Monday, October 21, 2019

सावधान दुनिया!

सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
है यह सृष्टि रचयिता;
पर रखती शक्ति महाविनाश का।
है कर सकती दुनिया का, 
पल भर में यह संहार।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
साक्षात प्रतीक है, हिरोशिमा, नागासाकी
विज्ञान के अभिशाप का।
पूर्व का ब्रिटेन 'जापान'! है सहता कष्ट
आज भी विज्ञान के महाविनाश का।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।
समझ एक पैनी तलवार,
दो विज्ञान को फेंक, 
तजकर मोह स्मृति के पार।
सावधान दुनिया!
विज्ञान है, ज्ञान महाविनाश का।


जूता जिन्दाबाद

चुनावी सभा हो या पत्रकार वार्ता,
एक नेता जी, हेलमेट पहन कर
आ-जा रहे हैं।
पूछने पर बतला रहे हैं, 
कि यार! आजकल लोग ,
बहुत जूते चला रहे हैं।
पता नहीं कब, कौन, मेरी तरफ भी उछाल दे,
किसी और की खुन्नस, मुझ पर निकाल दे।
इसलिए हेलमेट का, सहारा ले रहा हूंॅ
हर सभा में, हेलमेट पहनकर भाषण दे रहा हूंॅ।
बुश के ऊपर उछाले गये जूते ने,
ऐसी परम्परा चला दी है,
कि हम नेताओं की वाट ही लगा दी है।
नवीन जिंदल, पी. चिदम्बरम,
कभी आडवाणी..........,
आगे ही बढ़ती जा रही है, जूता फेंकने की कहानी।
अरे भाई! हम तो कहते हैं कि,
जूता मारना ही है, तो आतंकवाद को मारो।
भ्रष्टाचार को मारो, हत्या, लूट, बलात्कार को मारो।
लेकिन तुम लोग, कुछ नहीं देख-भाल रहे हो।
हर बार जूता,
हम नेताओं पर ही उछाल रहे हो!
इधर दे रहे थे नेताजी सफाई,
उधर नेपथ्य से आवाज आई।
'नेताजी, आपके द्वारा बताये गए,
भ्रष्टाचार, हत्या, लूट, बलात्कार,
जातिवाद और आतंकवाद,
माना कि मानवता के लिए अभिशाप है।
लेकिन इन सब की जड़ में,
हुजूर, आप..... आप और सिर्फ आप हैं!


जागो! देशवासियों जागो तुम्हें जगाने आया हूँ

आँसू बेच के हम खरीद, लाये नकली मुस्कानों को।
बिना जड़ों के फूलों से, सज्जित कर लिया मकानों को।।
चैपालें वीरान हुई, मन की पीड़ा का जिक्र नहीं।
कौन कहाँ जीता-मरता है, इसकी कोई फिक्र नहीं।।
जीव रहित पृथ्वी को, करने की कर ली है तैयारी।
और मंगल पर जीवन, खोजती दृष्टि आज हमारी।।
चर्खा तोड़ दिया बापू का, झूठे खद्दर वालांे ने।
सौदा कर डाला, धरती के रखवालों नें।।
गौ माता बन गई फूड, और गंगा रह गई पानी है।
भारत माँ को डायन कहती, मजहब की शैतानी है।।
पशुओं को काट-काट कर, मांस निर्यात किया जाता है।
बदले मंे उसके गोबर का, आयात किया जाता है।।
सन्डे-मन्डे खाओ अन्डे, सरकारें खुद कहती हैं।
दूध हुआ गायब, नदियाँ लहू और सुरा है।।
मर्यादा छूट पहुँच रही, कसकर पश्चिम की बाहों में।
तुलसी कुंभन वाले लड़ते, भाषा के चैराहों में।।
माईकल जैक्सन तोड़ रहे है, कजरी मटकी नाचों को।
स्टारों ने तोड़ दिया, संस्कृति के ही ढांचों को।।
थर्माकोल के गिलासों नें, माटी के कुल्हड़ फोड़ दिए।
अनजाने ही पश्चिम से, मन के नाते जोड़ दिए।।
मैं भारत से ऐसी गंदी, रीति मिटाने आया हूँ।
सदाचार की गंगा का, अवतरण कराने आया हूँ।।
जागो! देशवासियों जागो! तुम्हें जगाने आया हूँ।


कलयुगी वन्दना

हे प्रभो आनन्द दाता बस यह उपकार हम पे कीजिए।
सिर्फ मैं जीता रहूँ और मार सबको दीजिए।।
भक्त हूँ मैं आपका अर्जी प्रभो ले लीजिए।
और जितनी अर्जियां हो फाड़ उनको दीजिए।।
पुष्प चन्दन और तुलसी की माला आप सब ले लीजिए।
सौ सौ के नये नोट बस मेरी जेब में भर दीजिए।।
आपके भंडार में प्रभो धन की कोई सीमा नहीं।
किन्तु मेरे लिए भेजा कभी कोई बीमा नहीं।।
मुझको अगले जन्म में प्रभो बेटा बनाना लाट का।
या प्रभो खटमल बनाना सेठ जी के खाट का।।
एक झण्डा चार गुण्डा आठ मोटर कार दे।
बस मेरी यही इक प्रार्थना स्वीकारिए।।
हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे सद्गुणों को दूर हमसे कीजिए।।
दब दबा मेरा रहे काॅलेज और स्कूल पर।
कूद कर मैं बैठ जाऊँ प्रिन्सिपल की मेज पर।।
सिर्फ मैं चमकूँ प्रभो अखबार के हर पेज पर।
आराम से लेटा रहूँ बस मखमली सी सेज पर।
श्रीमती जी आपका चरणामृत लेती रहे।
चाय और सिगरेट पीने को मुझको देती रहे।
दो मुझे आशीष पूरे सौ वर्ष जीता रहूँ।
भक्त बनकर रक्त जनता का सदा पीता रहूँ।
ब्लैक रिश्वत की कृपा से ऐश भी करता रहूँ।
नोट देकर वोट लेकर चोट भी करता रहूँ।
और मेरा कौन है सब कुछ हमारे आप है।
आप हमारे बाप के भी बाप के भी बाप हैं।
जिसको चाहूँ काट खाऊँ यह अधिकार हमको दीजिए।
हे प्रभो आनन्द दाता बस यह उपकार हम पे कीजिए। 


अपने वतन से प्यार करो

कोई मंदिर-मस्जिद जाकर फूल चढ़ाता है,
कोई चर्च-शिवालय जाकर प्रभु के भजन सुनाता है।
मातृभूमि का मंदिर ऊँचा गिरजाघर-गुरुद्वारों से,
इस मंदिर का प्रेम पुजारी अपना शीष चढ़ाता है।
शीश चढ़ाने वालों का अब हर सपना साकार करो,
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।
खोई वसुधा की पीड़ा है गीता के उपदेशों में।
करूणंा का सागर लहराता गौतम के संदेशों में।
गीता, राम, मोहम्मद सबको भारत माँ का प्यार मिला।
इसीलिये यह देश बड़ा है दुनिया भर के देशों में।
महावीर, नानक की वाणी का मिलकर सत्कार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा .....
श्वेत रंग अनुयायी है, गांधी बाबा की राहों का।
केसरिया वीर शिवाजी का रंग, हरा बहादुर शाहों का।
मंगल पाण्डे का जोश भरा, ऊधम की वीर जवानी है।
दीवानी झांसी की रानी, नेता सुभाष बलिदानी है।
इसके रगों में मिली-जुली, रणवीरों की कुर्बानी है। 
आपस में शामिल सिन्धु, व्यास, गंगा, सतलज का पानी है।
हमने अपना शीश कटाकर, देश का ऊँचा नाम किया।
लहु का चोखा रंग मिलाकर, रंग झण्डे का लाल किया।
सरहद पर खड़े सिपाही का, सीना चैड़ा हो जाता है।
जब लाल किले पर लोकतन्त्र का, प्रहरी बन लहराता है।
भारत माता का मान बढ़े, आओ कुछ ऐसे काम करें।
झण्डे की शीतल छाया में, ये सारा जग विश्राम करे।
साँसों में बसा तिरंगा है, इसका नूतन श्रृंगार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।


मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए

रहना है सबके बीच तो मुस्कुराइए,
वाणी में अपनी मधु, थोड़ा मिलाइए।
फलों सा बनिए कोमल, गरमाइए नहीं,
दुनिया में बन कर खुशबू फैल जाइए।
झगड़ा लड़ाई, ईष्र्या द्वेष सब बेकार है,
हर क्षण गीत प्रेम के, आप गुनगुनाइए।
सुख  दुख तो धूप छाँव है, चिंता न कीजिए,
कर दर किनार इन बातों को, सबको हंसाइए।
कह कर गए हैं बुजुर्ग, अगर स्वस्थ रहना हो तो,
सुबह-सुबह प्रतिदिन, थोड़ा घूम आइए।
जीवन में आगे बढ़ना है, हिम्मत न हारिए,
मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए।


चमकता इंडिया, सिसकता भारत

जब लोगों में आतंकवाद का डर हो, नक्सलवाद समाज को डरा रहा हो, ऐसे में आजाद देश की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या है। स्वतंत्रता पश्चात् जिस स्वर्णिम भारत की कल्पना लोगों के मन में थी, वह धराशायी होती जा रही है। राजनीति में बैठे लोग स्वार्थ सि( करने में लगे हुए हैं। लोग घोटालों की खबरें देख-देख कर निष्क्रिय हो चुके हैं। प्रतिक्रिया दें भी तो क्या? सेेना के अफसर हो या समाज के ठेकेदार हर कोई बस अपने बारे मंे ही सोच रहा है। एक तरफ भुखमरी से मरते बच्चे और दूसरी तरफ पिज्जा बर्गर की पार्टी देने वाले बच्चे। एक ओर टूटी टपकती छत और जर्जर दीवारों के बीच पढ़ने वाले बच्चे और दूसरी ओर ए.सी. स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे। 
एक ओर शराब की पार्टियों मंे नोट उड़ाते अय्याश युवा तो दूसरी ओर नौकरी की तलाश और सिफारिश के अभाव में जूते घिसते युवा। एक ओर परिवार के पोषण की मजबूरी के कारण देह को कष्ट देकर धूप में मजदूरी करते लोग, तो दूसरी ओर महंगी मोटर साइकिलों व कारों में घूमते लोग। एक ओर सर्व धर्म समभाव व अखण्ड भारत के नारे लगाते जन नेता, तो दूसरी तरफ दलीय राजनीति व अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए देश को धर्म व जातियों में विखण्डित करने एवं अपनी तिजोरी भरने में लगे स्वनाम राष्ट्र निर्माता। कितनी बड़ी खांई है इनके बीच। ऐसे में हम आजाद भारत की कौन-सी तस्वीर देखें। गर्व करें तो किस पर? चंद चमकते इंडियन ;अमीरद्ध पर या अधिकांश सिसकते भारतीयों ;गरीबद्ध पर। आज हमें ऐसी नीति की आवश्यकता है, जो भारत की संपूर्ण आबादी को खुशहाल रखते हुए विकास व समृद्ध की ओर ले जाए, ना कि अमीर ;इंडियनद्ध-गरीब;भारतीयद्ध के बीच की खाई को बढ़ावा दे।


नेता ईमान खा रहे हैं

हमारे एक परिचित खाने के निमन्त्रण में, लगातार इक्कीस वर्षों से प्रथम आ रहे हैं।
पच्चीस आदमियों का खाना अकेले ही,
बड़े मजे से खा रहे हैं।
हमने एक दिन उनसे पूछा,
मित्र आश्चर्य है मँहगाई के इस दौर में भी,
तुम इतना खा रहे हो।
हमारी बात सुनकर वे कुछ उदास हो गए।
पहले कुछ दूर खड़े थे, मगर अब पास हो गए।
बोले- अरे हम कहाँ।
कुछ हमसे भी अधिक खा रहे हैं।
और इतना खाकर भी मजे से पचा रहे हैं।
विधायक विधान खा रहे हैं,
सांसद संविधान खा रहे हैं।
नेता ईमान खा रहे हैं, 
पुजारी भगवान खा रहे हैं।
पण्डित पुराण खा रहे हंै, 
मुल्ला कुरान खा रहे हैं।
और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,
जो समूचा हिन्दुस्तान खा रहे हैं।


जीवन पथ

यदि जीना है तुमको हरदम, जीवन को तुम जीने दो, 
जीवन की संकट घड़ियों में, मत जीवन को तुम मरने दो। 
जीवन तो है एक पहेली, कठिनाई है संग सहेली, 
कठिनाई को तुम सुलझाओ, सुलझेगी हर एक पहेली।
जीवन की उलझी राहों में, मत उलझाओ अपने मन को, 
मन उलझेगा यदि राहों में, नहीं मिलेगा बल इस तन को।
जीवन की सीढ़ी यह तन है, तन पर है अधिकार तुम्हारा, 
यदि यह तन ही टूट गया तो, जीवन रह जाए बिना सहारा।
जीवन को आसान न समझो, उलझोगे तुम जगह-जगह पर,
यदि उलझन को उलझन समझे, थक जाओगे जगह-जगह पर।
उलझन की परवाह न करना, कठिनाई से नहीं डरो तुम,
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ, जीवन को जीवन समझो तुम।
जीवन का यह मूल मंत्र है, हँस कर जी लो इस जीवन को,
खुद के हँसने से जग हँसता, मस्ती मिलती है जीवन को।
हँसते-हँसते बढ़ते जाओ, पथ प्रशस्त कर दो जीवन का,
इसी भाँति तुम जीते जाओ, हर पल फूल बने जीवन का।


स्टैण्डिग दावत

दोस्तों मानो या न मानो,
 स्टैंडिग दावत में खाना,
 बड़ी टेढ़ी खीर है।
एक दिन हमें भी,
जाना पड़ा बारात में,
बीवी बच्चे भी थे साथ में,
ऊपर से शोपीस,
अन्दर से सूखे थे।
क्या करें सुबह से भूखे थे।
जैसे ही खाने का सन्देशा
आया हाल में,
भगदड़ मच गई पण्डाल में,
एक के ऊपर एक बरसने लगे,
जो मिला सब झपटने लगे।
एक अपनी प्लेट में 
थोड़े चावल लेकर आया,
उससे कहीं ज्यादा अपना
कुरता फाड़ लाया।
दूसरा गरीब व लाचार था,
इसलिए कपड़े उतारकर पहले से
ही तैयार था।
रोटी तो किसी तरह पा गया,
बस अचार का इन्तजार था।
अगली एक महिला थी,
जिसकी साड़ी पनीर की, 
सब्जी से सनी थी।
किनारे पर खड़ी होकर,
नेत्रों को भिगो रही थी।
पड़ोसन से मंागी थी,
इसलिए रो रही थी।
अगला खुद लड़की का बाप था,
जिसके प्राण कण्ठ में अटके थे।
घराती सारे खा रहे थे,
बराती सड़क पर खडे़ थे।


संकल्प और लक्ष्य

 संकल्प और लक्ष्य मनुष्य के कार्यों को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आदतों को संकल्प और लक्ष्य की शक्ति द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है। व्यर्थ में बड़े से बड़ा नुकसान हो जाता है और जीवन की महत्वपूर्ण बातें धरी की धरी रह जाती है। यदि हम कोई लक्ष्य लेकर चलते हैं तो उसे संकल्प द्वारा, कर्म द्वारा, यथार्थ रीति द्वारा और आदतों को नियन्त्रित रखते हुये पूर्णतः की ओर बढ़ सकते हैं। जिस प्रकार सोना को साफ करने तथा उसमें चमक लाने के लिये आग में तपाना पड़ता है, उसी प्रकार सदा अपने लक्ष्य और संकल्प में अटल रहना पड़ता है। सभी के जीवन में उत्थान तथा पतन का भी समय आता है। विवेकी पुरुष की दृष्टि में परमात्मा की प्राप्ति श्रेयस्कर है। परमात्मा और आत्मा का संयोग उनके एकत्व का बोध परमार्थ माना गया है। जीवन में सुख - शान्ति तथा अध्यात्मिक उन्नति का मुख्य आधार भी यही है। दृष्टि से वृत्ति स्वयं बदल जाती है। वृत्ति के अनुसार बु(ि प्रभावित होती है। गुण और विशेषताऐं व्यक्ति की बु(ि से ही समझी जाती है। जैसे - हंस की पहचान उसके मोती ग्रहण करने करने से होती है। बु(ि संस्कार का एक वाहन है। बु(ि को श्रेष्ठ बल भी कहा गया है। बु(ि द्वारा ही संकल्प को दिशा दी जा सकती है। अभी नहीं तो कभी नहीं का संकल्प लक्ष्य तक ले जाने में सहायक होता है। व्यक्ति स्वयं भी विशेष है, और समय भी विशेष है। संकल्प को छोड़कर व्यर्थ की तरफ नहीं जाना चाहिए। यदि व्यक्ति हीन भावना से ग्रसित है तो वह संकल्प भी नहीं कर सकता है । विपरीत परिस्थितियों को देखकर अंशमात्र भी विचलित नहीं होना चाहिये।


पूर्ण विराम का महत्व

एक पत्नी ने अपने पति को पत्र लिखा लेकिन वाक्यों में उसने कहीं पूर्ण विराम नहीं लगाया। पत्र लिखने पर जब उसे इस गलती का अहसास हुआ तो उसने अनुमान से जल्दी-जल्दी पूर्ण विराम लगा दिये। जिससे सारे पत्र का अर्थ ही बदल गया। प्रस्तुत है वह पत्र-
प्रिय पति देव,
 प्रणाम! आपके चरणों में क्या चक्कर है। आपने कितने दिनों से चिट्ठी नहीं लिखी, मेरी प्यारी सहेली को नौकरी से निकाल दिया है 
हमारी गाय ने। बछड़ा दिया है दादा जी ने। शराब शुरू कर दिया है मैंने। बहुत पत्र डाले तुम आये नहीं मुर्गी के बच्चे। भेड़िया खा गया है राशन की चीनी। 
छुट्टी से आते वक्त ले आना एक खूबसूरत औरत। मेरी नई सहेली बन गयी है तुम्हारी माँ। तुम्हें याद करती है एक पड़ोसन। मुझे तंग करती है हमारी जमीन। पर गेहूं आ गया है ताऊ जी के सिर में। सिकरी हो गई मेरे पैर में चोट लग गई है तुम्हारी चिट्ठी को। हर वक्त तरसती रही।


गुणों से होती है सुंदरता की पहचान

 एक संत हर सुबह घर से निकलने के पहले आइने के सामने खड़े होकर खुद को देर तक निहारते रहते थे। एक दिन उनके शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा। तो उसके चेहरे पर मुस्कान झलक पड़ी। वे समझ गये और शिष्य से बोले, ''तुम जरूर ये सोचकर मुस्कुरा रहे हो कि ये कुरूप व्यक्ति आइने में खुद को इतने ध्यान से क्यों देख रहा है? पकड़े जाने से शिष्य थोड़ा शर्मा गया। वह माफी मांगने वाला ही था कि इसके पहले संत ने बताना शुरू कर दिया। आइने में हर दिन मैं सबसे पहले अपनी कुरूपता को देखता हूँ। ताकि उसके प्रति सजग हो सकूँ। इससे मुझे ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है, जिससे मेरे सद्गुण इतने निखरें कि वे मेरी बदसूरती पर भारी पड़ जाएँ। शिष्य बोला ''तो क्या सुन्दर व्यक्ति को आइने में अपनी छवि नहीं निहारनी चाहिए?'' संत ने कहा - ''बिल्कुल निहारनी चाहिए, लेकिन वह स्वयं को आइने में देखे तो यह अनुभव करे कि उनके गुण भी उतने ही सुंदर हों, जितना कि उनका शरीर है।