मेरे लिए भेजा कभी कोई बीमा नहीं।।
मुझको अगले जन्म में प्रभो बेटा बनाना लाट का।
या प्रभो खटमल बनाना सेठ जी के खाट का।।
एक झण्डा चार गुण्डा आठ मोटर कार दे।
बस मेरी यही इक प्रार्थना स्वीकारिए।।
हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे सद्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।
दब दबा मेरा रहे काॅलेज और स्कूल पर।
कूद कर मैं बैठ जाऊँ प्रिन्सिपल की मेज पर।।
सिर्फ मैं चमकूँ प्रभो अखबार के हर पेज पर।
आराम से लेटा रहूँ बस मखमली सी सेज पर।
श्रीमती जी आपका चरणामृत लेती रहे।
चाय और सिगरेट पीने को मुझको देती रहे।
दो मुझे आशीष पूरे सौ वर्ष जीता रहूँ।
भक्त बनकर रक्त जनता का सदा पीता रहूँ।
ब्लैक रिश्वत की कृपा से ऐश भी करता रहूँ।
नोट देकर वोट लेकर चोट भी करता रहूँ।
और मेरा कौन है सब कुछ हमारे आप है।
आप हमारे बाप के भी बाप के भी बाप हैं।
जिसको चाहूँ काट खाऊँ यह अधिकार हमको दीजिए।
हे प्रभो आनन्द दाता बस यह उपकार हम पे कीजिए। 


अपने वतन से प्यार करो

कोई मंदिर-मस्जिद जाकर फूल चढ़ाता है,
कोई चर्च-शिवालय जाकर प्रभु के भजन सुनाता है।
मातृभूमि का मंदिर ऊँचा गिरजाघर-गुरुद्वारों से,
इस मंदिर का प्रेम पुजारी अपना शीष चढ़ाता है।
शीश चढ़ाने वालों का अब हर सपना साकार करो,
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।
खोई वसुधा की पीड़ा है गीता के उपदेशों में।
करूणंा का सागर लहराता गौतम के संदेशों में।
गीता, राम, मोहम्मद सबको भारत माँ का प्यार मिला।
इसीलिये यह देश बड़ा है दुनिया भर के देशों में।
महावीर, नानक की वाणी का मिलकर सत्कार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा .....
श्वेत रंग अनुयायी है, गांधी बाबा की राहों का।
केसरिया वीर शिवाजी का रंग, हरा बहादुर शाहों का।
मंगल पाण्डे का जोश भरा, ऊधम की वीर जवानी है।
दीवानी झांसी की रानी, नेता सुभाष बलिदानी है।
इसके रगों में मिली-जुली, रणवीरों की कुर्बानी है। 
आपस में शामिल सिन्धु, व्यास, गंगा, सतलज का पानी है।
हमने अपना शीश कटाकर, देश का ऊँचा नाम किया।
लहु का चोखा रंग मिलाकर, रंग झण्डे का लाल किया।
सरहद पर खड़े सिपाही का, सीना चैड़ा हो जाता है।
जब लाल किले पर लोकतन्त्र का, प्रहरी बन लहराता है।
भारत माता का मान बढ़े, आओ कुछ ऐसे काम करें।
झण्डे की शीतल छाया में, ये सारा जग विश्राम करे।
साँसों में बसा तिरंगा है, इसका नूतन श्रृंगार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।


मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए

रहना है सबके बीच तो मुस्कुराइए,
वाणी में अपनी मधु, थोड़ा मिलाइए।
फलों सा बनिए कोमल, गरमाइए नहीं,
दुनिया में बन कर खुशबू फैल जाइए।
झगड़ा लड़ाई, ईष्र्या द्वेष सब बेकार है,
हर क्षण गीत प्रेम के, आप गुनगुनाइए।
सुख  दुख तो धूप छाँव है, चिंता न कीजिए,
कर दर किनार इन बातों को, सबको हंसाइए।
कह कर गए हैं बुजुर्ग, अगर स्वस्थ रहना हो तो,
सुबह-सुबह प्रतिदिन, थोड़ा घूम आइए।
जीवन में आगे बढ़ना है, हिम्मत न हारिए,
मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए।


चमकता इंडिया, सिसकता भारत

जब लोगों में आतंकवाद का डर हो, नक्सलवाद समाज को डरा रहा हो, ऐसे में आजाद देश की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या है। स्वतंत्रता पश्चात् जिस स्वर्णिम भारत की कल्पना लोगों के मन में थी, वह धराशायी होती जा रही है। राजनीति में बैठे लोग स्वार्थ सि( करने में लगे हुए हैं। लोग घोटालों की खबरें देख-देख कर निष्क्रिय हो चुके हैं। प्रतिक्रिया दें भी तो क्या? सेेना के अफसर हो या समाज के ठेकेदार हर कोई बस अपने बारे मंे ही सोच रहा है। एक तरफ भुखमरी से मरते बच्चे और दूसरी तरफ पिज्जा बर्गर की पार्टी देने वाले बच्चे। एक ओर टूटी टपकती छत और जर्जर दीवारों के बीच पढ़ने वाले बच्चे और दूसरी ओर ए.सी. स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे। 
एक ओर शराब की पार्टियों मंे नोट उड़ाते अय्याश युवा तो दूसरी ओर नौकरी की तलाश और सिफारिश के अभाव में जूते घिसते युवा। एक ओर परिवार के पोषण की मजबूरी के कारण देह को कष्ट देकर धूप में मजदूरी करते लोग, तो दूसरी ओर महंगी मोटर साइकिलों व कारों में घूमते लोग। एक ओर सर्व धर्म समभाव व अखण्ड भारत के नारे लगाते जन नेता, तो दूसरी तरफ दलीय राजनीति व अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए देश को धर्म व जातियों में विखण्डित करने एवं अपनी तिजोरी भरने में लगे स्वनाम राष्ट्र निर्माता। कितनी बड़ी खांई है इनके बीच। ऐसे में हम आजाद भारत की कौन-सी तस्वीर देखें। गर्व करें तो किस पर? चंद चमकते इंडियन ;अमीरद्ध पर या अधिकांश सिसकते भारतीयों ;गरीबद्ध पर। आज हमें ऐसी नीति की आवश्यकता है, जो भारत की संपूर्ण आबादी को खुशहाल रखते हुए विकास व समृद्ध की ओर ले जाए, ना कि अमीर ;इंडियनद्ध-गरीब;भारतीयद्ध के बीच की खाई को बढ़ावा दे।


नेता ईमान खा रहे हैं

हमारे एक परिचित खाने के निमन्त्रण में, लगातार इक्कीस वर्षों से प्रथम आ रहे हैं।
पच्चीस आदमियों का खाना अकेले ही,
बड़े मजे से खा रहे हैं।
हमने एक दिन उनसे पूछा,
मित्र आश्चर्य है मँहगाई के इस दौर में भी,
तुम इतना खा रहे हो।
हमारी बात सुनकर वे कुछ उदास हो गए।
पहले कुछ दूर खड़े थे, मगर अब पास हो गए।
बोले- अरे हम कहाँ।
कुछ हमसे भी अधिक खा रहे हैं।
और इतना खाकर भी मजे से पचा रहे हैं।
विधायक विधान खा रहे हैं,
सांसद संविधान खा रहे हैं।
नेता ईमान खा रहे हैं, 
पुजारी भगवान खा रहे हैं।
पण्डित पुराण खा रहे हंै, 
मुल्ला कुरान खा रहे हैं।
और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,
जो समूचा हिन्दुस्तान खा रहे हैं।


जीवन पथ

यदि जीना है तुमको हरदम, जीवन को तुम जीने दो, 
जीवन की संकट घड़ियों में, मत जीवन को तुम मरने दो। 
जीवन तो है एक पहेली, कठिनाई है संग सहेली, 
कठिनाई को तुम सुलझाओ, सुलझेगी हर एक पहेली।
जीवन की उलझी राहों में, मत उलझाओ अपने मन को, 
मन उलझेगा यदि राहों में, नहीं मिलेगा बल इस तन को।
जीवन की सीढ़ी यह तन है, तन पर है अधिकार तुम्हारा, 
यदि यह तन ही टूट गया तो, जीवन रह जाए बिना सहारा।
जीवन को आसान न समझो, उलझोगे तुम जगह-जगह पर,
यदि उलझन को उलझन समझे, थक जाओगे जगह-जगह पर।
उलझन की परवाह न करना, कठिनाई से नहीं डरो तुम,
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ, जीवन को जीवन समझो तुम।
जीवन का यह मूल मंत्र है, हँस कर जी लो इस जीवन को,
खुद के हँसने से जग हँसता, मस्ती मिलती है जीवन को।
हँसते-हँसते बढ़ते जाओ, पथ प्रशस्त कर दो जीवन का,
इसी भाँति तुम जीते जाओ, हर पल फूल बने जीवन का।